पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०९

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वाला। मुद्राकान्हड़ा ३६६८ मुनमुना' प्रकार की मुद्रा तैयार करता हो। ३ वह जो किसी प्रकार के मुद्रिक-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मुद्रिका ] दे॰ 'मुद्रिका' । उ०—कर मुद्रण का काम करता हो। ककण केयूर मनोहर दोत मोद मुद्रिक न्यारी ।—तुलसी मुद्राकान्हड़ा-सञ्ज्ञा पुं० स० ] एक प्रकार का राग जिसमे सव (शब्द०)। कोमल स्वर लगते हैं। मुद्रिका 1- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ छोटी मुहर । २ अंगूठी। उ०-ठौर मुद्राकार - सज्ञा पुं० [सं० ] वह जो मोहर बनाता हो । मुहर वनाने- पाइ पौन पुत्र हारि मुद्रिका दई । —केशव (शब्द०)। २ कुश की बनी हुई अगूठी जो देव पितृ कार्य मे अनामिका मे पहनी जाती है। पवित्री । पती। उ०—पहिरि दर्भमुद्रिका मुमूरी। मुद्राचर-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह अक्षर जिसका उपयोग किमी प्रकार के मुद्रण के लिये होता हो। २ सीसे के ढले हुए अक्षर समिध अनेक लीन्ह कर रूरी।-मधुसूदन (शब्द०) । ३ मुद्रा । जो छापने के काम में आते हैं । टाइप । सिक्का । रुपया । उ-नरमी पं जब सत सब कहे सकोपित बैन । ठग ठगि लीन्ही मुद्रिका चल्यो मारि तेहि लैन -रघुराज मुद्राटोरी-सशा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की रागिनी जिसके गाने मे (शब्द०)। सब कोमल स्वर लगते हैं। मुद्रातत्व-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] वह शास्त्र जिसके अनुसार किसी देश के मुद्रित-वि० [सं०] १ मुद्रण किया हुआ। मुहर किया हुआ। . अकित किया हुआ। छपा हुआ । २ मुंदा हुा । वद । उ०- पुराने सिक्कों आदि की सहायता से उस देश की ऐतिहासिक (क) नासिका अग की ओर दिए अब मुद्रित लोचन कोर बातें जानी जा समाधित ।-देव (शब्द॰) । (ख) राजिव दल इ दीवर सतदल पर्या--मुद्रा विज्ञान । मुद्राशास्त्र । कमल कुसेस जाति। निशि मुद्रित प्रातहिं वे विगसत वे विगसत मुद्राधिप--सज्ञा पुं० [सं०] १ मुहर रखनेवाला। २ किले का प्रधान दिन राति ।-सूर (शब्द०)। (ग) नील कज मुद्रित निहार अधिकारी [को०] । विद्यमान भानु सिंधु मकरदहि अलिंद पान करिगो। मुद्राध्यक्ष-मझा पुं० [सं० ] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार वह - (शब्द॰) । ३ त्यागा हुआ । छोडा हुआ। अधिकारी जो कहीं जाने का परवाना देता है। कहीं वा अन्य मुधरा-वि॰ [ सं० मधुर, वर्णव्य० मुधर ] दे॰ 'मधुर' । उ०—नाच राज्य में जाने का परवाना देनेवाला अधिकारी। गान कर निलजता, रच वप भूपण राम। मार निजारा मुद्रावल-सशा पुं० [सं० ] बौद्धों के अनुसार एक बहुत बडी संख्या मोहियो, हजो मुघरे हास । वाँकी०, ग्र० मा० २, पृ० ६ । का नाम। मुधा-क्रि० वि० [ ] व्यर्थ । वृथा। वेफायदा। उ०—(क) मुद्रामार्ग-सज्ञा पुं० [सं०] मस्तक के भीतर का वह स्थान जहां यह सब जाग्यवल्फ कहि राखा । देवि न होई मुवा मुनि भापा । प्राणवायु चढ़ती है। ब्रह्मरघ्र । -तुलसी (शब्द०)। (ख) तेहि कहं पिय पुनि पुनि नर कहहू । मुद्रायत्र-सहा पुं० [सं० ] छापने या मुद्रण करने का यत्र । छापे मुघा मान ममता पद वहहू । —तुलसी (शब्द॰) । भादि की कल। मुधा-वि० व्यर्थ का । निष्प्रयोजन । २ असद । मिथ्या। झूठ । मुद्रारक्षक-सचा पुं० [सं० ] दे॰ 'मुद्राधिप' (को०] । उ०-मुधा भेद जद्यपि कृत माया । —तुलसी (शब्द०)। मुद्राराक्षस-पशा पुं० [सं०] विशाखदत्तरचित संस्कृत का एक मुधा-सञ्ज्ञा पुं॰ असत्य । मिथ्या । उ०-भूतल माहिं वली शिवराज प्रसिद्ध नाटक। भो भूपन भाषत शत्रु मुधा को। भूपण (शब्द॰) । मुद्रालिपि-सज्ञा स्त्री० [सं० ] पाँच प्रकार की लिपियो में एक । मुनक्का-सञ्ज्ञा पुं० [अ०, मि० सं० मृद्धीका ] एक प्रकार की छापे के अक्षर [को०] । वडी किशमिश या सूखा हुआ अगूर जो रेचक होता और प्राय मुद्रावलि-सशा स्त्री॰ [ स० ] योगियो की मुद्रा । उ०-श्रुति ताटक दवा के काम मे आता है। विशेप दे० 'अगूर'। मेलि मुद्रावलि, अवधि प्रधार अधारी। -सूर०, १०।३६६३ । मुनगा - सज्ञा पुं॰ [ स० मधुगृञ्जन वा देश० ] सहिजन । मुद्रासकोच-सज्ञा पुं॰ [ स० मुद्रा+ सह कोच ] सिक्को की कमी। मुनब्बतकारी-सज्ञा स्त्री॰ [अ० मुनव्बत + फा० कारी ] पत्थरो पर मुद्रा की पूर्ति उसकी वास्तविक मांग से कम होना । उ०- जान उभरे हुए बेलबूटो का काम । बूझकर मुद्रासंकोच न भी किया जाय तव भी।-अर्थ (वे०), मुनमुना'-सज्ञा पुं० । देश०] १ मैदे का बना हुअा एक प्रकार का पृ० ३३८ । पकवान जो रस्सी की तरह बटकर छाना जाता है। २ खस- मुद्रास्थान-सशा पु० [सं०] अंगुली का वह स्थान जहाँ अंगूठी या खस की तरह का पर उससे बडा एक प्रकार का काला दाना। छल्ला आदि धारण किया जाता है। प्याजी। मुद्रास्फीति-सञ्ज्ञा सी० [सं० मुद्रास्फीति ] वास्तविक मांग या विशप-गह दाना गेहूं के खेत मे उत्पन्न होता है और प्राय जरूरत से अधिक मात्रा मे मुद्रा या सिक्का का प्रचलन । उसके दानो के साथ मिला रहता है। इसके मिले रहने के उ.--- युद्धकाल मे मुद्रास्फीति होती है । - अर्थ० (वे०), कारण आटे का रग कुछ काला पड जाता है और स्वाद कुछ पृ० ३७३ । कडवा हो जाता है। स०