पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२६६

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मैल ४०२१ मो मे बहुत मैल जम गई है। (ख) अांख या कान आदि मे मल मक्खन को गरम करने पर नीचे बैठ जाती है। घी वा मक्खन न जमने देनी चाहिए। तपाने से निकला हुआ मट्ठा। यौ०-मैलखोरा। मैहर २-सग पुं० [सं० मातृगृह ] दे० 'नेहर' । मुहा०—हाथ की मैल = तुच्छ वस्तु, जिसे जब चाहे तव प्राप्त कर मैहरमशा रस्सी० विवाह के अवसर पर किया जानेवाला मातृका- लें। जैसे,-रुपया पैसा हाथ की मैल है । पूजन आदि कृत्य। २. दोष । विकार । जैसे-मन मैल मिटे, तन तेज वढे, करे भग मैहर - ४.-सझा पुं० मध्यप्रदेश मे रीवा राज्यातर्गत एक प्रसिद्ध स्थान । अग को मोटा । (गीत)। विशेष-यहाँ भगवती दुर्गा की एक अतिप्राचीन और प्रसिद्ध मूर्ति मुहा०- मन में मैल रखना = मन में किसी प्रकार का दुर्भाव है । लोग दूर दूर से उसवा दर्शन करने पाते है। चदेतो की यह या वैमनस्य आदि रखना। कुलदेवी भी कही गई हैं। राजा परमाल के प्रमुख सामंत वीर मेल-सञ्ज्ञा पुं० [ दश० ] फीलवानो का एक सकेत जिसका व्यवहार पाल्हा और उदल इनके उपासक थे। आज भी यह कहा जाता हाथी को चलाने में होता है। है कि अमर पाल्हा भगवती का रात्रि को पूजन करता है। मैलखोरा'-वि० [हिं० मैल + फा० स्वोर (= खानेवाला) ] (रग मैहल, मेहेल;-महा पु० [अ० महल] महल । प्रावाम । उ०- आदि ) जिसपर जमी हुई मैल जल्दी दिखाई न दे। मैल को (क) रिपी मन्न महल्ल भोजन कज्जी | पृ० रा०, २०२४३ । छिपा लेनेवाला (रग) । जैसे-काला या खाकी रग मैलखोग (ख) रग महल सोत सुगल करि, टहलन करी गहेली।-पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ३८६ । होता है। मैलखोरा-सशा पु० १ वह वस्त्र जो शरीर की मल से शेप कपडो माँ-अव्य० [सं० स्मिन् ] दे० 'मे' । उ०-तनपोषक नारि नग सिगरे । परनिंदक ते जग मो वगरे । -तुलमी (शब्द०) । की रक्षा करने के लिये प्रदर पहना जाय। जैसे गजी, कमीज श्रादि । २ काठो या जीन के नीचे रखा जानेवाला नमदा । माँ-मर्व० [सं० मह्यम् ] खडी बोली के 'मुझ' के ममान तज और ३ सावुन । अवधी में 'मैं' का वह रूप जो उसे कतकिारक को अतिरिक्त और मैला'-वि० [स० मलिन, प्रा• मइल ] १ जिसपर मैल जमी हो । किमी कारक का चिह्न लगने के पहले प्राप्त होता है । जैसे, मयु जिसपर गर्द, धूल या कोट आदि हो। जिसकी चमक दमक मोको, मोप, इत्यादि । उ० -(क) साहिन की पाग्या है मोऊं। मारी गई हो। मलिन । अस्वच्छ । साफ का उलटा । -रामानंद०, पृ० २६ । (ख) कॉपी भीह पुहुप पर दसे । यौ०-मैला कुचैला। जनु मसि गहन तैस मोहि लेखे । —जायसी ग्र०, पृ० १४३ । २ विकारयुक्त । सदोप । दूपित । ३ गदा । दुर्गधयुक्त । मोंगरा-सशा पुं० [स० मुद्गर ] [ स्त्री० मोगरी ] काठ का बना हुआ मैला -मज्ञा पुं० [सं० मत ] गलीज । गू। विष्ठा । २ कूडाकर्कट । एक प्रकार का हथौडा जिसस मेख इत्यादि ठोकी जाती है। ३. दे० मल'। मांगरा-सञ्ज्ञा पुं० १ दे० 'मोगरा' । २ दे० 'मुगरा' । मैलाकुचैला-वि० [हिं० मैला+स० कुचल (= गंदा वस्र)] १ जो मोगला-सज्ञा पुं॰ [देश॰] मध्यम श्रेणी का और माधारणत बाजार बहुत मैले कपडे पहने हुए हो । २ बहुत मैला । गदा । मे मिलनवाला केगर । वि० दे० 'केसर'। मैलापन-राज्ञा पुं० [हिं० मैला + पन ( प्रत्य० ) ] मैला होने का माँची-सशा पुं० [हिं० मोछ ] दे० 'मूंछ' । उ०-देखिए इश्को भाव । मलिनता। गदापन । मोच का रेख पा रहा है। -मैना० पृ० १३० । मैलेयक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का हीन वा साधारण मौर-तचा स्रो० [सं० श्मश्रु । दे० 'मूछ' । उ०--इसके महारे स्वदेश रत्न (को०)। तक श्रीमान् मोछो पर ताव देते चले जा माते हैं। बालमुकुद मैवार-वि० [दश० मै+वार ] मद वा अहकार से युक्त । घमंडी। गुप्त (शब्द०)। उ०-देवा पाहव प्रागमे, माहव फा मंवार ।-रा० ८०, माँडीकाटा-वि० [हिं० मूदी + काटना] त्रियो द्वारा पुरुषों के लिये पृ० १३७ । प्रयुक्त एक गाली। उ०-मुए तलपट की सब गुगकर भलाई, मैवास-सज्ञा पु० [हिं० मयासा ] दे० 'मवासा' । उ०-गए पर्वत मोठीकाटे को मैं लिखन बुलाई। दक्खिनी, पृ० २११ । बफ मैवास भार ।-ह. रामो, पृ० ६८ । मौढा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० मूझी, मूढा (= अाधार) J१ बोम, मरकरे मैशिनरी -सशा रखी० [अ०] १. किमी या या कल के पुर्जे। २. या बेंत का बना हुआ एक प्रकार का चा गोलाकार भागन यन। फल । मशीन। जो प्राय ।तरपाई म मिलता जुलता होता है। २ बाढ़ के जाट मेहमा-तश सी० [स० महिमन ] ६० 'महिमा'। उ०—साह के पास का बना हुमा घेरा । पंचा। कमोटी के नाह मर जोन तही की महा पो मन में रहे यो०-सीना मोदाघाती और क्या । जाचे ।-गोदार भाभ० प्र०, पृ० ३५६ । मो-सर्व [सं० मम ] १ मेरा। उ-मो मपति यदुपाते नदा मैहरा -सरा पु० हि० महो (= मट्ठा)] वह तलछट जो घो वा विपति विदारनहार ।-बिहारी (शब्द०)। २ अवधी भोर