कन या फला भी माटवाधव ३८६८ मात्सरिक विशेप-मिताक्षरा के अनुसार माता को फूग्रा, माता की मौमी मात्रा- संशा पी. स०] १ परिमाण। मिक्दार । जने,-इसमें और माता के मामा की सतान मातृवधु कही जाती है । पानी को माया अधिक है। २ एक बार पाने योग्य पीपय । - सज्ञा पुं० [सं० मातृवान्धव ] दे० 'मातृवधु' । ३ उतना काल जितना एक हम्ब अक्षर का उच्चारण करने मातृवांधव मे लगता है। मातृभक्त- वि० [सं० माता का अनुगत । माता का भक्त (को०] । विशेष-छदशाम्र मे इने मत्त, मत्ता, मातृभापा-सज्ञा स्त्री० [ स०] वह भापा जो वालक माता की गोद कहते हैं। मे रहते हए बोलना सीखता है। माता पिता के बोलने की और सब से पहले सीखी जानेवाली भापा । ४ वारहखटी लिखाते समय यह स्वरगृचक रेखा जो अक्षर के ऊपर नीचे या पागे पीछे लगाई जाती है।" किमी चीज का मातृभूमि-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] मातारूपी धरती । स्वदेश । जन्मभूमि । कोई निश्रित छोटा भाग । ६ हाथी, घोडा श्रादि । परिच्छद । मातृमडल-सज्ञा पुं० [सं० मातृमण्डल ] १ दोनो आँखो के बीच का ७ कान मे पहनने का एक श्राभूपण। ८ इद्रिय जिसके द्वाग स्थान । २ मातृकागण । विपया का अनुभव होता है । ६ शक्ति । १ इद्रियो की वृत्ति । मातृमाता- मज्ञा सी० [सं० मातृमातृ ] १ माता की माता । नानी। इद्रियवृत्ति (को०)। ११ घन । द्रव्य (को०)। १३ शिलोच्चय । २ दुर्गा । पर्वत (को०)। १४ अनयन । अग। १५ प। मृक्ष्म रूप । मातृमुख वि० [सं०] अनाडी । मूर्य । अज्ञ । १६ मगीत मै गीत ग्री-वाद्य का गमय निरूपित करने के मातृयज्ञ सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का यन जो मातृकानो के लिये उतना काल जितना एक स्वर के उच्चारण मे लगता है। उद्देश्य से किया जाता है। विशेप-क हम्व स्वर के उच्चारण मे जितना समय लगता मातृरिष्ट- सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] फलित ज्योतिष के अनुमार एक दोप जो है उसे 'ह्रस्व माना' कहते हैं, दो ह्रस्व म्वरो के उच्चारण में सतान के ऐसे बुरे लग्न मे जन्म लेने से होता है जिसके कारण जितना समय लगता है, उसे 'दीर्घ मामा' कहते हैं, और तीन माता पर सकट श्रावे या उसके प्राण चले जायं। अथवा उगसे प्रधिक स्तरो को उच्चारण में जितना समय मातृवत्सल-सज्ञा पुं॰ [ स० ] कार्तिकेय । लगता है, उसे 'प्लुत मात्रा' कहते हैं । मातृवध-सज्ञा पु० [सं०] माता की हत्या करना। मात्राच्युतक-सज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार की काव्यरचना जिसकी विशेप-यह वौद्धो के अनुसार पांच महापापो मे है और अक्षम्य कोई माया हटा देने से दूमग अर्थ हो जाता है। अपराध होने से इसका फल भोगना ही पड़ता है। मात्राभस्त्री-राशा मी० [सं० ] धन या रपए आदि रखने की थैली। मातृवाहिनी- सज्ञा सी० [ सं० ] एक प्रकार की चिडिया । वल्गुला । चमगादड [को०] । मात्रालाभ-पसः पुं० [ स०] द्रव्य की पाप्ति या उपलब्धि । मातृवियोग-सज्ञा पु० [सं० माता का विछोह वा वियोग । मात्रावस्ति-सज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] वैद्यक की एक क्रिया जिममे गेगी मातृशासित-वि० [ सं० ] मूर्ख । मातृमुख । को दस्त कराने के लिये उमझी गुदा मे पिचकारी आदि से मातृष्वसा सज्ञा सी० [सं० मातृप्वस्] माँ की वहन । मासी । मौमी। तेल आदि मिला हुआ कोई तरल पदार्थ भरते हैं । मातृष्वसेय - सज्ञा पुं॰ [ स०] [ सी० मातृप्देसेयी ] माता की वहन मात्रावृत्त-संज्ञा पुं० [सं० ] वह काव्य जिममे मायानो की गणना का लडका । मौमेरा भाई । की जाय । मागिक छद । जमे, पार्या । मातृ ष्वसयी-राशा खी० [ ] मौसेरी बहन । मौसी की लडकी । मात्रासमक-मग पुं० [सं० ] एक छद जिसके प्रत्येक चरण मे १६ मात्राएं और अत मे गुरु होता है । मातृष्वस्रीय-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] [सी० मातृप्वस्रीया ] मातृष्वसेय । मौसेरा भाई [को०)। विशेप-चौपाई नामक छद के मनगमक, बानवामिका, चित्रा और विश्नोक नामक चार भेद इसी के अतर्गत है । मातृसपत्नो-सशा सी० [सं० ] सौतेनी माता । विमाता । मानास्पर्श- ] माता का दूध | -नशा पु० [ से० ] अपने अपन विषय के साथ इद्रियो का मातृस्तन्य-सञ्ज्ञा पुं० [ सयोग । इद्रियनुत्ति [को०) । मातृहता-वि० सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मातृहन्त ] २० 'मातृघाती' । मात्रिक - वि० [स०] १ मात्रा मवधी । मात्रा का । जैसे, एकमात्रिक । माहीन-वि० [ स० ] माता से रहित । जिसकी मां गत हो गई हो। २ मात्रानो के हिसाववाला। जिसमे मात्रामो की गणना विना माँ का। की जाय । जैसे, मानिक छद । मात्र- अव्य० [सं० ] केवल । भर । सिर्फ। जैसे, नाममात्र, तिल मात्र । उ० - (क) रहे तुम सल्य कहावत मात्र । अवै सह यौ० - मानिकछद = दे० 'मात्रावृत्त' । सल्य करी सब गाय । -गोपाल (शब्द०)। (ख) केवल भक्त मात्रिका-सज्ञा सी० [सं०] दे० 'मातृका-३, ४, ५'। चारि युग केरे । तिनके जे है चरित घनेरे । सोई मात्र कथौं यहि मात्सर-वि० [सं०] [ वि० सी० मात्सरी ] मत्सर युक्त । माहीं । कछुक कथा उपयोगिन काही।- रघुराज (शब्द॰) । मात्सरिक-वि० [सं० ] [ वि० स्त्री० मात्सरिफी] दे० 'मात्सर' [को॰] । मनीवेग। स० HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१२१
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