पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/८९

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बंगई ३३२८ चंदा १०-बंगनोश = भांग पीनेवाला । भैगेड़ी। बगफरोश = भांग पंचकता-संज्ञा स्त्री० [सं० वञ्चकत्ता ] छल । धूर्तता । चालवाजी । बेचनेवाला दूकानदार । भांग का ठेकेदार । बंचकताई-सज्ञा स्त्री० [सं० वञ्चकता + ई (प्रत्य॰)] दे० 'वचकता' । बंगई–संज्ञा त्री० [ स० वङ्ग ] एक प्रकार की बढिया कपास जो वंचन-संशा पु० [सं० वञ्चन ] छल । ठगपना । सिलहट मे बहुत पैदा होती है । वंचनता-संशा सी० [सं० वञ्चनता ] ठगी । छल । उ०-दम दान वंगड़-सज्ञा पु० [ देश० ] ६० 'बंगर'। उ०——भाथल मोताहला दया नहिं जानपनी । जड़ता पर वंचनताति घनी ।-तुलसी भरिया वप गिर मात । चंद्रवदन गज रतन में बंगड़ वणिया (शब्द०)। दांत ।-बांकी पं०, भा० ३, पृ० ७१ । पंचना-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० वञ्चना ] ठगी। धूर्तता । वंगनापाली-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक देशी मुसलमानी रियासत । वंचनाg+२-क्रि० स० [सं० वञ्चन ] ठगना । छलना । उ०- बंगर-संज्ञा पुं० [सं० वक्र, हिं० वंकुर या देश० ] हाथी के दांतों बंचेहु मोहि जौन धरि देहा । सोइ तनु धरह साप मम एहा। पर जड़ा हुमा 'प्राभूषण। हाथी के दांतों पर जड़े जानेवाले —तुलसी (शब्द०)। चाँदी, सोने, पीतल आदि के बंद । उ०-सिर दिघ्घ दिघ बंचना:-क्रि० स० [स० वाचन ] बाँचना । पढ़ना । दंतह सुभग, जरजराइ बंगरि जरिय । लष लष्ष दाम पावहि वंचर-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'वनचर' । पटै कनक साज हाजरु करिय।-पृ० रा०, ६ । १५५ । वंचित-वि० [सं० वञ्चित ] दे० 'वंचित' । बगलिया-सज्ञा पुं० [हिं० बंगाल ] १. एक प्रकार का धान । २. बंछना-कि० स० [ स० वाञ्छन ] अभिलाषा करना । इच्या एक प्रकार का मटर । करना । चाहना। उ०-फड्ढी हुसेन तुम देस पंत । बंछौ बंगली -सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] घोड़ा (डि० )। जो पेम मानौ सुमंत ।-पृ० रा०, ६।३२ । वंगसार-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] पुल की तरह बना वह चबूतरा जो दूर तक समुद्र में चला जाता है और जिसपर से लोग जहाज छाल-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० वाञ्छा ] इच्छा । वांछा । चाह ! उ०- पंछनीय-वि० [सं० वाञ्छनीय ] दे० 'वांछनीय' । पर चढते या उतरते हैं । वनसार । वंगा-वि० [ स० वर] १. टेढ़ा । २. मूर्ख । बेवकूफ । उ०-राम न तहां प्रकृति पुरुष नहिं इच्छा । न तहाँ काल कार्य नहि बंछा।-सुदर० प्र०, भा० १, पृ० ११३ । मनुज कस रे सठ वंगा।-मानस, ६।२५ । ३. लड़ाई झगड़ा करनेवाला । उद्दड । वंछित-वि० [ स० वाञ्छित ] दे० 'वांछित' । वगारी-सञ्ज्ञा पु० [ स० बङ्गारि ] हरताल (डिं० )। बंज'---संज्ञा पुं० [हिं० वनिज ] दे० 'बनिज' । बंगाल-संज्ञा पु० [ स० वङ्ग] १. वंग देश जो भारत का पूर्वी भाग बंज-संज्ञा पुं० [ देश० ] हिमालय प्रदेश का एक प्रकार का बलूत है । २. एक राग का नाम जिसे कुछ लोग मेघराग का और का पेड़ जिसकी लकड़ी का रंग खाकी होता है। इसको सिल कुछ भैरव राग का पुत्र मानते हैं । और मारू भी कहते हैं। बंगाला'-संज्ञा पुं० [सं० वग ] बंगाल देश । बंजर-संज्ञा पुं० [सं० वन+ ऊजह ] वह भूमि जिसमे कुछ उत्पन्न वगाला२-सज्ञा स्त्री० बंगालिका नाम की रागिनी । न हो सके । ऊसर । उ०—ज्ञान कुदार ले बंजर गोड़ें।- बंगालिका-सज्ञा स्त्री॰ [ देश०] एक रागनी जिसे कुछ लोग मेघ कवीर० श०, भा० १, पृ० १३६ । राग की स्त्री मानते हैं। वंजा-वि० [स० वन्ध्या, हिं० बाँझ ] बंध्या। बाँझ । उ०- बंगाली'-संज्ञा ० [हिं० बगाल + ई (प्रत्य॰)] १. बंगाल ब्यावर की पीर । बंजा करै क्या ज्ञान • गंजा- देश का निवासी । २. संपूर्ण जाति का एक राग । राम० धर्म०, पृ० ३७ । बंगाली--संज्ञा स्त्री० [हिं० बग] बंग देश की भाषा। बंगला । बंजारा-सज्ञा पुं० [ हिं० बनज+ श्रारा (प्रत्य॰)] दे० 'वनजारा' । वंगू-संज्ञा पु० [ देश० ] १. प्रकार की मछली जो प्रायः दक्षिण तथा बंजुल-संज्ञा पुं॰ [ स० वञ्जल ] अशोक का पेड़। स०-मंजुल बंगाल की नदियो मे होती है। २. भौरा या जंगी नामक बंजुल मंजरी दरसाई बदुराय । पीर भई ही सुधि गई तई खिलौना जिसे बालक नचाते हैं। मरोरे खाय।-स० सप्तक, पृ० २७५ । बंगोमा-संश पुं० [ देश० ] एक प्रकार का कछुप्रा जो गंगा और वंजुलफ-सञ्ज्ञा पु० [ स० वञ्जुलक ] दे० 'वंजुल'। सिंधु में होता है । इसका मांस खाने योग्य होता है । बंझा'-वि० [ स० बन्ध्या ] (वह स्त्री) जिसके संतान न हो। बांक। पंचक-सञ्ज्ञा पु० [सं० वञ्चक ] धूर्त । पाखंडी। ठगनेवाला । उ०-वंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन फोह काम बझार--संज्ञा स्त्री॰ वह स्त्री जिसके संतान पैदा करने की शक्ति न हो के।-मानस, १।१२। बांझ औरत। वंचकर-सज्ञा पुं० [ देश ] जीरे के रूप रंग तथा प्राकार प्रकार बंटना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'वांटना' । उ०-मंस अस की एक घास का दाना जो पहाड़ी देशों में पैदा होता है और तुट्टई बीर बंटई जु राज्यो।-पृ० रा०, १२।१०७ । जीरे मे मिलाकर वेचा जाता है। बंटा-संज्ञा पुं० [सं० वटक, हि०, बरा (= गोला)] [स्त्री०