पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/७०

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३३०१ क . । रंग सेंदुर मांग छुही।- सूर (शब्द०)। (ख) फूलि भरे कर बजाना । जैसे, शंख फूकना । ४. मुंह की हवा छोड़कर अंग पूरे पराग, परे रसरूप की चार फुही सो।-(शब्द०)। दहकाना। फूककर प्रज्वलित करना । जैसे, प्राग फूकना । फूंक-संज्ञा स्त्री॰ [ अनु० फू फू] १. मुंह को बटोरकर वेग के ५. जलाना । भस्म करना। उ०-या पयाल को फूकिए साथ छोड़ी हुई हवा। वह हवा जो अोठों को चारों ओर से तनिया लाई प्राग । लहना पाया हूँढता धन्य हमारा दवाकर झोंक से निकाली जाय । जैसे,—वह इतना दुबला भाग ।-कबीर (शब्द०)। पतला है कि फूक से उड़ सकता है । संयो॰ क्रि०-डालना ।—देना । उ०-ताको जननी की गति दीनी परम कृपाल गोपाल । दीन्हीं फूकि क'ठ तन वाको मुहा०-फूंक मारना - जोर से मुंह की हवा छोडना । जैसे, मिलि के सकल गुवाल |-सूर (शब्द०)। प्राग दहकाने या दिया बुझाने के लिये । ६. धातुनों को रसायन की रीति से जड़ी बूटियो की सहायता २. सांस । मुह की हवा । उ० -कुंवर और उमराव बने बिगरे से भस्म करना । जैसे, सोना फूकना, पारा फूकना । ७. कछु नाही । फूक माहिं वे बनत फूक ही सो मिटि जाही नष्ट करना । बरबाद करना । व्यर्थ व्यय कर देना । फजूल श्रीधर (शब्द०)। खच कर देना। उडाना । जैसे, धन फूंकना, रुपए पैसे मुहा०-फूक निकल जाना = दम निकल जाना । प्रारण फूकना । निकल जाना। संयो॰ क्रि०-डालना ।—देना । । ३. मंत्र पढ़कर मुंह से छोड़ी हुई वायु जो उस मनुष्य की प्रोर यौ०-फूंकना तापना = व्यर्थ खर्च कर देना । उड़ाना । छोड़ी जाती है जिसपर मंत्र का प्रभाव डालना। होता है । ८. जलाना । सताना | दु.ख देना । ६. चारों ओर फैला देना । उ०-परम परब पाय, हाय जमुना के नीर पूरि के पराग प्रकाशित कर देना । जैसे, खबर फूक देना। अंगराग के अगर तें। द्विजदेव की सौं द्विजराज अंजली 'का-सशा पु० [हिं० फूक ] १. भाथी वा नली से आग पर के काज जो ली चहै पानिप उठाय कंज कर तें। तो फूफ मारना। फूक मारने की क्रिया। २. बांस की नली में लौ वन जाय मनमोहन मिलापी कहूँ, फूक सी चलाई जलन पैदा करनेवाली पोषधियां भरकर और उन्हें स्तन में फूकि बांसुरी अघर तें। स्वासा काढो नासा तें, वासा लगाकर फूकना जिससे गाएँ स्तन में दूध चुरा न सके पौर तें भुजाएं काढी अंजसी न अंजली तें, पाखरी न गर ते । उनका सारा दूध बाहर निकल पाए । -द्विजदेव (शब्द०)। क्रि० प्र०-देना ।-मारना । यौ० - माढक = मंत्र यंत्र का उपचार । ३. बाँस आदि की नली जिससे फूका मारा जाता है । ४. क्रि० प्र०-चलाना।-मारना । फोड़ा. फफोला। ४. गांजा, तंबाकू प्रादि का कश । फूंकारना।-क्रि० अ० [हिं० फुकार से नाम० ] दे॰ 'फुकारना । उ.-काले नाग फन फैलाए फूकारते । --प्रेमधन०, भा० २, फेंकना-क्रि० स० [हिं० फूक ] १. मुह को बटोरकर वेग के पृ०१३। साथ हवा छोड़ना । अोठो को चारों ओर से दवाकर झोंक से हवा निकलना । जैसे,—(क) यह बाजा फूकने से बजता फूंद-सञ्ज्ञा स्त्रो० [हिं० फूल + फद ] फुदना । फुलरा। झब्बा। है। (ख) फूंक दो तो कोयला दहक जाय । (ग) उसे फूक उ० - प्रागी कसै, उकसै कुच ऊंचे हसे हुलसै फुफुदीन की दो तो उड़ जाय । उ०-पुनि पुनि मोहिं दिखाइ कुठारू । फू'दै । -- देव (शब्द०)। चहत उड़ावन फूंकि पहारू।-तुलसी (शब्द०)। फूंदा-संज्ञा पु० [हिं०] १. दे० 'फुदना' । उ०—(क) रत्न जटित गजरा बाजूबंद शोभा भुजन अपार । फूंदा सुभग विशेष-जिसपर वायु छोड़ी जाती है वह इस क्रिया का कर्म फूल फूले मनो मदन विटप की डार । —सूर (शब्द०)। होता है, जैसे,—गदं फूक दो, उड़ जाय । (ख) मोहन मोहनी अंग सिंगारत । बेनी ललित ललित कर संयो॰ क्रि०-देना। गूथत निरखत सुदर । मांग संवारत सीसफूल परि पारि मुहा०—क फूककर पैर रखना या चलना = (१) वचा वचा- पोछत फूदन झवा निहारत । —सूर (शब्द०)। कर चलना । पैर रखने के पहले जगह को फूक लेना जिसमें यौ०-फूंद दारा = फूदनेवाला । फुलरेवाला। उ०-हाथ हरी चीटी आदि जीव हट जायें, पैर के नीचे दबकर न मरने हरी छाजै छरी अरु जूती चढ़ी पग फू दफुदौरी।-देव पाएं। (२) बहुत बचाकर कोई काम करना । बहुत साव- (शब्द०)। घानी से कोई काम करना। कोई बात फॅकना = कान में २. फुफू दी । भुकड़ी। धीरे से कोई बात कहना । बहकाना । कान भरना। फू-संज्ञा स्त्री॰ [अनु० ] फूकने की ध्वनि या अावाज । २. मत्र प्रादि पढ़कर किसी पर फूक मारना । फूआ-संज्ञा स्त्री० [सं० पितृप्वसा] पिता की बहिन । वूआ। यौ०-झाड़ना फूंकना। फ्ई-संशा स्त्री० [हिं० फुही ] १. घी का फूल या बुलबुलों का समूह ३. शंख, वाँसुरी प्रादि मुंह से बजाए जानेवाले वाजों को फूक- जो तपाते समय ऊपर पा जाता है । २. फफूदी । भुकड़ी।