फुसी ३३०२ पास फुसी -मज्ञा स्त्री० [सं० पनसिका, पा० फनस ] छोटी फोड़िया । फूकने का शब्द । २. मामूली वात । तुच्छ या छोटी यौ०-फोड़ा फुसी। वात [को०] । फॅकना'-क्रि० स० [हिं० फू कला] १. फूकने का अकर्मक रूप । फुत्रा -संज्ञा स्त्री॰ [सं० पितृष्वसा ] पिता की बहन । बुप्रा । २. जलना । भस्म होना। फुधारा -संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'फुहारा । संयो० क्रि०-जाना। फुक-सचा पुं० [सं० ] पक्षी । चिड़िया [को॰] । फुकना'-कि० प्र० [हिं० ] दे० 'फुकना। ३. नष्ट होना । घरवाद होना । व्यर्थ खर्च होना । जैसे,—इतना रुपया कुंक गया। ४. मुह की हवा भरकर निकाला जाना । फुकना-सज्ञा पुं० दे० 'फुकना। फुकना-संज्ञा पुं० १. वाँस, पीतल आदि की नली जिसमें मुह की फुकनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'फुकनी' । भरकर आग पर छोड़ते हैं । फुकनी। २. प्राणियों के शरीर फुकली-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] फोकला । छिलका । का वह अवयव जिसमें मूत्र रहता है । यह पेड़ फुकाना -क्रि० स० [हिं० ] दे० 'फुकाना' । होता है। फुगों-सज्ञा पुं० [ फा० फुगाँ ] पार्तनाद । दुहाई। उ०—(क) जबा फॅकनी--संज्ञा सी० [हिं० फूंकना] १. नली जिसमें मुंह की हवा भी खैच लेना तुम, अगर मुंह से फुगा निकले ।-श्यामा० भरकर आग पर इसलिये छोड़ते हैं जिसमें वह दहक जाय । (५०), पृ० १४ । (ख) तड़पते हैं फुगां करते हैं और करवट २. भाषी। बदलते हैं। -भारतेंदु० ग्रं, मा० २, पृ० ८४८ । फुकरना-क्रि० प्र० [स० फूत्कार, हिं० फुकार ] फूत्कार छोड़ना । फुचड़ा-सज्ञा पुं॰ [देश० या अ० फुक्लह, ( = बचा हुआ, फालतू)] फूफू शब्द करना । मुह से हवा छोड़ना । फपहे, दरी, कालीन, चटाई प्रादि वुनी हुई वस्तुप्रो में बाहर निकला हुआ सूत या रेशा । जैसे,-पान में जो जगह जगह फुकवाना-क्रि० स० [हिं० फूंकना का प्र० रूप ] १. फूकने का फुचड़े निकले हैं उन्हें कैची से काट दो। काम कराना। २. मुह से हवा का झोंका निकलवाना । क्रि० प्र०-निकलना। ३. जलवाना। भस्म करवाना। फुजला-सञ्ज्ञा पुं० [अ० फाजिल का बहु० फुपलह, ] १. अतिरिक्त फुकाना,-क्रि० स० [हिं० फूंकना का प्रे० रूप ] फूकने का या शेष भाग । फालतू घंश । २. सीठी। ३. मैल । काम कराना। फुजूल-वि० [ म० अजूल ] दे॰ 'फजूल'। फुकार-संशा पुं० [ अनु० ] साप वैल प्रादि के मुह वा नाक के यौ०-फुजूलखर्चअपव्ययी । फुजूलखर्ची = अपव्यय । नथनो से बलपूर्वक वायु के बाहर निकालने से उत्पन्न शब्द । फूत्कार। फुट -वि० [सं० स्फुट ] १. जिसका जोड़ा न हो। मयुग्म । इंदना-सञ्ज्ञा पु० [हिं० फूल + फंद ? या देश०] १. फूल के प्राकार समूह या अवयवी से फूया। अलग जा पड़ा हुप्रा । एकाकी। की गांठ गो बद, इजारबंद, चोठी बांधने या धोती कसने की अकेला । २ जो लगाव में न हो जो किसी सिलसिले में डोरी, झालर प्रादि के 'छोर पर शोमा के लिये बनाते हैं। म हो। बिसका संबंध किसी क्रम या परंपरा से न हो। फुलरा । झब्बा । उ०-उठी सो धूम नयन गरुवानी। लागी पृथक् । अलग पर प्राँसु बहिरानी। भीनै लागि चुए कठमुदन | भीजै भंवर ०-फुटमत । कमल सिर कुंदन । —जायसी (शब्द०)। २. तराजू की फुट–संज्ञा पुं० [ अं० फुट ] पायत विस्तार का एक अंग्रेजी मान । डडी के बीच की रस्सी की गांठ। ३. कोड़े की डोरी के छोर लंबाई, चौड़ाई मापने की एक माप जो १२ इच या ३६ / पर की गांठ । ४. सूत आदि का बँधा हुआ गुच्छा या फूल जो के बराबर होती है। शोभा के लिये डोरियों मादि में लटकता रहता है। झब्बर । फुट-संज्ञा पु० [सं०] साँप का फन [को०] । पुंदिया--संज्ञा स्त्री० [हिं० फूंदना ] १. झब्बा । फूलरा । फुदना'। फुटकर'-वि० [सं० स्फुट + कर = ( प्रत्य॰)] १. मयुग्म । २. दे० 'फुदना' । उ०-फुदिया और कसनिया राती। छायल- विषम । फुट। जिसका जोड़ा न हो । एकाकी। अकेला । वंद लाए गुजराती।--जायसी (शब्द०)। २. अलग। पृथक् । जो लगाव में न हो। जिसका कोई सिलसिला न हो । जैसे, फुटकर कविता । ३. भिन्न भिन्न । फॅदी'-संज्ञा स्त्री० [हिं० फंदा सं० बन्ध ? ] फंदा । गांठ । उ० कई प्रकार का । कई मेल का। ४. खड बंड । थोड़ा थोड़ा। लीन्ही उसास मलीन भई दुति दीन्दी फुदी फुफुदी की छिपाइ इकट्ठा नहीं। थोक का उलटा। जैसे,—(क) वह फुटकर. ।-देव (शब्द०)। सौदा नही घेचता। (ख) चीज इकट्ठा लिया करो फुटकर उंदी-सशा स्त्री० [हिं० बिंदी ] विदी। उ०-सारी लेने में ठीक नहीं पड़ता। लठकति पाट की, बिलसति फुदी लिलाट ।-मति• प्र०, फुटकर-संज्ञा पुं० खुदरा । रेजगारी । पृ० ४५२ । फुटकल-वि० [हिं० ] दे० 'फुठकर' । फु-संज्ञा पुं० [सं०] १. मंत्र पढ़कर फूकने की ध्वनि । मंत्र पढ़कर फुटका'-संज्ञा पु० [ स० स्फोटक ] १. फफोला। छाला । मावला । टीका।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६३
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