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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१६२

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स० मित्री मिथ्याध्यवसिति मित्रा-सज्ञा सी० [सं०] १ मित्र नामक देवता की स्त्री का नाम । औरत का जोडा। २ संयोग। समागम । ३. मेष आदि विशेप दे० 'मित्र-७' । २ शत्रुघ्न की माता । सुमित्रा। ३. राशियो मे से तीसरी राशि । महाभारत के अनुसार एक अप्सरा का नाम । ४. पराशर के विशेष—इस राशि मे मृगशिरा नक्षत्र के अतिम दो पाद, पूरा शिष्य मैत्रेयी की माता का नाम । आर्द्रा और पुनर्वसु के प्रारमिक तीन पाद हैं। इसके अधिष्ठाता मित्राईल -सज्ञा स्त्री० [ स० मित्र+ हिं० आई (प्रत्य॰)] मित्रता । देवता गदाधारी पुरुष और वीणाधारिणी स्त्री मानी गई है । दोस्ती। इसका दूसरा नाम जितुम है । मित्राक्षर-सञ्ज्ञा पु० [स० ] छद के रूप में बना हुआ तुकात पद । ४ ज्योतिष में मेष आदि लग्नो में से तीसरा लग्न । अमित्राक्षर का उलटा । विशेष-कहते हैं, इस लग्न मे जन्म लेनेवाला प्रियभाषी, मित्रायु-सद्धा पुं० [ स० ] राजा दिवोदास के एक पुत्र का नाम । द्विमात्रिक, शत्रुओ का नाश करनेवाला, गुणी, धार्मिक, मित्रावरुण--संज्ञा पुं॰ [ ] मित्र और वरुण नामक देवता । कार्यकुशल और प्राय रोगी रहनेवाला होता है, और उसकी मित्रावसु-सज्ञा पु० [सं०] विश्वावसु के एक पुत्र का नाम । मृत्यु मनुष्य, सांप, जहर या पानी आदि के द्वारा होती है। मित्रो-सशा स्त्री॰ [ म० ] दशरथ की पत्नी सुमिया जो लक्ष्मण और यौ०-मिथुनभाव = (१) जोडा बनाना । जोडा बनाने का भाव । शत्रुघ्न की माता थी । सुमित्रा । (२) मैथुन । मिथुनयमक = यमक अलकार का एक भेद । मित्री-सज्ञा पुं० [ स० मित्र ] दे० 'मित्र' । उ०-मात पिता बधू मिथुनविवाह प्रचलित विवाह प्रथा । वह विवाह प्रथा जो तिय पुत्र सुवेप । नट०, पृ० ११७ । आजकल चल रही है। मिथुनव्रती = सयोगरत । सयोगस्थ । मित्रेयु-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] राजा दिवोदास के पुत्र का नाम । मिथुनत्व-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] मिथुन का भाव या धर्म । मिथ -अव्य [ स० मिथस् ] परस्पर । आपस मे । अन्योन्य (को०] । मिथुनी-सज्ञा पुं॰ [ स० मिथुनिन् ] खजन पक्षी (को०] । मिथ-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] पुराणकथा । पुरावृत्त । पौराणिक आख्यान । मिथुनीकरण-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] जोडा वनाना । नर मादा को परस्पर मिथनgf-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मिथुन'-२। उ०-गृह कुटब मिलाना (को॰] । महि पलचिना मोह मिथन दुर्गध । -प्राण ०, पृ० २४३ । मिथुनीभाव-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] सभोग । मैथुन (को॰] । मिथनी-सञ्ज्ञा ली० [स० ] मेथी। मिथुनेचर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] चक्रवाक [को०] । मिथाg+--वि० [ स० मिथ्या ] दे० 'मिथ्या'। उ०-मिथा बूज कर मिथ्या-वि० [सं०] १. असत्य । झूठ । २. बेकार । व्यर्थ । चुप यह झूठा जमाना। अरे मन नको रे नको हा दिवाना। यौ०-मिथ्याकोप = बनावटी क्रोध । मिथ्याग्रह = निरर्थक हठ । दक्खिनी०, पृ० २५४ । दुराग्रह । मिथ्याचर्या | मिथ्याजषिपत = भूठा कथन । असत्य मिथि-सज्ञा पु० [सं० ] पुराणानुसार राजा निमि के पुत्र जनक का भाषण। मिथ्याज्ञान = भूल । गलती। भ्रम । मिध्यादृष्टि । मिथ्यापाडेत । मिथ्याभापी = असत्यवक्ता । झूठ बालनेवाला । मिथ्यावचन विशेप-कहते हैं, राजा निमि को कोई पुत्र नही था। मुनियो = असत्य कथन । भूठो बात । मिथ्यावाद। मिथ्यासाची। को यह भय हुश्रा कि निमि के मरने के उपरात कही अराजकता मिथ्याचर्या-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] झूठा या कपटपूर्ण व्यवहार । न उत्पन्न हो, इसलिये उन लोगो ने निमि के शरीर को अरणी से मथा जिससे जनक की उत्पत्ति हुई। ये मथन से उत्पन्न मिथ्याचार-सज्ञा पुं० [सं०] १ कपटपूर्ण पाचरण । २ वह जो हुए थे, इसलिये इनका एक नाम मिथि भी था। इन्हें उदावसु कपटपूर्ण आचरण करता हो । नामक एक पुत्र हुआ था। मिथ्यात-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मिथ्यात्व ] झूठापन । असत्यता । उ०- मिथिनी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] मेथी। मिथ्यात ममता कुमति कुदया चारि डाँडी आहिं ।-सुदर० मिथिल-सञ्ज्ञा पु० [सं०] राजा जनक का एक नाम । प्र०, भा०२, पृ० ६१६ । मिथिला-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] १ वर्तमान तिरहुत का प्राचीन नाम । मिथ्यात्व-सचा पुं० [सं०] १ मिथ्या होने का भाव । २. माया । राजा जनक इसी प्रदेश के राजा थे। उ०-मिथिला नगरी ३ जैनो के अनुसार अठारह दोपो मे से एक । रहत हैं, रच्यो स्वयवर राय ।- कबीर सा०, पृ० ३६ । २. मिथ्यादृष्टि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] नास्तिकता। इस प्रात की प्राचीन राजधानी। मिथ्याध्यवसिति-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] एक अर्थालकार जिसमे कोई एक यौ०-मिथिलापति = राजा जनक । असभव या मिथ्या बात निश्चित करके तब कोई दूसरी बात मिथु' -सञ्चा पु० [ सं० ] असत्य । मिथ्या । भूठ । कही जाती है, और इस प्रकार वह दूसरी बात भी मिथ्या ही मिथु'-अव्य० १. झूठमूठ । २ यथाक्रम । ३ साथ साथ [को०] । होती है। जैसे,—जो भांजे नभ कुसुम रस, लखै सो अहि के कान। मिथुन-सचा पुं० [ स० ] १. स्त्री और पुरुष का युग्म । मर्द मौर एक नाम ।