पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बंदना ३३३० वंदानिवाजी मंगल कार्यों के समय द्वार प्रादि पर लटकाई जाती है । फूलों शक्ति भी अपेक्षाकृत बहुत होती है। चिपैजी, प्रौरंगउटैग, या पत्तों की झालर जो मंगल के सूचनार्थ द्वार पर या खंभों गिबन, लंगूर आदि सब इसी जाति के हैं। और दिवारों भादि पर बाँधी जाती है । तोरण । उ०-गज यौ०-बंदर की दोस्ती = ऐसी दोस्ती जिसमें हरदम होशियार रथ बाजि सजे नहीं, बंधी न बंदनवार । -भारतेंदु मं०, भा० रहना पड़े । उ०—जिससे बिगडे उसको तबाह कर डाला। १, पृ० १७६ । उनकी दोस्ती बंदर की दोस्ती थी।—फिसाना०, मा० ३, पृ० बंदना '-सशा नी० [सं० वन्दना ] दे० 'वंदना' । ८०। बंदरसत या बदरघाव घाव या चोट जो कभी न बंदना-कि० स० [सं० वन्दन ] प्रणाम सूखे (बंदरों का घाव कभी नहीं सूखता क्योकि वे उसे करना । नमस्कार करना । वंदना करना । उ०—(क) बंदउ सबहिं धरणि घरि बराबर खुजलाते रहते हैं )। बंदरघुडफी = ऐसी धमकी या - माथा ।-तुलसी (शब्द०)। (ख) सिव सिघ सुत हिमिगिरि डॉट डपट जो केवल डराने या धमकाने के लिये ही हो । सुता, विसुन दिवाकर बंद । -वाकी० ग्रं॰, भा॰ ३, ऐसी धमकी जो दृढ या बलिष्ठ से काम पडने पर कुछ भी प्रभाव न रख सकती हो। बंदरबाँट = किसी वस्तु को प्रापस पृ० १६। में छीन झपटकर वांट लेना। बंदना-क्रि० स० [सं० वन्धन ] बांधना। उ०-उद्दार चित्त दातार प्रति, तेग एक बंद विसव ।-पृ० रा०, ६।२ । बंदर-संशा पुं० [फा०] समुद्र के किनारे जहाजों के ठहरने के लिये बना हुप्रा स्थान । वंदरगाह । बंदनी'-मज्ञा स्त्री० [सं० घन्दनी (= माथे पर बनाया हा चिह्न) ] स्त्रियों का एक भूषण जो पागे की ओर से सिर पर पहना बंदरगाह-सञ्ज्ञा पु० [फा० ] समुद्र के किनारे का वह स्थान जहाँ जहाज ठहराते हैं। जाता है । इसे बंदी या सिरबंदी भी कहा जाता है । वंदरवार--सज्ञा० पुं० [हिं बदरवार ] दे० 'वंदनवार' । उ०- बंदनी-वि० [सं० चन्दनीय ] दे० 'वंदनीय' । उ०-गौरीसम जग बिराजत मुतिन बदरवार | मनों भुपान मयूष प्रचार । वंदनी, नारि सिरोमणि पाप ।-रघुराज (शब्द॰) । -पृ० रा०, २१॥ ३८ । वंदनीमाल -संज्ञा० स्त्री० [सं० वन्दनीमाल ] वह लंबी माला जो बंदरकी, बंदरी-संज्ञा स्त्री॰ [फा बंदर( = समुद्रतट)] एक प्रकार की गले से पैरों तक लटकती ही। उ०-अंजन होइन लसत तो तलवार । उ०—(क) विज्जुल सी चमकै घाइन घमक ढिग इन नैन बिसाल । पहिराई जनु मदन गुहि श्याम बंदनी तीखन तमकै बंदरकी।-पद्माकर ग्रं०, पृ० २७। (ख) माल ।-स० सप्तक०, पृ० १६१ । बंदरी सुखग्गै जगमग जग्गै लपकत लग्गै नहिं बरकी।- बंद बंद-संज्ञा पुं० [फा०] शरीर का एक एक जोड पद्माकर पं०, पृ० २७ । बंदर-संज्ञा पुं० [सं० वानर ] एक प्रसिद्ध स्तनपायी चौपापा जो बदली-मज्ञा पुं॰ [ देश० ] रुहेलखंड में पैदा होनेवाला एक प्रकार का अनेक बातों में मनुष्य से बहुत कुछ मिलता जुलता होता है । धान जिसे रायमुनिया और तिलोकचंदन भी कहते हैं । पर्या-कपि । मर्कट | वनीमुख । शाखामृग । बवान-संज्ञा पुं॰ [ सं०वन्दी+वान ] बंदीगृह का रक्षक । कैदखाने विशेष - इसकी प्रायः पैतीस जातियाँ होती है जिनमें से कुछ का अफसर । एशिया और योरप और अधिकांश उत्तरी तथा दक्षिणी वदसाला-सज्ञा पु० [ स० वन्दिशाल ] वव स्थान जहाँ कैदी रखे अमेरिका मे पाई जाती हैं। इनमें से कुछ जातियाँ तो बहुत जाते हो । बंदीगृह । कैदखाना । जेल । ही छोटी होती हैं । इतनी छोटी कि जेब तक में पा सकती बदा'-संज्ञा पु० [फा० बंदह ] १. सेवक । दास । जैसे ये सब खुदा हैं । कुछ इतनी बड़ी होती हैं कि उनका प्राकार प्रादि मनुष्य के बंदे हैं। २. शिष्ट या विनीत भाषा में उत्तम पुरुष, क पाकार तक पहुंच जाता है। छोटी जातियों के बदर चारो पुलिंग 'मैं' के स्थान पर प्रानेवाला शब्द । जैसे,-बंदा हाथो पैरों और बडी जातियों के दोनों पैरों से चलते हैं। हाजिर है, कहिए क्या हुकुम है ? प्रायः सभी जातियां पेड़ों पर रहती हैं। पर कुछ ऐसी भी होती हैं जो वृक्षो के नीचे किसी प्रकार की छाया प्रादि का बदा-सज्ञा पुं० [सं० वन्दी] बंदी। कैदी। बंधुषा । उ०- प्रबंध करके रहती पौर जंगलों प्रादि में घूमती हैं। प्रायः छदहि छंद भएउ सो थंदा। छन एक मांहि हंसी रोवंदा। सभी जातियों के बंदरों की शारीरिक गठन प्रादि मनुष्यों की जायसी (शब्द०)। सी होती है। इसलिये ये वानर (प्राधे मनुष्य ) कहे जाते बंदाजादा-संज्ञा पु० [फ़ा बंदाजादह ] [ सी० बंदाजादी ] सेवक- हैं। ये केवल फल पौर पन्न प्रादि ही खाते हैं। मांस पुत्र । दासपुत्र । गुलामजादा । उ०-खडा हूँ दरबार तुम्हारे बिल्कुल नहीं खाते । कुछ जातियों के बंदरों के मुख में ३२ ज्यों घर का वंदाजादा ।-मलक०, पृ०६। और कुछ के मुह में ३६ दाँत होते हैं। इनमें बहुत कुछ बुद्धि बंदानिवाज-वि० [ फा० वंदानिवाज ] सेवकों पर कृपा भी होती है और ये सहज में पाले तथा सिखाए जा सकते करनेवाला। हैं । प्रायः सभी जातियों के बंदर झुडो में रहते हैं, अकेले बंदानिवाजी-संज्ञा स्त्री० फा० बंदानिवाजी ] कृपा । अनुग्रह । नही । ये एक बार में केवल एक ही बच्चा देते हैं। इनमें दया।