पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०८

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मुद्दत ३६६७ मुद्राकर १ मिनी मुदत-सज्ञा स्त्री० [ अ०] १. अवधि । जैसे,—इम हुडी की मुद्दत पूरी हो गई है। मुहा०-मुद्दत काटना = यो माल का मूत्य अवधि से पहले देने पर अवधि के बाकी दिनो का सूद काटना ( कोठीवाल )। २. वहुत दिन । अरमा। जैम, बाद मुद्दत के प्राज आपकी शक्ल दिखाई दी है। यौ० मुद्दन दराज - बहुत ममय । बहुत दिन । मुद्दतेहयात = जीवनकाल । मुद्दती-वि० [अ० मुद्दत + ई (प्रत्य॰)] वह जिसके साथ कोई मुद्दत लगी हो । वह जिसमे कोई अवधि हो । जैसे, मुद्दती हु डी। यौ०-मुद्दती हु डी = वह हुडी जिसका रुपया कुछ निश्चित समय पर देना पड़े। मुहा-सज्ञा पुं० [अ० मुद्दया गरज । अभिप्राय । उद्देश्य । मशा। उ०-पलटू मेरी बन पडी मुद्दा हुआ तमाम ।-पलटू०, पृ०१३ । मुद्दाअलेह-सज्ञा पुं० [अ० ] वह जिसके ऊपर कोई दावा किया जाय । वह जिसपर कोई मुकदमा चलाया गया हो । प्रतिवादी। मुद्दालेह-र -सञ्ज्ञा पुं० [अ० मुद्दाअलेह ] दे० 'मुद्दाअलेह' । मुद्ध-वि० [सं० मुग्ध, प्रा० मुद्ध, मुध्ध ] दे० 'मुग्ध' । मुद्धा-सज्ञा पुं० [2 ] गुल्फ । मोजा । टखना। मुद्धी-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] रस्सी प्रादि की खिसकनेवाली गाँठ । मुद्र- वि० [सं० ] प्रानददायक । प्रसन्न करनेवाला [को०] । मुद्रक-सशा पुं० [ ] वह जो किसी छापेखाने मे रहकर छापने का काम करता या देसता हो और छपनेवाली चीजो को छपाई का जिम्मेदार हो। छापनेवाला। मुद्रणकर्ता । जैसे,- 'चद्रोदय' के सपादक 'पौर मुद्रक राजविद्रोहात्मक लेख लिखने और छापने के अभियोग पर भारतीय दडविधान की १२४ 'ए पारा के अनुसार गिरफ्तार किए गए हैं। मुद्रकी- मशा स्त्री० [म० मुद्रिका ] ३० 'मुद्रिका'। उ०-इक इकक वटुन मालाति इश्क । मुद्रकी इक्क इन पहुचि किक्क ।- पृ० रा०, १४१२५ । मुद्रण-सा पुं० [सं०] १ किमी चीज पर अक्षर आदि अस्ति करना। छपाई। २ ठप्पे आदि की सहायता से अकित्त करके मुद्रा तैयार करना। ३ ठोक तरह से काम चलाने के लिये नियम प्रादि वनाना और लगाना । ४ वद करना । मूदना । सुद्रणा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] अंगूठी। मुद्रणालय-सशा पु० [सं०] १ वह स्थान जहां किसी प्रकार का मुद्रण होता हो । २ छापासाना । प्रेस । मुद्रण पत्र-सञ्ज्ञा पु० [ म०] किसी छपनेवाली चीज का नमूना । प्रूफ (को०] । मुद्राक-सा पुं० [स. मुद्रा ] मुद्रा पर का चिह । ८-२५ मुद्राकन-मश पुं० [ मं० मुद्राक्कन ] [वि० मुद्राकित प्रकार की मुद्रा की सहायता में अमित करने का काम । २. छापने का काम । छपाई। मुद्राकित-वि० [ म० मुद्रादित ] १. मोहर किया दुपा। जिसपर मुहर लगी हो। यो०-मुद्राकित पत्र = मुहर की हुई चोठी । २ जिसके गरीर पर विष्णु के आयुध के चित परम लोहे में दागकर बनाए गए हो। (वैरणव) । मुद्रा-मश्शा स्री० [म०] १ किमी के नाम की छाप । मोहन । उ०- मुद्रित समुद्र मात मुद्रा निज मुद्रित के, आई दिमि दमो जीनि मेना रघुनाथ की। केशव ( शब्द०)। २ रुपया, अशरफी प्रादि । सिधा । ३ अंगूठी। छाप । बला । उ०-वनचर कौन देश तें प्रायो। फर्ह वे राम कहा वे लछिमन क्यो करि मुद्रा पाया । - सूर (गन्द०)। ४ टाइप के छो हुए अनर । ५. गोरखपी साधुप्रो के पह्नने का एक कर्णभूषण जो प्राय काँच ग स्फटिक का होता है। यह कान की ला के बीच में एक बडा छेद करके पहना जाता है। उ०—(क) शृगी मुद्रा कनक खपर ले करिही जोगिन भेस ।—सूर (शब्द०)। (य) भमम लगाऊँ गात, चदन उतारो तात, वुडल उतारो मुद्रा कान पहिराय द्यौं ।-हनुमान (शब्द०)। ६ हाथ, पांव, अग्वि, मुंह, गर्दन आदि की कोई स्थिति । ७ वैठने, लेटने या सडे हाने का कोई ढग। घगो की कोई स्थिति । ८ चेहरे का ढग । मुख की प्राकृति । मुख की चेष्टा । उ०-मायावती अकेले उम वाग मे टहल रही थी और एक ऐसी मुद्रा बनाए हुए थी, जिमसे मालूम होता था कि यह किसी वडे गभीर विचार मे मग्न है। बालकृष्ण (शब्द०)। ६. विष्णु के ग्रायुवो के चिह्न जो प्राय भक्त लोग अपने शरार पर तिलक प्रादि के रूपन अकित करते हैं या गरम लोहे मे दगाते हैं। जैसे, शम्प, चक्र, गदा श्रादि के चिह्न ) । छाप । १० तामिको के अनुसार कोई भूना हुया अन्न । ११ तन मे उँगलिया यादि को अनेक रूपो की स्थिति जो किमी देवता के पूजन में बनाई जाती है। जमे, धेनुमुद्रा, योनिमुद्रा। १२ हा योग में विगा अग. विन्यास । ये मुद्राएं पांच होती है। जैसे,-रोचरी, भूचरी, नाचरी, गोचरी गौर उनमुनी। १३ अगस्त्य नपिरी मी, लोपामुद्रा । १४ वह अलकार जिसमे प्रहन या प्रस्तुत प्रर्य के अतिरिक्त रचना में कुछ और भी नाभिप्राय नाग निाम है। जैने, कत लपटयत मो गरे मोन बुद्दी निमि मैन । नॉट चपकवरनी किए गृल प्रनार रंग नैन ।-विहान (२०)। इस पद्य मे प्रकृत अर्य के प्रतिक्ति 'मोग रा', 'मौनी', 'मला' त्यादि फूतो के नाम भी निकलने है। नही जाने का प्राजापत्र या परवाना । परवाना गदारी। मुद्राकर-सा पुं० [सं०] १ राज्य लनर प्रयान प्रति अधिकार में गजा ती मोटर रहा।। २ वही किती स