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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२६

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मनम्ताल ३७८३ मनाना 1 0 ० मनस्ताल-सज्ञा पुं० [ मे०] १ हरताल । २ दुर्गा देवी के वाहन मनहुँ-अव्य० [ हिं० मानना या मानो ] मानो । जैसे । यथा । सिंह का नाम । ०-(क) वाहहु मुनइ राम गुन गूढा । कीन्हहुँ प्रश्न मनहुँ मनस्तुष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] मनस्तोप । मन का सतोप (को०] । अति मूढा ।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) पडित अति मिगरी मनस्तृप्ति-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] मन की तृप्ति । मनस्तुष्टि [को०] | पुरी मनहुँ गिरा गति मूढ । मिहिनि युत जनु चडिका मोहत मनस्तोका-सञ्ज्ञा स्त्री० [ ] दुर्गा जी का एक नाम । मूढ अमूढ |–केशव (शब्द०)। जमे,-उंगलियाँ तोडना मनस्विता- सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] मनस्वी होने का भाव । दृढ निश्चय मनहूस-वि० [अ०] १ अशुभ | बुरा या स्थिरचित्त होना । विचार को स्थिरता । उ०- 'बहुत मनहूम है। २ अप्रियदर्शन । जो देखने मे वेरौनक जान नहीं तो पहे जैसे,—वाह क्या मनहूम सूरत है । ३ सुस्त । पालगी। आज इतनी भी तो स्वतत्रता, निश्चितता, मनस्विता और निकम्मा। उत्साह चित्त मे न होता ।- प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० १४५ । मनस्विनी-सज्ञा स्त्री॰ [ 'मनहूमी'। मनहसियत-सज्ञा स्रो० [अ० मनहूस ] ] १ मृक्दु ऋपि की पत्नी का नाम । २ प्रजापति की एक स्त्री का नाम जिससे सोम की उत्पत्ति मनहूसी - नज्ञा स्त्री० [अ० मन हम+ई ] उदासी। उदासीनता । विराग [को॰] । हुई थी। ३ दुर्गा का एक नाम (को०)। ४ उच्च विचारवाली स्त्री। सती स्त्री। उ०-साध्वी सती मनम्बिनी मुचरित्रा मना'- वि० [अ० मन] १ जिसके सबध मे निषेध हो । निपिद्ध । मुचि होय । अनेकार्थ०, पृ. ५२ । वजित । जैसे-मनु जी के धर्मशास्त्र मे पामा खेलना मना है । मनस्वी'-वि॰ [ स० मनस्विन् ] [ नो मनस्विनी ] १ श्रेष्ठ मन मे २ जो कुछ करने से रोका गया हा । वारण किया हुआ । मपन्न । बुद्धिमान् । उच्च विचारवाला। २ स्थिर चित्तवाला । विशेष-इम अर्थ मे इस शब्द का प्रयोग केवल विधेय रूप मे दृढनिश्चयी। ३ मनमौजी । स्वेच्छाचारी । होता है । जैसे,—'यह काम मना है'। यह नहीं कहते 'मना मनस्वी काम न करना चाहिए।' -सज्ञा पु० शरभ । ३ -अनुचित । नामुनासिब । मनहस-सज्ञा पु० [ हिं० मन+ हस ] पद्रह अक्षरो के एक वणिक छद का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे सगण, फिर दो जगण, मना-सज्ञा पु० रोक । निपेध । वारण । फिर भगण और अत मे रगण होता है (स ज ज भ र)। मनाई - -स्ज्ञा स्त्री० [अ० मनाही ] द० 'मनाही' । इसे मानमम भी कहते है। जैसे,-विरहीन को पलखात मनाक-वि० [ म० ] १ अल्प | थोडा । २ मद । हो यहि नाम सो। यहि ते पलाश प्रसिद्ध हो गति वाम यौ०-मनाक्कर । मनाप्रिय । कछु फूल लागत लाल है नेहि हेतु सों । इमि देखि के पुहुमी मनाक-वि० [ स० मनाक् ] अल्प । थोटा । जरा मा । उ०- पुरदर चेत सो। (क) टूटत पिनाक के मनाक वाम राम मे ते नाक विनु भए मनहर-वि० [हिं० मन+ हरना वा मं० मनोहर मन को हरनेवाला। भृगुनायक पलक मे ।-तुलसी (शन्द०)। (ख) दाहिनो दियो मनोहर । पिनाकु महमि भयो मनाकु महाव्याल विकल बिलोकि जनु र-सज्ञा पु० घनाक्षरी छद का एक नाम । दे० 'घनाक्षरी' । जरी है । - तुलसी (शब्द०)। मनहरण'-सञ्ज्ञा पु० [हिं० मन+ हरण ] १ मन हरने की क्रिया मनाका-मज्ञा पी. [ स० ] हयिनी । या भाव । २ पद्रह अक्षरो का एक वरिणक छद जिसके प्रत्येक मनाकर-वि० [ ] कुछ भी काम न करनेवाला । मट्ठर । मुम्त । चरण मे पाँच सगण होते हैं। इसे नलिनी और भ्रमरावली काहिल (को०] । भी कहते है। जैसे,- दुर्जन की हानि विरघापनोई कर पर मनाक्प्रिय-वि० [सं० ] बहुत कम प्रिय । अल्पप्रिय (को०)। गुण लोप होत इक मोतिन को हार ही । (शब्द)। मनाग - वि० [ म० मनाग] द. 'मनाक' । उ०—अस्थिमात्र होइ मनहरण- २-वि० मनोहर | सुदर । रहे मरीरा । तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा ।-तुननी मनहरन- सज्ञा पु० [सं० मनहरण ] दे० 'मनहरण' । (शब्द॰) । मनहरन-वि० [स्त्री० ममहरनी] मन हरनेवाला । उ०--(क) मनादी-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मुनादी' । नदपि पुराने बक तऊ सरवर निपट कुचाल । नए भए तु कहा मनाना-क्रि० स० [हिं० मानना का प्रे० रूप] १ दूसरे को भए ये मनहरन मराल |-विहारी (शब्द॰) । (ख) कलिमल मानने पर उद्यत करना । यह कलवाना कि हाँ कोई वात हरनी मगलकरनी। मनहरनी श्रीमुक मुनि वरनी ।-नद० ऐसी ही है। स्वीकार कराना । मकरवाना। २ जो अप्रसन्न ग्र०, पृ० १६०। हो, उसे सतुष्ट या अनुकूल करना । ले हुए को प्रसन्न करना। मनहार-वि० [हिं० ] दे॰ 'मनोहारी' । राजी करना । जैसे,—वह रूठा था, हमने मना लिया। उ०- मनहारि-वि० [हिं० ] दे० 'मनोहारी' । (क) मो मुश्ती सुचि मत मुमते सुसील मयान मिरोमनि स्वं 1 - मनहर न० 1 6-२