पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१६३

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मिथ्यानिरसन ३६२२ मिनामनाना 50 पर मिथ्यानिरसन - नशा पु० [ म० ] शपथपूर्वक किसी मच्ची बात का मे चार प्रकार के उत्तरो मे से एक प्रकार का उत्तर । अभियुक्त अस्वीकार करना। का अपना अपराध छिपाने के लिये झूठ बोलना । मिथ्यापडित सज्ञा पु० [ म० मिथ्यापरिहत ] वह जो कुछ न जानता मिथ्योपचार-मचा पु० [ ] १ भूठी दया या सेवा । २ दिग्बावे हो और झूठमूठ पहित बनता हो। की प्रशसा । खुशामद। ३ अमत्य चिकित्मा। मूठा इलाज [को०] । मिधि-अव्य० [ स० मध्य ] दे० 'मध्य' | उ०-वस गुन ही गुन मिथ्यापन-सज्ञा पु० [ स० मिथ्या + हिं० पन (प्रत्य॰)] असत्यता । निरखत तिहिं मिधि सरल प्रकृति को प्रेरौ। पोद्दार अभि० मिथ्यात्व । उ०-मिथ्या ही बतला देती, मिथ्या का रे ग्र०, पृ० ८६३ । मिथ्यापन -गुजन, पृ० १६ । मिन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मीन ] मछली। मीन । 30-मलेछ मोई मिथ्यापर-वि० [ म० मिथ्या+ पर ( प्रत्य० ) ] मिथ्यापरायण । मिन माम जो खावै । मलेछ माई जेहि ज्ञान न भावं। सत० असत्य का अनुयायी। उ०-मधु मुख, गरलहृदय, निजतारत दरिया, पृ०६। मिथ्यापर देगा समार जगह तुम्हें तब 1- अनामिका, मिनकना-क्रि० अ० [अनु० ] १. धीरे से बोलना। कुछ कहना । पृ० १६६। २ हूँ हाँ करना । मुगबुगाना । उ०-दरजी खर्राटे ले रहा था मिथ्यापवाद-सञ्ज्ञा पु० [ सं० ] झूठा अभियोग । झूठा दोष । कलक । मिनका तक नही ।—फिसाना०, भा० ३, पृ० ८८। ३ भय मिथ्यापुरुप-सञ्चा पुं० [ स० ] दे० 'छायापुरुप' । के साथ बोलना। मिथ्याप्रतिज्ञ-वि० [ म०] झूठी प्रतिज्ञा करनेवाला । वचन का पालन मिनकारी-सञ्ज्ञा पुं० [ अनु० १ ] जिसस मिन् मिन किया जाय अर्थात् न करनेवाला (को०) । मुख या चोच । उ०-अधिक तेज काटे ते दी सस्त बोल । लग्या बोलन ताई मिनकार खोल ।-दक्खिनी०, पृ० ६० । मिथ्याभियोग-सज्ञा पु० [सं० ] किसी पर झूठमूठ अभियोग लगाना । मिनको-सज्ञा स्त्री॰ [ दश० ] विल्ली। उ०—मूमा इत उत फिर अभ्याख्यान। ताकि रही मिनकी । —सुदर० प्र०, भा॰ २, पृ० ३६८ । मिथ्याभिशसन-सज्ञा पु० [म० ] किसी झूठमूठ कलक मिनखा-सञ्ज्ञा पु० [सं० मनुष्य ] दे० 'मानुप' । उ०-यो लगाना। मिनखा तन पाइक भज्यो नही भगवान । जन हरिया नव मिथ्यामति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ भ्राति । घोखा २ भूल । गलती । मानखो मिले नही आसान – राम० धर्म०, पृ० ६६ । मिथ्यायोग-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] चरक के अनुसार वह कार्य जो रूप, रस मिनखी-सज्ञा स्त्री॰ [ दश०] बिल्ली । मिनकी । उ०-मावडियो या प्रकृति आदि के विरुद्ध हो। जैसे, मल मूत्र आदि का वेग बन मांझली सो नहं जाय सिकार । डोला मिनरसी सूं डर मूसा रोकना शरीर का मिथ्यायोग है, कठोर वचन आदि कहना ज्यो मुरदार ।-बाँकी० ग्र०, भा॰ २, पृ० १६ । वाणी का मिथ्यायोग है, तीव्र गघ प्रादि का सूंघना और भीपण मिनट-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] एक घटे का माठवाँ भाग । साठ सेकेंड का शब्द आदि मुनना ब्राण और श्रवण का मिथ्यायोग है। उ०- समय । पुरुप का इण्ट नाशादि सुनना मिथ्यायोग है ।—माधव०, मुहा० - मिनटों में = वात की बात मे । जैसे—वह यह काम पृ० १२६ । मिनटो मे कर डालेगा। मिनट भर = अत्यल्प समय । बहुत मिथ्यावाद-सज्ञा पुं॰ [म०] मिथ्या वचन । झूठी बात । झूठ [को०] । थोडा समय । जैसे,—व मिनट भर पहले गए हैं । मिथ्यावादी–मचा पु० [स० मिध्यावादिन] [वि० सी० मिथ्यावादिनी] मिनती-सज्ञा स्त्री० [ स० विनति । प्रार्थना । विनती । वह जो झूठ बोलता हो । अमत्यवादी । झूठा । मिनती-सञ्ज्ञा पु० [अनु० मक्खी के शब्द से ] मक्सी की बोली के मिथ्याविहार-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] देह पुरुषार्थ से विशेप कामना करना । समान, धीमा, कुछ नाक से निकला स्वर । शरीर की शक्ति से अधिक कार्य करना । मिनमिन'-क्रि. वि० [ स० ] मक्खी की भनभनाहट के रूप मे। मिथ्याव्यय-सज्ञा पुं० [स० मिध्या+व्यय] अपव्यय । दिखावे के लिये धीमे दवे हुए स्वर मे। कुछ नाक से निकले धीमे स्वर या अनुचित ढग मे खर्च करना । उ०—बारात बुलाकर मिथ्या मे । जैसे,—यह मिनमिन बोलता है, इसी से उसे सीधा व्यय मैं करूं, नही ऐमा मुसमय ।-अनामिका, पृ० १३१ । समझने हो। मिथ्याव्यवहार-सशा पु० [ म० ] किसी विषय को न जानते हुए भी मिनमिन-वि० नकियाकर बोलनेवाला । मिनमिन वोलनेवाला। उसमे दखल देना । अनधिकार चर्चा | मिनमिन-सज्ञा स्त्री० मिनमिन की आवाज । अस्पष्ट व्वनि । मिथ्यासाक्षी-मचा पु० [ म० मिथ्यासाक्षिन् ] वह जो झूठी गवाही मिनमिना-वि० [ हिं० मिनमिन ] १. मिनमिन शब्द करनेवाला । नाक से स्वर निकालकर धीमे वोलनेवाला। २ थोडी सी बात देता हो । झूठा गवाह । पर कुढ़नेवाला । ३ सुस्त । मट्ठर । मिथ्याहार-सज्ञा पु० [ स० ] अनुचित या प्रकृति के विरुद्ध भोजन मिनमिनाना-क्रि० अ० [हिं० मिनमिन] १ मिन् मिन् शब्द करना । जैसे, मछली के माथ दूव । करना । नाक से बोलना । नकियाना । २ कोई काम बहुत धीरे मिथ्योत्तर-सञ्ज्ञा पु० [स० ] याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुमार व्यवहार धीरे करना । वहुत सुस्ती से काम करना । -