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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५३३

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मध्यम ७. मधूलो मधूले ३७७२ मधूल-संडा पु० [ स०] १. जल महुप्रा । २. मधु । शहद (को०) । मध्यज्या-ज्ञा M० [म.] मध्यदिन रेखा। मधूलक-सञ्ज्ञा पुं० [ पु०] १. जल महुप्रा । २. मद्य । शराब । मध्यतः-अव्य० [म मध्यत] बीच से वा वीच मे [को०] । मध्यता-ज्ञा सी० [सं०] मध का भाव या धर्म । मधूलिका-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. मूर्वा । २. मुलेठी ३. एक प्रकार का मोटा मन्न । ४. छोटे दाने का गेहूँ। ५. छोटे दाने के मध्यतापिनी -मज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक उपनिषद का नाम । गेहूँ से बनी हुई शराब । ६. एक प्रकार की घास । मध्यदंत-जपु० [म. मध्यदन्त] सामने या बीच का दौत [को०] । एक प्रकार की मक्खी जिसके काटने से सूजन और जलन मध्यदिन-शा पु० [सं०] दोपहर किो०] । होती है । (वैद्यक )। मध्यदीपक-सज्ञा पु० [40] साहित्य में दीपक अलकार का एक - मा पु० [सं०] १. धाम का पेह । २. जल में उत्पन्न भेद । विशेष-दे० 'दीपक' । होनेवाली मुलेठी । ३. मध्य देश का गेहूँ । मध्यदेश-पवा पु० [स० ] प्राचीन भौगोलिक विभाग के अनुसार मधूवरु-मा पु० सं०] मोम। भारतवर्ष का वह प्रदेश जो हिमालय के दक्षिण, विध्य मध्यंदिन'-वि० [म० मध्पन्दिन] १ मध्यवर्ती। बीच का । केंद्रीय । पर्वत के उत्तर, कुरुक्षेत्र के पूर्व और प्रयाग के पश्चिम में है । २. दोपहर से संबंधित [को०] । यह प्रदेश किसी समय पार्यों का प्रधान निवासस्थान था मध्यंदिन - पु० दिन का मध्य भाग । दोपहर [को॰] । शोर बहुत पवित्र माना जाता था। मध्यम । मध्य-संज्ञा पुं० [स०] १. किसी पदार्थ के बीच का भाग। मध्यदेह-शा पुं० [ सं० ] उदर । पेठ । दरमियानी हिस्सा। २. कमर | कटि । उ०--मध्य छीन मध्यपद-सज्ञा पु० [स०] वीच का पद वा शब्द [को०) । प्रो भूखन सोहै।-हिं० क० का०, पृ० २११ । ३. संगीत में यौ०-मध्यपदलोपी = समास का भेद । दे० मध्यमपदलोपी' । एक सप्तक जिसके स्वरों का उच्चारण वक्षस्थल से कंठ मध्यपात-सशा पु० [सं०] १. ज्योतिष में एक प्रकार का पात । के अंदर के स्थानो से किया जाता है। यह साधारणतः बीच २. जान पहचान । परिचय । का सप्तक माना जाता है। ४. नृत्य में वह गति जो न बहुत तेज हो न बहुत मंद । ५. वस भरब की संख्या। ६. मध्यपुष्प-संशा पु० [सं०] जल वेत । विश्राम । ७. सुश्रुत के अनुसार १६ वर्ष से ७० वर्ष को मध्यपूर्व-संज्ञा पु० [ स०] १. मध्यकाल का पूर्वाधं भाग। २. अवस्या । ८. अंतर | भेद । फरक । ६. पश्चिम दिशा । एशिया महाद्वीप का दक्षिण पश्चिमी मोर अफ्रीका का उत्तर पूर्वी भाग। (प्र०) मिडिल ईस्ट । मध्य-वि० १. उपयुक्त । ठीक । न्याय्य । २. अधम । नीच । ३. मध्यम । धीच का । ४. मध्यस्थ (को०) । ५. अंतर्वर्ती । [को०। मध्यप्रसूता-वि० सी? [ स०] ( वह गाय ) जिसको वच्चा दिए मध्य-१, बीच में | मध्य मे । २. बोच से । मध्य से [को०] । अधिक दिन न हुए हो [को०] । मध्यक-वि० [स० ] साधारण । सार्वजनीन [को०) । मध्यभाग-सा पु० [ स०] १. वीच का हिस्सा । २. कमर [को०] । मध्यकर्ण-पञ्चा पु० [ स०] अर्धव्यास [को०] । मध्यभाव-संज्ञा ० [सं०] मध्य की स्थिति । मव्य का भाव [को०] । मध्यकाल-पचा पु० [ स० मध्य + काल ] इतिहास में वह समय जो मध्यम-नि. [सं०] जो दो विपरीत सीमानो के बीच मे हो । प्राचीन और प्राधुनिक समय के मध्य मे पड़ता है। ईसवी जो गुण, विस्तार, मान मादि के विचार से न बहुत बड़ा सन् की सातवी सदी से अठारहवीं सदी तक का समय । हो, न बहुत छोटा । मध्य का । बीच का। मध्यकालीन-वि० [सं०] मध्यकाल से संबंधित । मध्यकाल का। मध्यम-संज्ञा पुं० १. सगीत के सात स्वरों में से चौथा स्वर । उ०-कवार तुलसी जायसी और सूर की सामान्य विशेषताओं विशेष-इसका मुलस्थान नासिका, अत.स्थान कंठ और शरीर को समझे बिना मध्यकालीन हिंदी साहित्य की सामान्य में उत्पचिस्यान वक्षस्थल माना जाता है। कहते हैं, यह प्रगतिशील विशेषताओ को समझना असंभव है। प्राचार्य मयूर का स्वर है, इसके अधिकारी देवता महादेव, प्राकृति पृ०६४। विष्णु की, संतान दीपक राग, वणं नील, जाति शूद्र, ऋतु मध्यकुरु-संज्ञा पु० [सं०] एक प्राचीन देश जो उत्तर कुरु और ग्रीष्म, वार बुध और छंद बृहती है और इसका अधिकार कुश दक्षिण कुरु के मध्य मे था। विशेष दे० 'कुरु' । द्वीप मे है। संक्षेप मे इसे 'म' कहते या लिखते हैं। यह मध्यखंड-मुज्ञा पु० [ स० मध्यखण्ड ] ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी साधारण और तन दो प्रकार का होता है। इसको स्वर का वह भाग जो उत्तर क्रांतिवृत्त और दक्षिण कातिवृत्त के (पड़ज ) बनाने से सप्तक इस प्रकार होता है-प्रध्यम मध्य में पड़ता है। स्वर, पचम नपभ, घेवत गांधार, कोमल निपाद । मध्यगध-संज्ञा पु० [ स० मध्यगन्ध ] भाम का वृक्ष । मध्यम, रवर ( पड़ज)पंचम, ऋषभ, धैवत, गांधार निपाद तीव मध्यम को स्वर (षड़ज) बनाने से सप्तक इस प्रकार मध्यगत-वि० [सं०] मध्यम । बीच का। होता है-तीन मध्यम स्वर, कोमल धैवत ऋपभ, कोमल