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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०७

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मुदमा ३६६६ मुद्दई 5° मुदमा@t-क्रि० वि० [अ० मुदाम ] दे० 'मुदाम' । उ०—मतगुर दीने दीरघ दुरदवृ द मुदिर मे मेदुर मुदित मतवारे हैं।--मति- मेरे सिर पर टाटा मुदमा भाग चेला |--रामानद०, पृ० २८ । राम (शब्द०)। २ वह जिमे कामवासना बहुत अधिक हो। मुदरा-मज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का मादक पेय पदार्थ जो कामुक । ३ मेढक। अफीम, भांग, शराव और धतूरे के योग से बनता है और मुदी--सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] ज्योत्सना । चाँदनी । चद्रिका [को०] । जिसका व्यवहार पश्चिमी पजाब तथा वलोचिस्तान मे होता है। मुदौवर--वि० [अ० मुव्वर ] गोल । गोलाकार । वृत्ताकार। मुदरी-सज्ञा स्त्री० [सं० मुद्रिका ] दे॰ मुंदरी' । उ०—हे मुदरी तेरो मंडलाकार। सुकृत मेरो ही मो हीन । फल सो जान्यो जात है मैं निरन मुद्ग--संज्ञा पुं० [ स०] १ मूग नामक प्रत जिससे दाल बनाई करि लीन -शकुतला, पृ० ११४ । जाती है। विशेष दे० 'मूंग' । २ यावरण । ढक्कन । पाच्छा- मुदर्रिस-सज्ञा पु० [अ० ] पाठशाला का शिक्षक । अध्यापक । दन 1 को०)। ३ एक शस्त्र । दे० 'मुद्गर' (को०)। ४ एक मुद रिसी--सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ मुरिस का काम । पढाने का काम । पक्षी । जलवायस । विशेप दे० जलकौया' (को०) । अध्यापन । २ मुरिस का पद । जैसे,--बडी कठिनता से मुद्गगिरि-सज्ञा पुं० [ ] मुगेर और उनके प्रामपाम के प्रांत उन्हें म्युनिसिपल स्कूल मे मुरिसी मिली है। का प्राचीन नाम। मुदव्वर-वि० [अ० ] दे० 'मुदोवर' [को०] । मुद्गदला - सञ्चा सौ॰ [ 10 ] मुद्गपर्णी । वनमूग । मुदा-अव्य० [अ० मुद्दा (= अभिप्राय ) ] १ तात्पर्य यह कि। मुद्गपर्णी-शा बी० [ स० ] वगमूंग । मुगवन । २ मगर । लेकिन । मुद्गभूक् मज्ञा पुं० म० मुद्गभुज ] अश्व । घोडा [को०] । मुदा ...मशा स्त्री॰ [ मं० ] हर्प । पानद । प्रसन्नता । मुद्गभोजी - सज्ञा पु० [ म० मुद्गभोजिन् ] घोडा। मुदाना-क्रि० स० [हिं० मूंदना का प्ररूप ] बद कराना । मुद्गर-मज्ञा पुं० [ म० ] १ काठ का बना हुआ एक प्रकार का मुंदवाना । उ० --ले अनाज कोठी बहरावं । खरच लेइ पुन गावदुमा दडे । मुगदर | जोडी। फेरि मुदावं ।--कबीर सा०, पृ० २५ । विशेष—यह मूठ की पोर पतला और आगे की ओर बहुत भारी मुदाम-क्रि० वि० [ फा०] १ सदा । हमेशा । सदैव । उ०--(क) होता है। इसे हाथ में लेकर हिलाते हुए पहलवान लोग कई राम लखन सीता की छवि को सीयराम अभिरामं । उभय तरह की कसरतें करते हैं। इससे कलाइयो और वाहो मे वल दृगचल भए अचचल प्रीति पुनीत मुदामै । रघुराज (शब्द॰) । पाता है। इसे जोडी भी कहते हैं क्योकि इसकी प्राय जोडी (ख) अहैं हम सल्य धरा सरनाम। कर रन मे पर सल्य होती है जो दोनो हाथो में लेकर बारी बारी से पीठ के पीछे मुदाम ।-- गोपाल ( शब्द०) । २ निरंतर । लगातार । से घुमाते हुए सामने लाकर तानी जाती है । अनवरत । १३ ठीक ठीक । हूबहू । (क्क०)। क्रि० प्र०-फेरना ।—हिलाना । मुदामी-वि० [ फ्रा० ] जो सदा होता रहे। सार्वकालिक । उ० २ प्राचीन काल का एक अस्त्र जो दंड के आकार का होता था दगी मुकामी फेरी सलायी। बंधी पचदस जोन मुदामी । और जिसके सिरे पर बडा भारी गोल पत्थर लगा होता था। --रघुराज (शब्द०)। ३ एक प्रकार की चमेली। मोगरा। ४ एक प्रकार को मुदावसु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार प्रजापति के एक पुत्र का नाम । मछली। ५ कोरक । कली (को०)। ६. हथौडा या मुगरा। मुदित'-वि० [सं० ] हर्षित । पानदित । प्रसन्न । खुश । जैसे, मोहमुद्गर (को०)। मुदित'-सज्ञा पुं० कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का आलिंगन । मुदगरक-सज्ञा पुं॰ [सं०] मुंगरा । हथौडा [को०] । नायिका का नायक की बाईं ओर लेटकर उसको दोनो जांघो मुद्गराक-सधा पुं० [ सं० मुद्गराङ्क ] मुद्गर (मुंगरे ) का चिह्न के बीच मे अपना बायाँ पैर रखना। जो घोवियो के वस्त्र पर पहचान के लिये चद्रगुप्त के समय में मुदिता- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ परकीया के अतर्गत एक प्रकार की रहता था। नायिका जो परपुरुष प्रीति सबंधी कामना की प्राकस्मिक प्राप्ति विशेप--यदि घोबी इस प्रकार के चिह्न से रहित वस्त्र पहनकर से प्रसन्न होती है। उ०--परखि प्रेमवश परपुरुप हरपि रही निकलते थे तो उनपर तीन पण जुर्माना होता था। मन मैन । तब लगि झुकि आई घटा अधिक अधेरी रैन । मुद्गल-संज्ञा पुं० [सं०] १ रोहिप नामक तृण । २ एक गोत्रकार --पद्माकर (शब्द०)। २ हर्प। अानद । ३. योगशास्त्र मे मुनि का नाम, जिनकी स्त्री इद्रसेना थी। ३ एक उपनिपद् का समाधि योग्य सस्कार उत्पन्न करनेवाला एक परिकर्म जिसका नाम। अभिप्राय है--पुण्यात्मानो को देखकर हर्ष उत्पन्न करना । मुद्गगष्ट-पहा पुं० [सं०] मुगवन | वनमूग । विशेष-ये परिकर्म चार कहे गए हैं-मैत्री, करुणा, मुदिता मुद्दा-सज्ञा पुं० [अ० ] अभिप्राय । तात्पर्य । मतलव । और उपेक्षा। मुद्दई-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] [ सी० मुद्दइया ] १ दावा करनेवाला । मुदिर-मशा पुं० [सं० ], १ वादल । मेघ । उ०—(क) धारावर दावादार । वादी। २ दुश्मन । वरी। शत्रु । उ०- जलघर जलद जग जीवन जीमूत । मुदिर बलाहक तड़ितपति मोहन मीत समीत गो लखि तेरो सनमान । अब सु दगा दै तू परजन जज्ञ सुपूत ।-नददास (शब्द॰) । (ख) कहै मतिराम चल्यो अरे मुद्दई मान |- - पद्माकर (शब्द॰) ।