सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फुल्लतुवरी ३३०८ फुही फुल्लतुवरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] म्फाटिका | फिटकिरी यो । रखने के लिये किसी प्रकार उनका ध्यान दूसरी ओर ले जाना। फुल्लदाम-संशा 'पु० [ म० फुल्लदामन् ] उन्नीस वर्ण की एक वृत्ति भुलाकर शात और चुप रखना। वहलाना । जैसे,-बच्चों जिमके प्रत्येक चरण मे ६.७ ८ ९, १०, ११ और २७ वा को फुमलाना सब नही जानते । २. अनुकूल करने के लिये वर्ण लघु होता है। मीठी मीठी बातें कहना। किसी बात के पक्ष में या किसी फुल्लन-सज्ञा पु० [स०] वायु से फुलाने का कार्य या स्थिति [को०] । पोर प्रवृत्त करने के लिये इधर उधर की बातें करना । भुलावे की बातें करना। चकमा दना । झांसा देना। बहकाना । फुल्लना-शि० प्र० [हिं०] दे० 'फूलना' । उ० -- रस रंग सरोज सु फुल्लि रहै । रासो, पृ० २१ । उ०-बुद्धि को निकाई कछु जाति है न गाई लाल ऐसी फुसलाई है, मिलाई लाल उर सो।-रघुनाथ (शब्द०)। फुलाफाल-सज्ञा पुं० [सं० ] पछोरने के समय सूप या छाज से ३. मीठी मीठी बातें करके किसी ओर प्रवृत्त करना । भुलावा उत्पन्न वायु (को०)। देकर अपने मतलब पर लाना । जैसे,—(क) वह हमारे फुल्लरीक-सज्ञा पु० [सं०] जिला । शहर । भूमिभाग । २. सांप । नौकर को फुसला ले गया। (ख) दूसरे फरीक ने गवाहो को सपं को। फुसला लिया। फुल्ला -सज्ञा पु० [हिं० फूल ना ] १ मक्के या चावल आदि की संयो० कि०-लेना। भुनी हुई खील । लावा । २. दे० 'फूली' । ४. मनाना । संतुष्ट करने के लिये प्रिय और विनीत वचन फुल्लि-संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] फूलना । खिलना [को०] । कहना । उ०-राजा ने उन ब्राह्मणो के पांव पड़ पड़ अनेक फल्लिरा-वि० [सं० प्रफुल्लित ] प्रफुल्लित । प्रसन्न । उ०-सहजो भांति फुसलाया समझाया, पर उन तामसी ब्राह्मणो ने राजा गुरु किरपा करी कहा हूँ मैं खोल । रोम रोम फुल्लित भई का कहना न माना ।-लल्लू (शब्द० DI मुखै न पावै बोल |-सहजो० बानी, पृ० ११ । फुहकार@t-सज्ञा पु० [ अनुध्व० या भ० फूत्कार, हिं० फुफकार ] फुल्ली-सज्ञा स्त्री० [हिं० फूल ] १. फुलिया । २. फूल के प्राकार उपेक्षा । फटकार । उ०-पान सुने फुहकार करत है झूठी का कोई प्राभूपण या उसका कोई भाग । बातन ज्ञाता।-सं० दरिया, पृ० १३८ । फुवारा-संज्ञा पु० [ हिं० ] दे० 'फुहारा' । फुहर-वि० स्त्री॰ [हि. फूहड़ । वेशऊर। फुस-संशा स्रो० [ पनु० ] वह शब्द जो मुंह से साफ फूटकर न फुहरिया+-वि० स्त्री० [हिं० फूहड़, फूहर + इया ( प्रत्य॰)] निकले । बहुत धीमी प्रावाज । फूहड़ । बेशकर । उ०-नैहर में कछु गुन नहिं सोख्यो ससुरे में यौ०-फुस फुस = (१) फेफडा । फुप्फुस । (२) साफ साफ न भई फुहरिया हो । अपने मन की बड़ो कुलवती छुए न पावै सुनाई पडनेवाली धीमी आवाज । गगरिया हो।-पलद वानी, भा० ३, पृ० ३८ । मुहा०-फुस फुस करना = बहुत मंद स्वर में बात करना । फुहसा --सज्ञा पु० [अ० फह श या फ़ाहिश ? ] प्रश्लील या प्रशिष्ट । फुसफुसाना । उ०-मृतक के कान में भी थीडो देर फुस फुस उ०-सत्त सो एक अवलब करु पापनो, तजो वकवाद बहु करें, तो वह भी उठकर नाचने लगे।-प्रेमघन०, भा० २, फुहस कहना ।-भीखा० श०, पृ० ६४ । पृ० ८० । फुस से = बहुत धीरे से अत्यत मंद स्वर से। जैसे.-जो बात होती है वह उसके पास जाकर फुस से कह फुहार-संज्ञा पुं० [ स० फूत्कार ( = फूंक से उठा हुआ पानी का बींटा या बुलबुला) या अनु० मू• देश०] १. पानी का महीन आता है। बारि फुहार भरे बदरा छीटा। जलकरण । २. महीन बूंदों फुसकारनाg+-क्रि० प्र० [अनु० ] फूक मारना। फूत्कार की झड़ी। झीसी । उ०-सोइ सोहते कुंजर से मतवारे । छोड़ना । उ०-ऐसो फैल परत फुसकारत मही मे मानों -श्रीधर (शब्द०)। तारन को वृद फूतकारत गिरत है।-पद्माकर (शब्द॰) । क्रि० प्र०-पड़ना। फुसकी-संज्ञा स्त्री॰ [ फुस से अनु० ] अपान वायु । पाद । गोज । फुहारा-संज्ञा पुं० [हिं० फुहार ] १. जल का महीन छीटा। २. फुसड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'फुचडा' । जल की वह टोंटी जिसमें से दबाव के कारण जल की महीन फुसफुसा-वि० [हिं० फूल, अनु० फुस ] १. जो दबाने मे बहुत धार या छीटे वेग से ऊपर की ओर उठकर गिरा करते हैं। जल्दी चूर चूर हो जाय । जो कहा या करारा न हो । नरम । जल के छोटे देनेवाला यंत्र । जलयंत्र । उ०—फहरै फुहारे, ढीला । २. फुस से टूट जानेवाला । कमजोर । ३. जो तीक्ष्ण नीर नहरै नदी सी वई, छहरै छबीली छाम छोटिन की छोटी न हो । मदा । मद्धिम । जैसे, फुसफुसा तंबाकू । है ।-पद्माकर (शब्द०)। फुसफुसाना-क्रि० स० [ अनु० ] फुस फुस करना। इतना धीरे फुहिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० फुही ] दे० 'फुही' । कहना कि शब्द व्यक्त न हो। बहुत ही दबे हुए स्वर से फुही-सशा स्त्री॰ [ हिं० फुहार ] १. पानी का महीन चींटा । सूक्ष्म बोलना या कुछ कहना। जलकण । २. महीन महीन बूदों की झड़ी। झीसी । उ०- फुसलाना-क्रि० स० [हिं० फिसलाना या देश०] १. वच्चों को शांत (क) सुर वरसत सुदेश मानौ मेघ फुही। मुख मंडित रोरी ।