पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- TO Ho SO मानुख ३६० मापक सबनि कौं, मन न मान को ठाट । वाल मनावन को लख मानों-ग्रव्य० [हिं० मानना ] जैसे । गोया। उ०—(क) मयनमहन लाल तिहारी बाट 1-मति० ग्र०, पृ० ३५१ । पुरदहन गहन जानि प्रानि के नवं को मार पनुप गढायो हैं । मानुख-सञ्ज्ञा पु० [सं० मानुष ] मनुष्य । उ०-मानुख जनम जनक मदनि जहाँ भले भले भूमिपाल पियो बलहीन दल अमोल, अपन सो खोइल हो।-वरम०, पृ० ६४ । आपनो वढायो है। कुनिम कठोर कूर्म पीठ तें कठिन अनि हठि न पिनाक काहू चपरि चढायो है । तुल मी सो गम के नराज मानुच्छ-वि० [ म० मानुष्य, प्रा० मागुस्स ] 70 'मानुष्य' । पानि परसत टूट्यौ मानो वार ते पुरारि ही पढायो है।- उ०-मानुछ्छ मद मति मद तन, पुन्य भाव चहुआन मिर । तुलसी (शब्द॰) । (ख) तिलक भाल पर परम मनोहर गोरोचन -पृ० रा०, २।५८६ । को दीन्हो। मानो तीन लोक की शोभा प्रधिक उदर मो मानुप'-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० मानुपी ] मनुष्य मववी । कीन्हो ।—सूर (शब्द॰) । (ग) प्रिय पठ्यो मानो नखि मुजान । मनुष्य का। जगभूपण को भूषण निधान । निज आई हम को मीम्य देन । मानुप २--सज्ञा पुं० १ मनुष्य । २ याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार यह किधी हमारो भरम लेन ।--केशव (शब्द०)। प्रमाण के दो भेदो मे से एक। इसके तीन उपभेद है- मानोज्ञक-सरा पुं० [ म० ] मनाज्ञता । मनोहरता [को०) । लिखित, मुक्ति और साक्षी । मानोखी-मज्ञा सी० [ दा० ] एक प्रकार की ।चाडया । मानुपक-वि० [ मं० ] मनुष्य सवघी । मनुष्य का । मानो-अव्य० [हिं० मानना ) ८० 'मानों'। मानुपता--सज्ञा स्त्री० [ स० ] मनुष्य का भाव या धर्म। मनुष्यता। आदमीयत । मान्य-वि० [ म० ] [ वि० सी० मान्या ] १. मानने योग्य | माननीय । २ आदर के योग्य । ममान के योग्य । पूजनीय । मानुषत्व-सञ्ज्ञा पुं० [ ] दे० 'मानुपता'। पूज्य । ३. प्रार्थनीय। मानुषिक-वि० [ ] मनुष्य नवघी । मनुष्य का। मान्य'--सज्ञा पु० १. विष्णु । २. शिर । महादेव । ३. मैत्रावरुण । मानुपिद्ध-सञ्ज्ञा पुं० [ ] मनुप्य शरीरधारी बुद्ध । जैसे, गौतम मान्य-सशा पु० २० 'मान'। बुद्ध आदि। मान्यक/-मज्ञा पुं० [ न० माणिक्य ] दे० 'मानिक' । उ०- विशेष-ये ध्यानी युद्ध से पृथक् होते है । हार गुह्यो मेरा राम ताग, दिाच विच मान्यक एक लाग।- मानुपी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ स्त्री। औरत । २ तीन प्रकार की कवीर ग्र०, पृ० २१३ । चिकित्साओं में से एक । मनुष्यो के उपयुक्त चिकित्सा । मान्यता-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ मानने का भाव । मान्य होने का विशेष-शेप दो चिकित्साएं प्रासुरी और देवी कहलाती हैं। भाव । मान्य होना । उ०-~-याप की मान्यताएं इतनी रोमाटिक मानुपी-वि० मनुष्य संबंधी । मनुष्य का। जैसे, मानुपी वाक्, होगी ऐसा नहीं समझती थी। नदी०, पृ० ३० । २. स्वीकृति मानुपी तनु । उ०-दूरि जब लो जरा रोगर चलत इद्री या प्रामाणिकता। जमे,-सस्कृत विद्यार्थियों को भी प्रतियो- भाई आपनो कल्याण करि ले मानुपी तनु पाई ।-सूर गिता परीक्षाओ मे समिलित होने की मान्यता प्राप्त (शब्द०)। हो गई है। मानुपीय-वि० [सं० ] मनुष्य सवधी । मनुष्य का । मान्यस्थान-सज्ञा पु० [ यादर या मान का कारण। मानुपोत्तर-तशा पुं० [सं० ] जनो के अनुसार एक पर्वत का नाम विशेप-मनु जी ने पांच मान्यस्थान लिखे हैं-वित्त, बधु, जो पुष्कर द्वीप को दो समान भागो मे विभक्त करता है। वय, कर्म और विद्या । अथात् धन मपत्ति, सबध, अवस्था, मानुष्य-वि० [ स०] मनुष्य सववी । मनुष्य का । कार्य और योग्यता इन पांच कारणा से मनुष्य का अादर किया जाता है। मानुष्य-सज्ञा पु० १. मानवता। मनुष्यता । २ मानव शरीर । ३ मानव समूह । ४ मनुष्यलोक । मर्त्यलोक (को०) । माप' -मज्ञा पुं॰ [ म० ] विष्णु [को०] । मानुष्यक-वि॰ [ स० ] मनुष्य मववी । मनुष्य का। माप-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मापना ] १. मापने की किया या भाव । नाप। मानुष्यक-सञ्ज्ञा पुं० दे० 'मानुष्य' । मानुस-सज्ञा पु० [ सं० मानुष ] मनुष्य । प्रादमी । उ०—का निचित यो०-मापतौल = जाँच । रे मानुस अपनी चिंता आछ । लेहु मजग होइ अगमन पुनि २. वह मान जिमसे कोई पदार्थ मापा जाय । अहंडा। मान । परतासि न पाछ ।-जायमी (शब्द॰) । ३ परिमाण। यौ०-भलामानुस । मानुसहरा = मनुष्य को हरनेवाला या मापक'-मज्ञा पुं० [सं०] १ मान । माप । अहँडा । पैमाना । २ मानवशून्य । उ०-दीप गभस्थल आरन परा। दीप महुस्थल वह जिससे कुछ मापा जाय। मापने की चीज । ३. वह मानुसहरा ।-पदमावत, पृ०१०। जो मापता हो। माने-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मानी ] अर्थ । मतलव । प्राशय । मापक-सच्चा पुं० [ स० ] अन्न मापने का काम करनेवाला । बया ।