पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२७८

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मोरिका ४०३७ मोह (शब्द०)। २ रस पेरने के समय ऊख की अंगारी को कोल्हू मोलिया - वि० [देश॰] मुडने या लचकनेवाला । नाजुक । कोमल । मे दवाना। निर्बल । मुलायम । उ० मावडिया अंग मोलिया, नाजुक अग मोरिफा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ म० छोटा दरवाजा। गुप्त या वगल का निराट ।-बाँकी० ग्र० भा० २, पृ० १३ । दरवाजा [को॰] । मोल्ड-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] साँचा । मोरिया -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० मोरना ] कोल्हू में कातर की दूसरी मोवना-क्रि० स० [हिं० मोयन ] दे० 'मोना' । शाखा जो बाँस की होती है। मोवना@-क्रि० स० [हिं० मोडना, मोरना ] दे० 'मोरना। मोरी-मञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मोहरी ] १. किसी वस्तु के निकलने का तग उ०-भृकुटी चाप चचल मुख मोवहि । --हिंदी प्रमगाथा०, द्वार । २. नाली जिसमे से पानी, विशेषत गदा और मैला पृ० १६५। पानी बहता हो । पनाली। उ०—ऐसी गाढी पीजिए ज्यौं मोशिये- मज्ञा पुं॰ [ ] तुल० मोनशे यर ] [ सक्षिप्त रूप मोन्स, मोरी की कीच। घर के जाने मर गए आप नशे के बीच । एम०, तुल० बैंग० मोशाय ] [हिं० संक्षिप्त रूप मो० ] फास -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ८३ । मे नाम के आगे लगाया जानेवाला प्रादरसूचक शब्द । मुहा०—मोरी छुटना = दस्त पाना। पेट चलना। मोरी पर महाशय । साहब । जैसे, मोशिये वायद । जाना = पेशाव करने जाना । (स्त्रियां) । ३ दे० 'मोहरी' । मोप-सज्ञा पुं० [सं० मोक्ष ] दे॰ 'मोक्ष'। मोरी-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० मयूरी, हिं० मोर + ई (प्रत्य॰)] मोर मोप-सज्ञा पुं० [सं०] १ चोरी। २ लूटना । लूट । ३ बध । पक्षी की मादा । मयूरी। उ०-मोरी सी घन गरज सुनि तू हत्या । ४ दड देना। ठाढी अकुलात ।-सीताराम (शब्द॰) । मोषक-सञ्चा पु० [सं० ] चोर । मोरी 1-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] क्षत्रियो की एक जाति जो 'चौहान' जाति मोषण-सज्ञा पुं० [सं०] १ लूटना । २ चोरी करना । ३ छोडना । के अंतर्गत हे । उ०—जादी रु वघेला मल्हवाम | मोरी वडगू ४ वध करना । ५ वह जो चोरी करता या डाका डालता हो। जर पाइ पास 1-पृ० रा०, ११४२४ । मोषना-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मोपण वा मोक्षण ] समाप्त करना । मोर्चा-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० मोरचा ] दे० 'मोरचा' । लूटना । खत्म करना। सोख लेना। सुखाना। उ०-काल अगिनि तीन भवन प्रवानी। उलटत पवना मोपत पानी। मोल-सशा पुं० [सं० मूल्य, प्रा० मुल्ल] १ वह धन जो किसी वस्तु के बदले मे बेचनेवाले को दिया जाय । कीमत । दाम । मूल्य । -गोरख०, पृ० २४६ । मोषयिता-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मोषयितु] चोरी करनेवाला। लूट क्रि० प्र०—करना ।-चुकाना ।-ठहरना ।—देना ।लेना । करनेवाला (को॰] । यौ०-अनमोल । मोषा-सशा पुं० [सं० ] चोरी । लूट । डकैती (को०] । २ दुकानदार की ओर से वस्तु का मूल्य कुछ बढ़ाकर कहा जाना । मोसना-क्रि० स० [सं० मोपण ] मारना नष्ट करना। जैसे,--मोल मत करो, ठीक ठीक दाम कहाँ । उ०-मुरगी पौं मोसता है बकरी को रोसता है ।-सुदर यौ०-मोलचाल = (१) अधिक मूल्य । (२) किसी चीज ग्र०, मा०२, पृ०४०४ । का दाम घटा वढाकर त करना । मुहा०-मोल करना = (१) किसी पदार्थ का उचित से अधिक मोसना-फ्रि० अ० मसूपना । उ०—सखि अस अद्भुत रूप निहार । मोसति मन कोसति करतार ।-नद० ग्र०, पृ० १२४ । मूल्य कहना । (२) मूल्य घटा बढाकर ते करना । मोलना-सचा पुं० [अ० मौनाना] मौलवी । मुल्ला । उ०—(क) वेद मोसरी-सञ्ज्ञा पुं० [देश०] दे० 'अवसर'। उ०—प्रवके मोसर ज्ञान विचारो, राम राम मुख गाती ।-सतवाणी०, भाग २, पृ० किताब पढे वे खुतवा वे मोलना वे पाँडे |--कवीर (शब्द॰) । ६८। (ख) पडित वेद पुराण पढ़ श्री मोलना पढ़ कोराना। मोसोला-सज्ञा पुं० [अ० मुहासिल, मुहस्सिल] वसूल करनेवाला। -कवीर (शब्द०)। दे० 'मुहसिल' । उ०-पांच मोसील मिलि लगे घर घर महै मोलवी-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मौलवी ] वह विद्वान् मुसलमान जो अपने मारि प्रौपीटि के रोज मांग | -पलटू०, भा॰ २, पृ० ३६ । धर्मशास्त्र का अच्छा ज्ञाता हो। मौलवी। उ०-रहे मोलवी मोह-सज्ञा पुं० [सं०] १ कुछ का कुछ समझ लेनेवाली बुद्धि । साहेव जहं के अतिसय सज्जन |-प्रमघन॰, भा० १, पृ० २० । प्रज्ञान | भ्रम । भ्रांति । उ०—तुलसिदास प्रभु मोह जनित भ्रप मोलसिरी-सशा स्त्री० [हिं०] दे० मौलसिरी'। उ०--तहं मोलसिरी भेदबुद्धि कब बिसरावहिंगे । - तुलसी (शब्द०)। २ शरीर सोहैं गंभीर ।-ह. रासो, पृ० ६२ । और सासारिक पदार्थों को अपना या सत्य समझने की बुद्धि मोलाई-सज्ञा स्त्री० [हिं० मोल+भाई (प्रत्य०) ] १ मोल पूछने जो दुखदायिनो मानी जाती है। ३ प्रेम। मुहब्बत । प्यार। या त करने की क्रिया । मूल्य कहना वा ठीक करना। उ०—(क) साँचेहु उनके मोह न माया । उदासीन घन धाम न मोलाना- क्रि० स० [हिं० मोल ] मोलभाव करना। कीमत ते जाया।—तुलसी (श द०)। (ख) काशीराम कहै रघुवाशन करना । उ०-नददास पिय प्यारी की छवि पर त्रिभुवन की की रीति यहे जसो कीज मोह तासा लोह कैसे गहिऐ। शोभा वारी विनु मोले ।- नद० ग्र०, पृ० ३६६ । -काशीराम (शब्द०)। (ग) मोहू सो तजि मोह हग 1