do मुगति १६६० मुग्धबुद्धि वल मुगत विसाला, प्रगट हिय माला भरपूर ।-रघु० रू०, मुगलपठान-सज्ञा पुं० [फा० मुगल+ पठान ] एक प्रकार का खेल पृ० २५३ । जो जमीन पर खाने खीचकर सोलह ककडियो से खेला जाता मुगति-सज्ञा स्त्री० [ स० मुक्ति ] दे० 'मुक्ति' । उ० - सुक्रम है। गोटी। सुमन फुल्लयो मुगति पक्वी दव मगति ।-पृ० रा०, ११४ । मुगलाई'-वि० [फा० मुगलाई ] दे० 'मुगनई' । मुगदर - मज्ञा पुं० [सं० मुग्दर] लकडी की एक प्रकार की गावदुमी, मुगलाई सशा स्त्री० [फा० मुगल +पाई (प्रत्य॰)] मुगल होने लबी और भारी मुगरी जिसका प्राय जोडा होता है और का भाव । मुगलपन । जिसका उपयोग व्यायाम के लिये किया जाता है । जोडी। मुगलानी-मज्ञा सी० [फा० मुगल +शानी (प्रत्य॰)] १. मुगल विशेष इसमे ऊपर की ओर पकडने के लिये पतली मुठिया होती जाति की स्त्री। २ कपडा मीनेवाली स्त्री। ३ दामी। है और नीचे का भाग बहुत मोटा होता है। दोनो हाथो में मजदूरनी ( मुसल०)। एक एक मुगदर लिया जाता है और बारी बारी से हर एक मुगलिग वि० [फा० मुगल हि० +- हिं० इया (प्रत्य॰)] मुगलो का । मुगदर पीठ के पीछे से घुमाकर सामने लाते और उलटे बल जने, मुगलिया खानदान, मुगलिया सल्तनत । उ०—मराठे मे ऊपर की ओर खडा करते हैं। इससे बाहुनो मे बहुत बल शिवाजी के नेतृत्व मे मगठित हो मुगलिया राज्य को खुले- पाता है। श्राम चुनौती मो देने लगे। -हिं० का० प्र०, पृ०७ । क्रि० प्र०- फेरना । हिलाना। सुगली-सज्ञा सी० [ फा० गल + ई (प्रत्य॰)] बच्चो को होनेवाला मुगध- सज्ञा स्त्री० [स० मुग्धा ] २० 'मुग्या' । उ०-राति पसली का रोग जिनमे उनके हाथ पैर ऐंठ जाते है और वे दिवस एक सी काम कामना सु बहिय । प्रौढ मुगव वयवृद्ध वेहोश हो जाते हैं। सबै थरहरि त्रिय गड्डिय ।-पृ० रा०, ११४११ । मुगवन-मशा पुं० [ स० वनमुद्ग ] बनमूग । मोठ । मुगधारी@-वि० [सं० मुग्ध हिं० (स्वा० प्रत्य॰)] मूढ । मूर्ख । मुगवा-सशा स्त्री० [ ] प्रतिस्रवा । मयूरवल्ली। अज्ञानी। उ०- मूरख ते पडित करिवो पडित ते मुगधारी । मुगालता-संज्ञा पुं० [अ० मुगालत ] धोखा । छल । झांसा । भ्रम । -कबीर ग्र०, पृ० ३२० । क्रि प्र०-खाना ।—देना ।—में ढालना । मुगना-सज्ञा पुं० [हिं० मुनगा ] सहिजन । मुनगा। मुगुध, मुगुधा-सशा सी० [ स० मुग्धा ] दे० 'मुग्या'। मुगन्नी- सज्ञा पुं० [अ० मुगन्नी ] [स्त्री० मुगन्निया ] गया । मुगूह-सज्ञा पुं० [सं०] १ पपीहा । २ एक प्रकार का हिरन । कलावत । गायक (को०] । मुग्गल-सज्ञा पुं० [फा० मुग़ल ] दे० 'मुगल' । मुगरा-सज्ञा पुं० [हिं०] १ दे० 'मोगरा' । २ [स्त्री० मुगरी ] मुग्घम'—वि० [ देश० ] (बात) जो बहुत खोलकर या स्पष्ट करके दे० 'मोगरा' या 'मुगरा' । न कही जाय । सकेत रूप मे कही हुई (बात) । मुगरला-सज्ञा पुं॰ [हि० मुंगरैला ] कलौंजी या मंगरला नामक मुहा० - मुग्वम रहना= (१) चुप रहना । कुछ न बोलना (व्यक्ति दाना, जिसका व्यवहार मसाले मे होता है । के सवध मे ), (२) किसी का रहस्थ प्रकट न होना । भेद न मुगल-मज्ञा पुं॰ [ फा मृगल] [स्त्री० मुगलानी ] १ मगोल देश खुलना । परदा ढका रह जाना। का निवासी । २ तुर्को का एक श्रेष्ठ वर्ग जो तातार देश का मुग्घम-सज्ञा पुं० दांव मे वह अवस्था जिसमे न हार हो और न निवासी था। जीत । (जुपारी)। विशेष—इस वर्ग के लोगो ने इधर कुछ दिनो तक भारत मे आकर क्रि० प्र०-हना। अपना साम्राज्य स्थापित करके चलाया था। इस वर्ग का पहला मुग्ध-वि० [ सं०] १. मोह या भ्रम मे पडा हुआ। मूढ । २ सम्राट् बाबर था जिसने सन् १५२६ ई० मे भारत पर विजय सु दर । खूबसूरत । ३ नया जीबन । ४ आसक्त । मोहित । प्राप्त की थी। अकबर, जहाँगीर, शाहजहां और औरगजेव लुभाया हुअा। उ०-वाल्मीकि रामायण मे यद्यपि बीच बीच इसी जाति के और बावर के वशज थे। इन लोगो के शासन मे ऐसे विशद वर्णन बहुत कुछ मिलते हैं जिनमे कवि की मुग्ध काल मे साम्राज्य बहुत विस्तृत हो गया था परतु और गजेव दृष्टि प्रधानत मनुष्येतर वाह्य प्रकृति के रूपजाल में फंसी पाई की मृत्यु । सन् १७०७ ई० ) के उपरात इस साम्राज्य का जाती है पर उसका प्रधान विपय लोकचरित्र हो है।- पतन होने लगा और सन् १८५७ में उसका अत हो गया। रस०, पृ०६। ३. मुसलमानो के चार वर्गों मे से एक वर्ग जो शेखो और सैयदो मुग्धकर-वि० [सं० ] [ वि० स्त्री० मुग्धका ] मोहित करनेवाला । से छोटा तथा पठानो से बडा और श्रेष्ठ समझा जाता है। मुग्धता-सशा स्त्री० [स०] १ मुग्ध का भाव । मूढ़ता । २ मुगलई-वि० [ फ़ा० मुग़ल + ई (प्रत्य० ) ] मुगलो का सा । सुदरता । खूबसूरती । ३ मोहित या आसक्त होने का भाव । मुगलो की तरह का । जैसे, मुगलई पाजामा, मुगलई टोपी, मुग्धत्व-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] दे० 'मुग्वता' [को॰] । मुगलई कुरता, मुगलई हड्डी । मुग्धबुद्वि-वि० [ स० ] जिसकी बुद्धि भ्रात हो । वेवकूफ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०१
दिखावट