पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५७

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फिट्टा ३२६६ फिरंगी फिट्टा-१० [हिंफिट ] फटकार खाया हुप्रा। अपमानित । है । उ०-छोटी छोटी ताजे शीश राज ग्रहगजै सम, छोटो उतरा हुमा । श्रीहत । उ०—भापमे तो सकत नहीं, फिर छोटी फिनियां फबी हैं छोटे कान में। -रघुराज (शब्द०)। ऐसे राजा का, फिट्टे मुह । हम कहाँ तक पापको सताया फिनीज-सज्ञा सी० [स्पे० पिनज़ ] एफ छोटी नाव जिसपर दो करेंगे। इनशा० (शब्द०)। मस्तूल होते हैं और जो डाँड़े से चलाई जाती है। मुहा०—फिट्टा मुंह, फिहे मुंह = उतरा या फीका पड़ा हुप्रा फिफरीg-संज्ञा ली० [हिं० फेफरी ] दे० 'फेफड़ो' । चेहरा। फिया -संज्ञा स्त्री॰ [ स० प्लीहा ] प्लीहा । तिल्ली। फितना-मंशा पु० [अ० फितनह ] १. वह उपद्रव जो अचानक फिरंग-संज्ञा पुं० [अ० फांक ] १. यूरोप का देश । गोरों का मुल्क । किनी कारण से उठ खडा हो। झगड़ा। दंगा फसाद । २. फिरंगिस्तान। विद्रोह । बगावत (को०)। विशेप-फ्रांक नाम का जरमन जातियों का एक जत्या था जो क्रि० प्र०-उठना ।-उठाना । ईसा की तीसरी शताब्दी में तीन दलों में विभक्त हुमा । ३. पिशुन (को०)। ४. एक फूल का नाम । ५. एक प्रकार इनमें से एक दल दक्षिण की ओर बढ़ा और गाल ( फ्रांस का इन। का पुराना नाम ) से रोमन राज्य उठाकर उसने वहाँ अपना फितनेपर्दाज-वि० [अ० + फ़ितनह + पर्दाज़ ] उपद्रव खड़ा करने- अधिकार जमाया। तभी से फ्रोस नाम पड़ा । सनू १०६६ वाला। उ०-परसों गव को फितनेपज के फरेब में और १२५० ई० के बीच यूरोप के ईसाइयों ने ईसा की माकर हजरत ने मुझसे चक्कर लाए थे। - श्रीनिवास ग्र०, जन्मभूमि को तुर्को के हाथ से निकालने के लिये कई चढ़ाइयाँ पृ० ११६। की । फ्रांक शब्द का परिचय तभी से तुर्को को हश्रा और वे फितरत--संज्ञा स्पी० [फितरत] १. प्रकृति । २. प्रादत । स्वभाव । ३. यूरोप से प्रानेवालों को फिरगी कहने लगे। धीरे धीरे यह उत्पत्ति । पैदाइश । ४. धूर्तता । चालाकी । शरारत [को०] । शब्द अरब, फारस प्रादि होता हा हिंदुस्तान में घाया। फितरती-वि० [अ० फ़ितरत + फा ई (प्रत्य० ) ] १. चालाक । हिंदुस्तान में पहले पुर्तगाली दिखाई पड़े इससे इस शब्द का चतुर । २. फितूरी । मायावी । धोखेबाज | प्रयोग बहुत दिनों तक उन्ही के लिये होता रहा। फिर फितूर-संज्ञा पु० [अ० फुतूर ] [ वि० फितूरी ] १. न्यूनता । यूरोपियन मात्र को फिरंगी कहने लगे। घाटा। कमी। २. भावप्रकाश के अनुसार एक रोग । गरमी । प्रातशक । क्रि० प्र०-पाना ।—पड़ना । विशेष-पहले पहल भावप्रकाश में ही इस रोग का उल्लेख २. विकार । विपर्यय । खराबी। दिखाई पड़ता है सोर किसी प्राचीन वैद्यक ग्रंथ में नहीं है। क्रि० प्र०-थाना ।-उठना |- पड़ना । भावप्रकाश में लिखा है कि फिरग नाम फे देश में यह रोग ३. झगड़ा । बखेडा । दगा फसाद । उपद्रव । बहुत होता है इमसे इसका नाम 'फिरम' है। यह भी स्पष्ट कि प्र०-उठना ।-करना ।-पड़ना ।-मचाना । कहा गया है कि फिरंग रोग फिरगी स्त्री के साथ संभोग करने से हो जाता है। इस रोग के तीन भेद किए हैं-वाह्य फितूरिया-वि० [हिं० फितूर + इया (प्रत्य॰)] फितूर करने- फिरंग, प्राभ्यंतर फिरंग और बहिरंतर्भव फिरग। बाह्य वाला । फितूरी। फिरंग विस्फोटक के समान शरीर में फूट फूटकर निकलता फितरी-वि० [ हिं० फितूर ] १. झगड़ालू । लडाका । २. उपद्रवी । है और धाव या व्रण हो जाते हैं। यह सुखसाध्य है । फसादी। प्राभ्यंतर फिरंग में सघि स्थानों में प्रामवात के समान शोध फिदवी'-वि० [अ० फ़िदाई से फ्रा० फिदवी ] स्वामिभक्त । प्राज्ञाकारी। और वेदना होती है। यह कष्टसाध्य है । बहिरंतर्भव फिरग एक प्रकार से असाध्य है। फिट्वी-संज्ञा पुं० [ छी० फिदविया ] दाम । फिदा- वि० [अ० फिपह, ] मुग्ध । मोहित । किसी पर भासक्त । फिरग बात-संज्ञा पुं० [हिं० फिरंग+ सं० वात ] वातज फिरग । दे० 'फिरंग-२'। फिदाई-वि० फा० फ़िदाई ] मुग्ध या मोहित होनेवाला । फिरगिस्तान'--संज्ञा पुं० [पं० फ्रांक + फ़ा० स्तान ] फिरंगियों के मुहा०- फिदाई होना = प्रेमी होना । किसी पर मुग्ध होना । रहने का देश। गोरो का देश । यूरोप । फिरंग। वि० दे० फिदा-सहा पु० [हिं०] दे० 'पिद्दा' । 'फिरंग'-१. फिनाल-सजा ली[प्र. फना] : 'फना' । फिरंगी'-वि० [हिं० फिरंग ] १. फिरंग देश में उत्पन्न । २. फिरंग फिनाइल - संज्ञा पुं० [पं० फिनाइल ] कीटाणुनाशक एक द्रव पदार्थ देश में रहनेवाला । गोरा । ३. फिरंग धेश का । जो मोरी पनालो में सफाई के लिये डाला जाता है। यह फिरंगी-सज्ञा पु० [ी० फिरगिन ] फिरंग देशवासी । यूरोपियन । फोलतार या अलकतरे से निकलता है। उ.-हवशी रूमी और फिरंगी। बड़ बड़ गुनी और तेहि फिनिया-संशा श्री॰ [ देरा०] एक गहना जो कान में पहना जाता संगी।-जायसी (शब्द०)।