पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२७९

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+ १ 0 २ ० घा o y 0 o - का प्राम। मोहक ४०३८ मोहना चले लागि उहि गेल । -विहारी (शब्द॰) । (घ) रह्यौ मोह मूचित किया जाता था। उ०-वर विद्यावर अस्त्र नाम नदन मिलनो रह्यो यौं कहि गहे मरोर | -विहारी (शब्द०)। जो ऐमो। मोहन, स्यापन, ममन, सौम्य, कर्पन पुनि तसो।- ४ साहित्य मे ३३ सचारी भावो में से एक भाव । भय, पद्माकर (शब्द )। ६, कोन्हू की कोठी अर्थात् वह स्थान जहां दुख घबराहट, अत्यत चिंता आदि से उत्पन्न चित्त की दवने के लिये ऊख के गढेि डाले जाते हैं। इसे 'कु डी' और विकलता। ५ दुख। कष्ट । ६. मूर्छा । वेहोशी। गश । 'घगरा' भी कहते हैं। ७ कामदेव के पांच बाणों में एक बाण उ०—गिरयौ हस भू मे भयो मोह भारी।-रघुराज का नाम । ८ धतूरे का पौया । ६ शिव का एक नाम (को०)। (शब्द०)। १० विपशु की नौ शक्तियो मे एक गपिन (को०)। ११ मोहक-वि० [सं०] १ मोह उत्पन्न करनेवाला। जिसके कारण सभाग। रनि । मैथुन (को०)। १० वाग्ह मायाग्रो का एक मोह हो । २ मन को प्राकृष्ट करनेवाला । लुभानेवाला । ताल जिसमे मात प्राघात और पांच खाली रहते हैं। इसका मोहकम-वि० [अ० मुहकम] बडा । भारी । उ०-मोहकम मार पडी मृदग का वोल यह है-चा तागे तेरे पता गुरजन की तव कहु ज्वाव न आया ।--मलूक०, पृ० २५ । ३ ४ + मोहकलिल-सज्ञा पुं० [सं०] १ मोह का दृढ पाश । माया का कता गदि घेने नाग देत् तेरे केरे। घा। जाल । २ मादक पेय । मदिरा (को०) । मोहकार-सज्ञा पुं० [हिं० मुंह + कैडा या कार (प्रत्य॰)] पीतल मोहन-वि० [स० ] [ वि० पी० मोहिनी ] मोह उत्पन्न करनेवाला। उ०-मब भांति मनोहर मोहन रूप अनूप है भूत्र के बालक या ताँबे के घडे का गला समेत मुहंडा । (ठठेरा) । हूँ। तुलसी (शब्द०)। मोहठा- -सज्ञा पुं० [ स० ] दश अक्षरो का वह वर्णवृत्त जिमके प्रत्येक मोहनक- ' पुं० [सं० ] चैत्र मास को०] । चरण मे तीन रगण और एक गुरु होता है। हमे 'वाला' भी मोहनभोग-नशा पुं० [हिं. मोहन + भोग ] १ एक प्रकार का कहते हैं । जैसे,—रोरि रगा दिया कोन बाला । मैं न जानौं हलुमा । २ एक प्रकार का केला ( फन )। ३ एक प्रकार कहै नदलाला। श्याम की मात बोली रिसाई। गोपि कोई करी है ढिठाई।-छद०, पृ० १५६ । मोहडा -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मुंह+हा (प्रत्य॰)] १ किसी पाय का मोहनमाल, मोहनमाला-मशा सी० [ स० ] सोने की गुरियो या मुंह या खुला भाग । २ किसी पदार्थ का अगला या ऊपरी दानो की बनी हुई म ला। उ०-(क) मोहनलाल के मोहन को यह पैन्हति मोहनमाल अकेली। देव (शब्द॰) । (ख) मोहनमाल विमाल हिए पर सोहत नील सुपीत पिछौरी । मुहा०-मोहदा लगाना = अन्न से भरे हुए बोरे दुकान पर रखकर दीनदयाल गिरि (शब्द॰) । उसका मुंह खोल देना । (अन्न के व्यापारी) । मोहडा मारना = किसी काम को सबसे पहले कर डानना । मोहना-फ्रि० अ० [ स० मोहन ] १. किमी पर आशिक या अनुरक्त ३ मुह । मुख । होना। मोहित होना। रीझना । उ०—(क) सुदर वपु भति श्यामल सोहै । देखन सुर नर को मन मोहै। -केशव (गन्द०)। मोहडा-सज्ञा पुं० दे० 'मोहरा' । (ख) देखत रूप सकल मुर मोहै । -तुलसी (शब्द०)। (ग) मोहताज-वि० [अ० मुहताज़ ] १ धनहीन । निर्धन । गरीव । चारयो दल दूलह चारु बने । मोहे सुर औरन कौन गने । २ जिसे किसी बात की अपेक्षा हो। जैसे,—वह आपकी मदद - केशव (शब्द०)। २. मूछित होना। वेहोश हो जाना। के मोहताज नही हैं। उ०—अष्टम सर्ग महा ममर कुश लव भरतहि माय । जुग बघुन मोहताजी-सञ्ज्ञा स्त्रो० [हिं० मोहताज + ई (प्रत्य॰)] मोहताज होने कर मोहियो भरत नास तिन हाथ '-शिरमौर (शब्द०)। की क्रिया या भाव । गरीवी । मोहना'-'क्र० स० [ सं० मोहन ] १. अपने ऊपर अनुरक्त करना । मोहन'–सञ्चा १० [सं०] १ मोह लेनेवाला व्यक्ति । जिसे देखकर मुग्य करना । मोहित करना । लुभा लेना। उ०—(क) पडित जी लुभा जाय । उ०.- लखि मोहन जो मन रहै तो मन राखौ अति मिगरी पुरो मनहु गिरा गति गूढ । सिंह नियुत जनु मान ।-बिहारी (शब्द०)। २ श्रीकृष्ण। उ०—मोहन तेरे चडिका मोहति मूढ अमूढ । केशव (शब्द॰) । (ख) बैठे नाम को कढ़ो वा दिना छोर । व्रजवासिन को मोह के चलो मधु जराय जरे पलका पर राममिया सबको मन मोह । केशव पुरी पोर -रसनिधि (शब्द॰) । ३ एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक (शब्द०)। (ग) अहो भले लतिका तरु सोहैं। कलिन कोपलन चरण मे एक सगण और एक जगण होता है। जैसे,-जन सो मन मोहैं। -प्रतापनारायण मिश्र (शब्द॰) । २ भ्रम मे राजवत । जग योगवत । तिनको उदोत । केहिं भांति होत ।- डाल देना। सदेह पैदा कर देना । धोखा देना। उ०—(क) केशव (शब्द०)। ४ एक प्रकार का तात्रिक प्रयोग जिससे किसी तुम प्रादि मध्य अवसान एक । जग मोहत हो वपु धरि अनेक । को वेहोश या मूछित करते हैं। उ०-मारन मोहन बसकरन -केशव (शब्द॰) । (ख) प्रति प्रचह रघुपति के माया। जेहि उच्चाटन अस्थम । श्राकर्पन सव भांनि के पढ सदा करि दम । न मोह अस को जग जाया ।—तुलसी (शब्द॰) । (शब्द०)। ५ प्राचीन काल का एक प्रकार का प्रस्त्र जिससे शत्रु मोहना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. तृण । २ एक प्रकार को चमेला । भाग। 1