पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२१०

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मुनिवल्लभ मुनमुना स० स० मुनमुना-वि० बहुत छोटा या योडा । मुनिकन्यका, मुनिकन्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] मुनि की पुत्री। मुनारा सज्ञा पुं० [सं० मुद्रा ] कान मे पहनने का एक प्रकार का मुनिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] ब्राह्मी का दुप। गहना जो कुमायूँ आदि पहाडी जिलो के निवासी पहनते हैं। मुनिकुमार-सज्ञा पुं० [ स०] मुनि का पुत्र । पाल्पावस्था का यह अधिकतर लोहे का बनता है। मुने (को०] । मुनरी -राज्ञा स्त्री॰ [ स० मुद्रिका ] दे० 'मुंदरी' । मुनिखजूरिका [-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] एक प्रकार की खजूरिका (को०] । मुनहसर-वि० [अ० मुनहसिर ] निर्भर । आश्रित । अवलवित । मुनिच्छद-सज्ञा पु० [सं० ] मेथी। मुनाजात-सज्ञा स्त्री० [अ०] ईशप्रार्थना। खुदा की इबादत । मुनिवरु-सज्ञा पुं॰ [ म०] बकम । पतग । उ०-कहाँ इतना सुन के हक हूँ मुनाजात ।-दक्खिनी०, मुनिता-सज्ञा स्त्री० [ स०] मुनिधर्म । मुनिव्रत । उ०-प्रभु को पृ०३१२। निज चाप दे गए, मुनिता ही मुनि आप ले गए। -साकेत, मुनाजिर-वि० [अ० मुनाजिर ] शास्त्रार्थ करनेवाला [को०] । पृ० ३५८ | मुनादी-सज्ञा स्त्री० [अ० ] किसी बात को वह घोषणा जो कोई मुनित्रय-सज्ञा पुं॰ [ स० ] पाणिनि, कात्यायन और पतजलि को॰] । मनुष्य हुग्गो या ढोल प्रादि पीटता हुअा सारे शहर मे करता मुनित्व-सचा पु० [ स० ] दे० 'मुनिता'। फिरे । ढिंढोरा । डुग्गो। मुनिद्रुम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ श्योनाक वृक्ष । २ बक्कम । पतग । क्रि० प्र० - करना ।—पिटना।-फिरना । -फेरना । —होना। मुनिधान्य- सज्ञा पुं॰ [सं०] तिम्नी का चावल । तिनी । मुनाफा-सञ्ज्ञा पु० [अ० मुनाफा, मुनाफग्रह, ] किसी व्यापार आदि मुनिपत्र-सज्ञा पुं॰ [ स० ] दौना । दमनक । मे प्राप्त वह धन जो मूल धन के अतिरिक्त होता है। लाभ। मुनिपादप-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] वक्कम । पतग । नफा। फायदा। मुनिपित्तल-सञ्ज्ञा पुं० [ ] तावा। क्रि० प्र०-उठाना।-करना ।-निकलना । होना। मुनिपुगव--सज्ञा पु० [ स० मुनिपुङ्गव ] मुनियो मे श्रेष्ठ (को०] । मुनारा-सञ्ज्ञा पु० [अ० मनारह ] दे॰ 'मीनार' । उ०—भने मुनिपुत्र-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० ] दमनक । दौना । रघुराज नव पल्लवित मल्लिका के अमल अगारा हैं मुनारा है मुनिपुत्रक-सञ्चा पु० [ स० ] १. मुनिपुत्र । दौना । २. खजन पक्षी । दुपारा हैं। -रघुराज (शब्द०)। मुनिपुष्प-सचा पु० [ स० ] विजयसार का फूल । मुनाल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का बहुत सुदर पहाड़ी पक्षी मुनिप्रिय-सञ्ज्ञा पुं० [४०] १. एक प्रकार का धान्य जिसे पक्षिराज भी जिसको हरी गरदन पर मुदर कठा सा दिखाई देता है और कहते हैं । २ पिंड खजूर । ३. विरोजे का पेठ । ४. पियार । जिसके सिर पर कलंगी होती है । इसके पर बहुत अधिक मूल्य मुनिवर-सज्ञा पुं॰ [ सं० मुनिवर ] मुनिपुगव । श्रेष्ठ मुनि । पर बिकते हैं। मुनिभक्त-सज्ञा पु० [ म.] तिन्नी का चावल । तिनी । मुनासिब-वि० [अ० ] उचित । योग्य । वाजिब । ठीक । उ०- विना बुलाए जाना तो किसी तरह मुनासिब नही।-श्रीनिवास मुनिभेपज-सचा पु० [ सं० ] १. अगस्त का फूल । २. हड़। हरें । ३. लघन । उपवाम। ग्र०, पृ० ७६ । मुनि --सञ्ज्ञा पु० [ स० ] १ वह जो मनन करे । ईश्वर, धर्म और मुनिभोजन-सशा पुं[ सं० ] तिन्नी का चावल । तिनी। सत्यासत्य आदि का सूक्ष्म विचार करनेवाला व्यक्ति। मनन- मुनियर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मुनिवर ] १ मुनि लोग । २ मुनियो मे श्रेष्ठ जन । उ०-तुम्ह विन राख कोण विधाता मुनियर साखी शील महात्मा । जैसे, अगिरा, पुलस्त्य, भृगु, कर्दम, पचशिख प्राण रे ।-दादू० वानी०, पृ० ६२३ । प्रादि । २ तपस्वी । त्यागी। मुनियाँ -सशा सी० [देश॰] लाल नामक पक्षी को मादा। उ०- यो०-मुनिचीर, मुनिपट = वल्कल । मुनिव्रत = तपस्या। मुड तें झाटि गहि पानी प्रम पीजरा मे, लाल मुनियां ज्यो ३ सात को सख्या । उ०—तब प्रभु मुनि शर मारि गिगवा।- गुण लाल गहि तागी है।-देव (शब्द॰) । (शब्द०)। ४ जिन या बुद्ध । ५ पियाल या पयार का वृक्ष । मुनियों-सज्ञा पुं० ["थ०] एक प्रकार का घान जो अगहन मे तैयार ६ पलास का वृक्ष। ७ अाठ वसुप्रो के प्रतर्गत आप नामक होता है। वसु के पुत्र का नाम । ८ क्रौंच द्वीप के एक देश का नाम । ६, धु तिमान् के सबसे बडे पुत्र का नाम । १० कुरु के एक पुत्र मुनिवर-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १. पुडरीक वृक्ष । पुडारेया । २. दौना । ३ मुनियो मे श्रेष्ठ । का नाम । ११ अगस्त्य ऋपि (को०)। १२ व्यास जी का नाम (को०)। १३ महर्षि पाणिनि (को०)। १४. अाम्र वृक्ष मुनिवजा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मुभिवर्य ] मुनिश्रीष्ठ । मुनिया मे प्रधान या श्रेष्ठ । उ०-रामकथा मुनिवर्ज वखानी। सुनी महेस (को०) । १५ दौना । दमनक । परम सुखु मानो।-मानस, ११४८ । मुनि-सञ्ज्ञा सी० दक्ष की एक कन्या जो कश्यप की सबसे बडी स्त्री थी। मुनिवल्लभ-सज्ञा पु० [ स०] विजयसार । पियासाल ।