पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८१

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3 मोहरी ४०४० मोडेसी किसी कर्मचारी को मोहर करने के लिये दिया जाय । मोहर माँहि माँहिल–सर्व० [हिं० मोहिं ] दे० 'मोहि' । करने की उजरत । मोहि-सर्व० पुं० [ स० मह्यम्, प्रा० मय्ह, मज्झ ] प्रजभाषा मौर मोहरी 1-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मोहरा + ई (प्रत्य॰)] १ वरतन आदि अवधी के उत्तम पुरुष 'मैं' का वह रूप जो पहले सब कारको में का छोटा या खुला भाग। २ पाजामे का वह भाग जिसमे प्राता था। पर पीछे कर्म और सप्रदान मे भी आने लगा। टाँगें रहती हैं। ३ दे० 'मोरी'। मुझको। मुझे । उ०—(क) मरूं पर मांगी नहीं अपने तन के मोहर्रिर- सशा पुं० [अ० मुहरि ] वह जो किसी के कागज आदि काज। परमारथ के कारन मोहिं न प्रावं लाज ।-सूर लिखने का काम करता हो । लेखक । मु शी। (शब्द॰) । (ख) नैना कह्यो न मान मेरो। हारि मानि के रही मोहलत त-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मुहलत ] १ फुरसत । अवकाश । छुट्टी । मौन ह निकट सुनत नहिं टेरो। ऐसे भए मनो नहिं मेरे जबहि क्रि० प्र०-देना।--माँगना ।—मिलना ।-लेना। श्याम मुख हेरो। मैं पछताति जहिं सुषि प्रावति ज्यों दीन्हो मोहिं डेरो।—सूर (शब्द०)। २. किसी काम को पूरा करने के लिये मिला हुआ या निश्चित समय । अवधि । जैसे,—चार दिन की मोहलत और दी जाती मोहिन-वि० [सं० ] मोह या भ्रम मे पडा हुआ। मुग्ध । २ मोहा है । इस बीच मे रुपया इकट्ठा करके दे दो । हुमा। आसक्त। मोहिनी'- वि० सी० [ मोहल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [अ० महल्लह, ] दे० 'महल्ला' । ] मोहनेवाली। मोहवत@f-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मुहब्बत ] दे० 'मोहब्बत' या 'मोह'। मोहिनी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ त्रिपुरमाली नामक फूल । वटपत्रा । उ.- हसा पान बैठा तीरे। निश दिन चुगै मोहबत हीरे।- बेला । २. विष्णु के एक अवतार का नाम | रामानद०, पृ० १०॥ विशेष-भागवत के अनुसार विष्णु ने यह भवतार उस समय मोहशास्त्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] मोह उत्पन्न करनेवाला शास्त्र या लिया था, जब देवतायो और दैत्यो ने मिलकर रलो को निका- ग्रथ [को०] । लने के लिये समुद्र मथा था और अमृत के निकलने पर दोनों उसके लिये परस्पर झगड रहे थे। उस समय भगवान ने मोहार -सज्ञा पुं० [हिं० मुँह + पार (प्रत्य॰)] १ द्वार । दरवाजा । मोहिनी अवतार धारण किया था और उन्हे देखते ही मसुर उ०-ठाढ़ि मोहारे धन सुसुकै, मन पछताइल हो ।-घरम०, पृ० ६४ । २ मुंहडा। मगला भाग। उ०-रूप को कूप मोहित होकर बोले थे कि पच्छा मामो, हम दोनो दलो के वखानत हैं कवि कोक तलाब सुधा ही के संग को। कोक तुफंग लोग बैठ जाय और मोहिनी अपने हाथ से हम लोगो को ममुप्त बाट दे। दोनो दलो के लोग पक्ति बांधकर बैठ गए मोर मोहार कहे दहला कलप म भाषत मग को।-शभु (शब्द॰) । मोहार--सञ्ज्ञा पु० [सं० मधुकर, प्रा० महुअर १. मधुमक्खी को मोहिनी रूप विष्णु ने अमृत बाँटने के बहाने से देवतामों को एक जाति जो सबसे बड़ी होती है । सारग । २ मधु का छत्ता। ममृत और असुरो को सुरा पिला दी। ३. भौंरा । भ्रमर। ३ माया । जादू । टोना । ७० - देवी ने ऐसी मोहिनी डाली थी मोहारनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंह+स० पारायण (प्रत्य॰)] पाठ- कि यशोदा को लडकी के होने की भी सुध नहीं थी। लल्लू शाला के बालको का एक साथ खड़े होकर पहाड़े पढना। (शब्द०)। ४. वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम । । एक मोहाल-सज्ञा पुं० [अ० महाल ] पूरा गांव वा उसका एक भाग पप्सरा का नाम (को०)। ६ एक अर्घमम वृत्त का नाम जिसके पहले मोर तीसरे चरणो में बारह घोर दूसरे तथा चौथे अथवा कई गांवो का एक समूह जिसका वदोबस्त किसी नबर- चरणो में सात मात्राएं होती हैं, भौर प्रत्येक चरण के मत में दार के साथ एक बार किया गया हो। व्यवहार में 'मोहाल' एक सगण अवश्य होता है। उ०-शमु भक्तजनत्राता भवदुष पूरा माना जाता है और इसी विचार से उसकी पट्टी वा हिस्सा हरें । मनवाछित फलदाता मुनि हिय धरै ।-छंद०, पृ० ७६ ॥ वनाया जाता है। ७ पद्रह अक्षरो के परिणक छद का नाम जिसके प्रत्येक चरण मोहाल' '--सज्ञा पुं० [हिं० मोहार ] १ मधुमक्खी को एक जाति । में सगण, भगण, तगण, यगण, और सगण होते हैं । उ०-- मोहार । २ मधुमक्खी का छत्ता । शुभ तो ये सखि री आदिहुँ जो चित्त धरी | नर भी नारि पर्दै मोहाल-वि० [अ० मुहाल ] मुश्किल । कठिन । दे० 'मुहाल' । भारत के एक घरी !-छद०, पृ० २०८ । 3०-इतनी मान्यताप्रो के बाद मादमी का जीना मोहाल हो मोही -वि॰ [ सं० मोहिन् ] [ वि० खौ० मोहिनी ] मोहित करने- जाता है। काले०, पृ०७० । वाला। मोहावरित- वि० [सं० मोहावृत ] मोह से पाच्छादित । उ०- मोही-वि० [हिं० मोह + ई (प्रत्य॰)] १ मोह करनेवाला । प्रेम जैसी मोहावरित ब्रज मे तामसी रात आई । वैसे ही वे लसित करनेवाला । २ लोभी । लालची । ३, भ्रम या मविद्या मे पहा उसमे कौमुदी के समा थी। प्रिय०, पृ० २६८ । हुआ। प्रज्ञानी। मोहासिव–सञ्चा पुं० [अ० मुहासियह ] हिसाव किताव । पूछ ताछ। मोहेला-सज्ञा पुं० [अ० महल ] एक प्रकार का चलता गाना | उ०-मोहासिव करि अम्थिर मनुवां मूल मंत्र प्रवराधी ।- मोहेली-सच्चा स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की मछली जो हिमालय और घरनी० श०, पृ०४। सिंघ की नदियो में मिलती है।