पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५३१

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मधुराई ३७७० मधुवाद अब मडुन या मदुरा कहलाता है। २. मथुरा नगर । ३. वजत कहूँ नारी नर गावत । -भारतेंदु १०, भा० १, शतपुष्पी । ४. मीठा नीबू । ५. मेदा । ६. मुलेठी । ७. पृ० २८२.1 काकोती। ८. सतावर । ६. महामेदा। १०. पालक का मधुरीछ-संज्ञा पु० [हिं० मधु+छ ] दक्षिणी अमेरिका का साग । ११. तेम । १२. रेले का वृक्ष । १३. मसूर । १४. एक जंगली जंतु। मीठी खजूर । १५. सौंफ। विशेप-ऊँचाई मे यह जंतु बिल्ली या कुत्ते के बराबर और मधुराई-सज्ञा ली० [हिं० मधुर + आई (प्रत्य॰)] १. मधुरता । रूप मे रीछ के समान होता है। यह जतु शहद के पत्तों से उ०-दुति लावन्य रूप मधुराई | काति रमनता सुंदर शहद चूपने का बड़ा प्रेमी होता है। इसी से इसे लोग ताई।-द० ग्रं॰, पृ० १२४ । २. मिठास । मीठापन । ३. मधुरीछ कहते हैं। कोमलता । उ०-धुराई वैग्न वसी लगी पगन गति मद । मधुरीला-वि० [हिं० मधुरी + ला (प्रत्य॰)] मधुरतायुक्त । माधुर्य- चपलाई चमकी चखनि चखन लखो नंदनंद ।-स० सप्तक, पूणं । जैसे,—पुरानी परिपाटी के वृत्तां मे प्रापने वह मधु- पृ० ३७० । ४. सुदरता। रीला चमकार कर दिखाया जो शायद कोई और कभी न मधुराकर-संज्ञा पुं॰ [ स०] ईख । ऊख । दिखा सकता। मधुराका-संज्ञा स्त्री० [सं० मधु + राका ] १. वसंत ऋतु की चांदनी मधुरोदक-ज्ञा पु० [सं०] पुराणानुसार सात समुद्रो में से अंतिम रात । उ०-पोर पड़ती हो उसपर शुभ्र नवल मधुराका समुद्र जो मीठे जल का और पुष्कर द्वीप के चारो प्रोर है। मन की साध |--कामायनी, पु० ४८ । २. दे० 'मधुयामिनी'। मधुल'—संज्ञा पु० [स० ] मदिरा । मधुराज-ज्ञा पु० [सं०] भौंरा । उ०-छूटि रही अलक झलक मधुल-वि० दे० 'मधुर' [को०] । मधुराज राजी ताप द्विति सोये विराज पर मोर की।- रघुनाथ (शब्द०)। मधुलग्न-संज्ञा पुं० [ म० ] लाल शोभाजन । मधुराना-क्रि० स० [हिं० मधुर + याना (प्रत्य॰)] १. किसी मधुलता-ज्ञा सी० [ स०] एक प्रकार की घास जिसे शूली भो कहते हैं। वस्तु में मीठा रस भा जाना ।. मीठा होना । उ०-व्यंग ढंग वजि वानी हू कछु कछु मधुरानी। व्यास (शब्द॰) । २. मधुलिका-संज्ञा स्री० [सं०] १. एक प्रकार की शराव जो मधुली सुंदरता से भर जाना । सुंदर हो जाना। उ०-मागे कौन नामफ गेहूँ से बनाई जाती है। २. राई। ३. कार्तिकेय की हवाल जवै अंग अंग मधुरैहै ।-व्यास (शब्द॰) । एक मातृका का नाम । ४. फूलो का पराग । मधुरान--संज्ञा पुं॰ [ सं०] मिठाई । मिष्ठान्न । उ.--खाय मधुरान मधुलिह-संज्ञा पुं॰ [ स० मधु+लिह ] भ्रमर । मधुकर । नहिं पाय पनही धरै ।-केशव (शब्द०)। भौरा। 30-मान कमन के ढिर ही रहै। रूप रंग रस मधुराम्लक-संज्ञा पुं॰ [सं०] अमड़ा। मधुलिह लहे । -नंद० ग्रं, पृ० १४४ । पर्या०-मधुलेह । मधुलेही । मधुलोलुप । मधुन । मधुराम्लरस-ज्ञा पु० [सं०] नारंगी का पेड़ । मधरालापा-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] मैना पक्षी । मधुलो-संज्ञा पुं० [ स० मधुलिका ] भावप्रकाश के अनुसार एक प्रकार का गेहूँ। मधुरालिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की छोटी मछली । मधुरिका-संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] सौफ । मधुलोलुप-शा पु० [ स०] भौरा । मधुवटी-संज्ञा सो. [ स०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन मधुरित-वि० [स० ] मधुर किया हुा । मधुर बनाया हुआ। स्थान का नाम । अति मधुर । उ०—चढ़ि कदम्म बुल्ले सु प्रभु मधुरित मधुवन-ज्ञा पु० [सं०] १. म पुरा के पास यमुना के किनारे का मिष्टत वानि !-पृ० रा०, २२३७६ । एक बन जहाँ शत्रुघ्न ने लवण नामक दैत्य को मारकर मधु- मधुरिपु-संज्ञा पुं॰ [सं०] विष्णु । पुरी स्थापित की थी। २. किष्किघा के पास का सुग्रीव मधुरिमा' – संज्ञा ली० [ स० मधुरिमन् ] १. मिठास | मीठापन । का बन जिसमें सीता का समाचार लेकर लौटने पर हनुमान २. सुंदरता । सौदर्य। ने मधुपान किया था । ३. वह वन या कुंग जिसमें प्रेमी पौर प्रेमिका आकर मिलते हों। ४. कोयल । मधुरिमा-वि० जो बहुत अधिक मीठा हो। मधुवर्ण-संज्ञा पुं॰ [सं०] कार्तिकेय के पक मनुचर का नाम | मधुरी@-संज्ञा स्त्री० [सं० माधुर्य ] १. सौदर्य। सुदरता। मधुवल्लो-संज्ञा स्त्री० [५० ] १. मुलेठी । २. करेला । उता दिन देख परी सव की छवि कौन मिली इनकी मधुवा-संज्ञा पु० [हिं० मधु + वा (प्रत्य॰)] मद्य । मदिरा । मधुरी।-रघुराज (शब्द०)। २. बहुत प्राचीन काल का शराव । उ०--गुरु चरनामृत नेम न घार मधुवा चाखन एक प्रकार का वाजा जो मुंह से फूककर वजाया जाता था। प्राया रे!-कबीर० १०, भा० १, पृ० २५ । मधुरी--वि० [सं० मधुर ] दे० 'मधुर' । उ०-मधुरी नौवत मधुवाक्-सज्ञा पु० [सं० मधुवाच् ] कोयल [को०] ।