पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०३

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70 । २४६२ 'मुहका तिसपर । जोबन का माता प्राकार मुज को संगत गया है। - मुजल्लद - वि० [अ० मृजलद ) जिसकी जिन्द बंधी हो । जिल्ददार । कविता को० (भू०), भा० ४ पृ० १५ । मुजन्सम-वि० [अ० मुज़ामम] गुजम्मिम। मुज-सज्ञा सी० [सं० मुञ्ज (एक घास ) हि० मज ] २० मुजस्समा-मा ५० [अ० मुजम्माह.] प्रतिमा । मूर्ति । पानि 'मूज'। उ० मुज को आडवद वजर कोपीन ।-रामानद०, [को॰] । पृ०४६ मुजस्सिम-नि० [अ० मुजम्पिम] मारीर । प्रत्यक्ष । जने,-नीजिए मुजक्कर-वि० [अ० मुजक्कर ] १ नर । पुरुष । २ (व्याकरण मे ) अापके मामन मुन्मिम खा है। पुलिंग। मुजादला-मज्ञा पुं० [अ० मुजादला.] १ लहाई। युद्ध । २ मुजक्का-वि० [अ० मुज़क्का ] पवित्र । शुद्ध [को०] । मुवाहमा । वाद विवाद [को०) । मुजम्मा सशा पु० [अ० मुजम्म ] चमडे या रस्सी का वह फेरा जो मुजाविर-मा पु० [ ग्र• मुजाबिर ] १ पटोमी। प्रतिवशी 1 . घोडे को आगे बढ़ने से रोकने के लिये उसकी गामची या दुमची द० 'मुजावर'। मे पिछाडी की रस्सी के साथ लगा रहता है। मुजारिया-वि० [१०] जो जारी क्यिा या कराया गया कि प्र० बांधना |-लगाना । (फच०)। मुहा०—मुजम्मा लगाना = ऐसा काम करना जिसमे कोई बात या मुजावर-सज्ञा पुं० [अ० मुजावर ] १ वह मुसलमान जो किसी काम रुक जाय । रोक या ग्राद लगाना । मुजम्मा लेना-ग्राडे पीर आदि की दरगाह या गैजे पर रहकर वहां की सेवा का हाथो लेमा । खबर लेना । ठोक करना । कार्य करता हो और चढावा प्रादि लेता हो। उ०-मुजावर मुजरा-मज्ञा पुं० [अ० ] १ वह जो जारी किया गया हो । २ वह हो या वैम चालीन दिन । यिमी चार दिन कू ना करले नगन । रकम जो किसी रकम मे से काट ली गई हो। जैसे, - १०) -दक्खिनी०, पृ० ८६ । हमारे निकलते थे, वह हमने उसमे से मुजरा कर लिए । मुजााद-वि० [अ० मुजाहिद] १ कोशिश करनेवाला। प्रयत्नशील । क्रि० प्र०—करना ।—देना ।-पाना।-लेना। २ विमियो मे युद्ध करनेवाला । जिहाद करनेवाला । ३ किसी बड़े या धनवान आदि के सामने जाकर उसे सलाम मुजाहिम-वि० [अ० मुजाहिम ] रोक टोक करनेवाला। हस्तक्षेप करना। अभिवादन । ४ वेश्या का वह गाना जो बैठफर हो करनेवाला । उ०-पर आश्चर्य यह कि कोई इन धर्म के लुटेरा और जिसमे उसका नाच न हो। ने मजाहिम न हुा ।-गोदान, पृ० २२६ । क्रि० प्र०-करना।-मुनना ।-सुनाना ।-होना । मुजिर-वि० [अ० मुज़िर ] नुकसान पहुंचानेवाला । हानिकारक । मुजराई-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हिं• मुजरा + ई (प्रत्य॰) ] १ वह जो मुजरा मुजे-सर्व० [प्रा० मुज्म, हिं० मुझे ] दे० 'मुझे' । उ०-बम्मन कहे या सलाम करता हो। २ वह व्यक्ति जा केवल सलाम करने नामदेव मुझे पूजना भूदेव, इती वात मुजे देव बहा देव गगा के लिये वेतन पाता हो। ३ वह जो मरसिया पढता हो। ४ मो। दक्सिनी, पृ० ४५ । काटने या घटाने को क्रिया । ५ काटो या मुजरा की हुई मुझ-सर्व० [ प्रा० मुज्झ ] मैं का वह रूप जो उस कर्ता और सबंध कारक को छाटकर गेप कारका मे, विभक्ति लगने ने पहले प्राप्त मुजराकद-सञ्ज्ञा पु० [ स० मुञ्जर ] एक प्रकार का कद मुजात । होता है । जैसे, गझको, मुझमे, म झमे । विशप-यह कद उत्तर भारत मे होता है और इसे 'मु जात' भी मुझे-सर्व [ स० मुटम् , प्रा० मज्झम ] एक पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है । वैद्यक मे यह अत्यत स्वादिष्ट, वीर्यवर्धक तथा वात जो उत्तम पुरुप, एकवचन और उभयलिग है तथा वक्ता या पित्त नाशक माना गया है । उसके नाम की अोर सक्त करता है। यह 'मैं' का वह रूप मुजरागाह-सचा पु० [अ० भुज़रा गाह ] दरवार मे वह स्थान जहाँ है जो उसे कर्म और नप्रदान कारक मे प्राप्त होता है। इसमे खडे होकर लोग सलाम या मुजरा करें । लगा हुई एकार की मात्रा विभक्ति का चिह्न है, इसलिये मुजरिम-सशा पुं० [अ०] वह जिसपर कोई जुर्म या अपराध लगाया इसके आगे कारक चिह्न नहीं लगता। मुझको। जैसे,—(क) गया हो । अभियुक्त। (क) मुझे वहा गए कई दिन हो गए। (ख) मुझे प्राज कई पत्र त-सज्ञा स्त्री० [अ० • मुज़र्रत ] १ नुकसान । हानि । २ कष्ट । लिखने है। तकलीफ (को०। मुझौसी- [हिं० मुंह+ मोसमा+ई (प्रत्य॰)] मुजर्रद-वि० [अ० मुजर्रद ] १ जिसके साथ और कोई न हो । दे० 'मुंहझौसी' । उ०-उसको मां सूने मे समझाती-परी अकेला। २. जिसका विवाह न हुआ हो। बिन व्याहा । ३ मुझोसी, लडकपन छोड। -शरावी, पृ० १२ । जिसने ससार का त्याग कर दिया हो। मुटकना-वि० [हिं० मोटा + कना (प्रत्य॰)] भाकार मे छोटा मुजर्रव-वि० [अ० मुजर्रव] तजरुवा किया हुआ। आजमाया हुआ। या साधारण, पर सु दर । जैसे, मुटकना सा बाग । परीक्षित । जैसे, मुजर्रव दवा, मुजर्रव नुसखा । मुटका-सशा पुं० [ देश ? ] एक प्रकार का रेशमी वस्त्र जो रकम। मुजरत- T-सशा सी०