पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बैदानी धंदूक कैद। बदानी-संज्ञा पुं० [ देश०] १. गोलंदाज । तोप चलानेवाला। काल में राजाभों का कीतिगान किया करती थी। भाट । (लश्करी)। २. एक प्रकार का गुलाबी रंग जो पियाजी रंग चारण। से कुछ गहरा मोर असली गुलाबी रंग से बहुत हलका बंदी-संज्ञा स्त्री० [सं० चन्दी (= कैदी) ] बंदी होने की दशा । होता है। बदापरवर--वि॰ [ फा० बंदापर्वर ] दीनबधु । बदी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० वंदिनी ] एक प्रकार का पाभूषण जिसे बंदापरवरी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० बंदापवंरी] दे० 'बंदानिवाजी' । उ० स्त्रियां सिर पर पहनती हैं। दे० 'पंदनी'। उ०-चटकीले टुक वली को सनम गले से लगा। तुझको है बंदापरवरी की चेहरे पर बंदी छवि दे दी त्यौ।-नट०, पृ० ११० । कसमा-कविता को०, भा० ४, पृ० ५। वंदी -संज्ञा स्त्री॰ [फा० यंद+हि० ई (प्रत्य०) ] दुकान प्रादि बंद बंदारु'-वि० [सं० वादारु ] १. वदनीय । वदन करने योग्य । २. होने, काम काज स्थगित होने या किसी कार्य के रुक जाने पूजनीय । पादरणीय। उ०-देव ! बहुल वृदारका वृद की स्थिति। बदारु पद वदि मदार मालोरधारी। -तुलसी (शब्द०) । बंदो"-सञ्ज्ञा पु० [फा०] कैदी । बदारु-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बंदाल'। 10-बदीघर । बंदीखाना । वदीछोर । बदालू- संज्ञा पु० [ देश० ] देवदालो । धधरवेल | वंदी-सज्ञा स्त्री फा०] [बंदा का स्त्री.] दासी । चेरी। बदि'–सम्म स्त्री० [सं० दन्दि ] १. कैद । कारानिवास । उ०-बेद बदीखाना--संज्ञा पुं॰ [ फा बंदीखानह ] कैदखाना । जेलखाना । लोक सबै साखी, काहु की रती न राखी, रावन को बंदि बंदीघर-संज्ञा पुं॰ [स० बन्दीगृह ] कैदखाना । जेलखाना। चागे पमर मरन । —तुलसी (शब्द॰) । २. कैदी। बंधुषा। बंदीछोर+-संशा पुं० [सं० धन्दी+हिं० छोर ] १. कैद से छुड़ाने- बदिर-सज्ञा पुं० [ स० वन्दिन् ] भाट । चारण। उ०-बंदि वाला । २. बधन से मुक्त करानेवाला । उ०—(क) विनय मागघन्हि गुन गन गाए।-मानस, १।३५८ । दोउ कर जोर, सतगुरु बंदीछोर हैं। -कवीर सा० सं०, बदिर-संज्ञा पु० [फा० बंदी ] बदी । कैदी । पृ० १२ । (ख) वेद जस गावत विवुष वंदीछोर को।- तुलसी प्र०, पृ० २४८ । यौ०-वदिखाना= बदीखाना । कैदखाना। उ०-पाँचि जने पर- बल परपंची उलटि परे वैदिखाने ।-सतवाणी०, भा० २, बंदोजन-सज्ञा पुं० [सं० वन्दी+जन ] बंदी। चारण । उ०-प्रथम विधाता ते प्रकट भये बदीजन ।-प्रकवरी०, पृ० ११४ । पृ० १२८ । बदिगृह = बदीखाना। उ०-भरतु वदिगृह सेइहहि लखनु राम फ नेव । —मानस, २।१६ । बंदिछोर = बंदीवान-संज्ञा पु० [सं० वन्दि+वान् ] फैदी। उ०—(क) मा दे० 'बदिछोर'। उ०-उथपे थपन थपे उथपन पन विबुध वृंद को क्या रोहए जो अपने घर जाय । रोइय वदीवान को जो बदिछोर को -तुलसी ग्र०, पृ० ४०० । हाट हाट बिकाय । -कबीर (शब्द॰) । (ख) दादू बंदीवान है, वदीछोर दिवान ।-दादु (शब्द०)। घदिग्राह-सज्ञा पु० [ स० बंदियाह ] सेंघ मारनेवाला चोर । बंदुवा-संञ्चा पु० [हिं० ] दे० 'घुमा'। उ०-तब बीरा ने विनती लुटेरा [को०] । करि के श्री सत्या जी सों कही, वो महाराज ये राजद्वार के वदित्व-सज्ञा पु० [स० वन्दित्व ] कैद होने की स्पिति । बधन में बंदुवा है ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १२६ । होना । उ०-न हुष है, है केवल शक्तिनाशक थम । बदित्व है।-गोदान, पृ०४। बंदूक-संशा पुं० [अ० बदूक ] नली के रूप का एक प्रसिद्ध अस्त्र जो धातु का बना होता है। एक माग्नेय अस्त्र । बदिपाल-सञ्ज्ञा पुं० [स० बन्दिपाल ] कारागार का अधिकारी। विशेष-इसमें लकड़ी के कुदे में लोहे को एक लबी नली लगी जेलर [को०)। रहती है। इसके पीछे की मोर थोड़ा सा स्थान बना होता है बंदिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० बदिनी ] बंदी नामक भूषण जो स्त्रियाँ जिसमें गोली रखकर बारूद या इसो प्रकार के किसी और सिर पर पहनती हैं। उ०-हाथ गहे गहिही हठ साथ जराय विस्फोटक पदार्थ की सहायता से चलाई जाती है। इसमे से की बदिया बेस दुसाला ।-(शब्द०)। गोली निकलती है जो अपने निशाने पर जोर से जा लगती है। इसका उपयोग मनुष्यों को प्रोर दूसरे जीवों को मार बंदिश-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. बांधने की क्रिया या भाव । २. डालने अथवा घायल करने के लिये होता है। आजकल प्रबध रचना । योजना । जैसे,-शब्दों की कैसी अच्छी साधारणतः सैनिकों को युद्ध में लड़ने के लिये यही दी जाती बदिश है। ३. षड्यंत्र । साजिश । ४. रुकावट । रोक हैं। यह कई प्रकार की होती है। जैसे, कड़ाबीन, राइफल, (को०) । ५. ग्रंथि । गांठ (को०)। मन, मशीनयन, (यंत्रचालित ), स्वचापित, पाटोमेटिक गन, क्रि० प्र०-धाधना । जैसे,—उन्हें फंसाने के लिये बड़ी बड़ी स्टेनगन, मादि। बदिशेधी गई हैं। क्रि० प्र०-चलाना ।-छोड़ना ।-दागना।-भरना । घदो-संशा पुं० [सं० बन्दिन ] १. चारणों को एक जाति को प्राचीन मुहा.-बंदूक भरना= बदूक चलाने के लिये उसमें गोली