पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२६०

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स० SO मेवाती ४०१४ मेहँदी मेवाती-सज्ञा पुं० [हिं० मेवात + ई (प्रत्य॰)] मेवात का मेपलोचन-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] चक्रमर्द । चकवंड । रहनेवाला । मेषवल्ली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] मेढासिंगी। मेवादार - वि० [फा० मेवदार ] फलदार । फलयुक्त । मेषावषाणिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] मेढामिंगी। मेवाफरोश-सज्ञा पु० [फा० मेवह् + फरोश फल या मेवे बेचने- मेषवृषण-सज्ञा पु० [ स० ] इंद्र का एक नाम । उ०—मेपवृषण वाला। अस नाम शक्र को ढहै सब समारा। अवृपण मेष देव पितरन मेवासा-सज्ञा पु० [हिं० मवासा ] १ किला। गढ । २ रक्षा को दैहै तोहि अपारा ।-रघुराज (शब्द०)। का स्थान । ३ घर । उ०-कबीर हरि की गति का मन मेपथ ग-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मेपड्ग ] सिंगिया नामक स्थावर विष । मे बहुत हुलास । मेवासा भाज नहीं होन चहै निज दास । मेष, गी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मेपशृङ्गी ] मेढासिंगी। -कवीर (शब्द०)। मेषसंक्राति -सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मेपसङ्क्रान्ति ] मेप राशि पर सूर्य मेवासी-सज्ञा पुं० [हिं० मेवासा ] १ घर मे रहनेवाला । घर का के पाने का योग वा काल । मालिक । उ०—मन मेवासी मूडिए केशहि मूड़े काहि । जो विशेष-इसी दिन से सौर मास के वैशाख का प्रारभ होता है। कुछ किया सो मन किया केशॉ किया कछु नाहिं ।—कबीर इस दिन हिंदू लोग सत्तू दान करते हैं, इससे इस 'सतुपा सक्राति' (शब्द॰) । २ किले मे रहनेवाला । सरक्षित और प्रवल । भी कहते हैं। उ०-कबिरा मन मेवासी भया बस करि सके न कोय। सन- मेपाड-सक्षा पु० [सं० मेषाण्ड ] इद्र । कादिक रिपि मारखे तिनके गया विगोय । —कबीर (शब्द०)। मेपा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० १ गुजराती इलायची । २ चमडे का एक मेप-सज्ञा पु० [ ] १. भेड । २ बारह राशियो में से एक जिसके भेद जो लाल भेड की खाल से बनता है। अतर्गत अश्विनी, भरणी पौर कृत्तिका नक्षत्र का प्रथम पाद मेघालु-सज्ञा पुं॰ [ ] बर्बरी । बनतुलसी । ववुई । पड़ता है। -सञ्ज्ञा स्त्री० [ ] १ भेड । स्त्री मेप। २ तिनिश विशेप-इस राशि पर सूर्य वैशाख मे रहते हैं। राशियो की मेषिका, मेषी- वृक्ष । ३ जटामासी। गणना मे इसका नाम सबसे पहले पडता है। इसकी आकृति मेप के समान मानी गई है। यह राशि सूर्य का उच्च स्थान मेषरण-मज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'मेसूरण' [को॰] । है । इसमे जवतक सूर्य रहते हैं, तबतक बहुत प्रवल रहते हैं। मेस-सज्ञा पुं॰ [अं०] १ वह स्थान जहाँ मूल्य लेकर विद्याथियो उच्चाश काल वैशाख मे प्रथम दस दिन तक रहता है। इसके के लिये भोजन का प्रबंध किया जाय । छापावास से सबद्ध उपरात सूर्य उच्चाशच्युत होने लगते है। भोजनालय जहाँ विद्यार्थी मूल्य देकर भोजन करते है। २ ३ एक लग्न जो सूर्य के मेप राशि मे रहने पर माना जाता फौजी अफसरो, सैनिको श्रादि का सयुक्त भोजनालय | है। जमे,—यदि किसी का जन्म सूर्य के मेष राशि मे रहने मेसूरण 1-सज्ञा पु० [सं०] फलित ज्योतिप मे दशम लग्न जो कर्म- पर होगा, तो कहा जाएगा कि उमका जन्म मेष लग्न मे हुआ । स्थान कहा जाता है। मुहा०-मेप कानाg = मीन मेप करना । आगा पीछा करना । मस्मराइजर-मज्ञा पुं० [अ० मेज्मराइजर ] वह जो किसी को अपनी सकल्प विकल्प करना । उ०—कियो अक्रूर भोजन दुहुन सग इच्छा शक्ति से अचेत कर देता है। मेस्मा रेज्म करनेवाला। लै, नर नारी व्रज लोग सबै देखे । मनो आए सग, देखि ऐसे समोहित करनेवाला । समोहक । रग, मनहि मन परस्पर करत मेष । —सूर (शब्द॰) । मेस्मरिज्म-सज्ञा पुं० [अ० मेज्मा रज्म (मेज्मर नामक जर्मन डाक्टर ४ एक ओपथि । ५ जीवशाक । मुसना । का निकाला हुआ ) वह सिद्धात जिससे कि मनुष्य किसी गुप्त मेपकवल-सज्ञा पुं॰ [ स० मेपकम्बल ] मेष के रोएं का कवल । ऊनी शक्ति या केवल इच्छाशक्ति से दूसरे की इच्छाशक्ति को प्रभा केबल [को०)। वान्वित या वशीभूत कर सकता है। वह विद्या या शक्ति जिससे कोई मनुष्य अचेत कर वश मे किया और अपने इच्छा- मेषकुसुम-सशा पुं० [ स० ] चकवंड नाम का पौधा । चक्रमर्द [को०] । नुसार परिचालित किया जा सके, अर्थात् उससे जो कुछ मेपग-वि० [ स० ] मेप राशि मे गया हुआ। उ०-माधव मेपग कहलाया जाय, वह फहे या जो कुछ पूछा जाय, उसका उत्तर भानु मैं हे मधुसत्रु मुरारि । प्रात न्हान फल दीजिए नाथ पाप दे । समोहिनी विद्या । समोहन । निरुवारि । -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ६० । विशेप-जिसपर मेस्मरिज्म किया जाता है, वह अचेत सा हो मेषपाल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] गडरिया । जाता है, और उस अवस्था मे उससे जो कुछ कहलाना होता मेपपालक-सचा पुं० सं०] दे० 'मेपपालक' [को०] । है, वह कहता है या जो कुछ पूछा जाता है, उसका उत्तर मेपपुष्पा-सच्चा स्त्री॰ [ स० ] मेदासिंगी । मेपमास-सञ्चा पुं० [स० ] वैशाख मास (को०] । मेहेंदी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मेन्धी, मेन्धिका ] पत्तो झाडनेवाली एक मेपर-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मेखला ] दे० 'मेखला' । उ०—रवत कट्टि झाडी जो बलोचिस्तान के जगलो मे आपसे श्राप होती है और मेपर, चकोर साव से सुर ।-पृ० रा०, ६११७७० । सारे हिंदुस्तान मे लगाई जाती है। देता है।