पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०२

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सव HO मुग्धवीध २६६१ मुज' मुग्धवोध-सचा पुं० [ सं० ] बोपदेव कृत संस्कृत का व्याकरण (को०] । गतगील करना। उ०-जु दिप वर भाइ दुलोचन कोर । मुग्वभाव-सज्ञा पुं॰ [स०] १ मूर्खता। बुद्धिहीनता । २ भौनापन । मुचावत काम कमान के जोर ।-7. रा०, २११७५ । मुग्या-सा सी० [सं०] साहित्य मे वह नायिका जो यौवन को मुचिर' '-सजा पुं० [ ] १ दाता । दानशील । उदार । तो प्राप्त हो चुकी हा, पर जिममे कामचेष्टा न हो। मुचिर' सरा पुं० १ धर्म । २ वायु । ३. देवता । विशेप इसके दो भेद होते हैं—प्रजातयौवना पार ज्ञातयौवना। मुचिलिग-नश पु० [सं० मुचिलिङ्ग] १ गचकु द वृक्ष। २ तिलक का इसकी क्रियाएं और चेष्टाएं बहुत हो मनोहारिणो होती हैं। पौधा । तितपुष्पी । ३ एक नाग का नाम । ४ एक पर्वत का इसका कोप बहुत ही मृदु होता है और इसे साज सिंगार का नाम। बहुत चाव रहता है। मुचिलिंद-सज्ञा पुं० [ स० मुचिलिन्द ) १ मुचकु द। २ तिलक । मुचगढ़-वि० [हिं० मुच्चा+अगड़ (प्रत्य॰)] मोटा और भद्दा । तिनपुण । जैसे, मुचगड राट । मुचुक- '-सा पु० [ स० ] मैनफल । मुचक' - सञ्ज्ञा पुं॰ [ ] लास । लाह। मुचुका-सा स्त्री० दे० 'मोच' । मुचका-सशा स्रो० [हिं०] दे० 'मोच' । मुचुकुद-सज्ञा पु० [ स० मुचुकुन्द ] १ मुचकु द वृक्ष। २ भागवत मुचकध-सञ्ज्ञा पु० [सं० मुचकुन्द मावाता का एक पुत्र । के अनुसार माधाता के एक पुत्र का नाम । उ०-वर दोप श्रीराम वर दोपई दुर्योध । वेर दोप नधु राइ मुचुटी-मशा मी० [स० ] १ उंगली मटकाना। २ मुठ्ठी । बंर दोपह मुचकव ।-पृ० रा०, ७/१७ | ३ संडसी। मुचकुद - सज्ञा पु० [सं० मुचकुन्द, मुचुकुन्द | १ एक बड़ा पेड मुच्चा-सशा पुं० [ स०] १ माम का बडा टुरुडा। गोश्त का जिसके फूल और छाल दवा के काम आते हैं। हरिवल्लभ । ताया। दीर्घपुष्प । सुच्छ - न. स्त्री० [हिं० मूंछ ] दे० 'मूछ' । उ०—(क) मुह मुहह विशेप- इसके पत्त फालसे के पत्तो के आकार के और बडे बडे मुच्छ कर कन्द तुम चमर छन पहु पग लिय। -पृ० रा०, होते हैं। पत्तो मे महीन महीन रोईं होती हैं जिममे वे छूने ६११२२७४ । (ख) घरधौ परतापमि मुच्यन पनि ।-पृ० रा०, म खुरदरे लगते हैं। फूल मे पाँच छह अगुत लवे और एक ५॥३६ । (ग) धर मुच्छ पर हाथ बहुरि निरस समसेरै ।- प्रगुल के लगभग चौड़े सफेद दल होते है। बला के मध्य से हन्मीर०, पृ० २२। सूत के समान कई केसर निकले होते हैं। दला के नीचे का मुन्छा'-राश सी० [हिं० मूछ ] दे० 'मूछ'। उ०-मच्छा कोश भी बहुत लवा होता है। फूल का सुगव बहुत ही मीठी उमठत उडि ऐठत कठिनकर कुहेचान के !-हिम्मत० और मनोहर होती है। ये फूल मिर के दद में बहुत लाभकारी पृ११३ । होते है। इसके फल कटहल के प्रारभिक फला के समान लवे लवे और पत्थर की तरह कडे होते हैं। इसके फूल और छाल मुन्छा । --नशा रपी० [ स० सूर्दा ] ८० 'मूच्ची'। उ०-मो पर्यो धान मुच्छा मुखाय । -पृ० रा०, ११२७२ । औपध के काम मे पाती है। वद्य मे यह चरपरा, गरम, कटुवा, स्वर को मधुर करनेवाला तथा कफ, खासी, त्वचा मुछदर-सज्ञा पुं॰ [हिं० मुछ+दर (सं० धर)] १ जिसके मू वरी के विकार, सूजन, सिर का दर्द, त्रिदोप, रक्तपित्त जोर रुधिर परो हो। उ०-व मोटे तन व युदला घु'दला मू व कुच्ची विकार को दूर करनेवाला माना गया है । याँस । व माटे पाठ मुछदर की प्रादम अादम है ।-भारतेंदु 7०, भा॰ २, पृ० ७८६ । २ कुरूप और मूर्च। भद्दा और पर्या०-छत्रवृक्ष । चित्र । प्रतिविष्णुक। दीर्वपुष्प । बहुपत्र । वेवकूफ । उ०-दोडे वदर बने मुछदर कूद चढे अगानी । सुदल | सुपुप्प । हरिवल्लभ । रक्तप्रसव । -भारतेदु० प्र०, भा० १, पृ० ३३३ । ३. चूहा । (क्व०) । २ माचाता नरेश का एक पुत्र । दे० 'मचुकुद' । यौ०-मुचकुद प्रसादक=श्रीकृष्ण । मुला-मशा संग [ ३० श्न, हि० मूंच ] २० 'मू छ' । उ०—तिन मुछ राजत है मुह पाना-० रा०, ५३४ । मुचलका-सा पु० [ स० तु.] वह प्रतिज्ञापन जिसक द्वारा गरिय में कोई काम, विशेषत अनुचित काम, न करने अथपा किसी गुछाडया! --वि० [९ि. मु+थायिा (प्रत्य॰)] ६० 'मुछियन' । नियत समय पर अदालत मे उपस्थित होने की प्रतिज्ञा की जाती मुछियल-वि० [हिं० प + चल ( प्रत्य० ) ] जिसको मूचे वटो है, और कहा जाता है कि यदि मुझमे अमुक अनुचित काम हो जायगा, अयवा में अगुक रामय पर अमुक अदालत मे गुढेला-पि० [हिं० मूंछ+ऐल (प्रत्य॰)] दे० 'मुछियन'। उपस्थित न होऊंगा, तो मैं इतना आर्थिक दंड दूंगा। मुजो'- स० [म० महम् हिं० मुमझ, मुज ] मैं शब्द फा कि प्र०-लिसना ।-लिखाना।-लेना। पार्ता प्रौर मवध कारक के अलावा विभक्ति लान के पूर्व पा रूप । ६० 'मुना' । उ०-4 क का गली में घायल पण या मुचाना-क्रि० स० [सं० मुच ] छोडाना । मुक्त कराना । चलाना । 1 पडीहा।