मौल्य ४०४५ मौलवी स० 1 मौर्य-सहा पु० [सं०] मूर्खता । बेवकूफी । मौर्य -एज्ञा पुं० [ ] क्षत्रियो के एक वश का नाम । विशेप-सम्राट चंद्रगुप्त और अशोक इसी वश में उत्पन्न हुए थे। पुराणो मे मौर्यों को वर्णसकर लिखा है और मौर्य वश का मूलपुरुष 'चद्रगुप्त' माना गया है। पुराणो के अनुसार चद्रगुप्त का जन्म मुरा नामक शूद्रा से हुआ था और वह चाणक्य की सहायता से नदो का नाश कर पाटलिपुत्र का सम्राट् हुआ था। (विशेष दे० चद्रगुप्त । ) पर बौद्ध ग्रथो में 'पद्रगुप्त' को 'मोरिय' वश का लिखा है और उसे शुद्ध क्षत्रिय माना है। मौर्य वश के शुद्ध क्षत्रिय होने की पुष्टि दिव्यावदान मे अशोक के मुंह से कहलाए हुए 'देव अह क्षात्रय कथ पलाडु परिभक्ष्यामि' से भी होता है, जिसमे अशोक कहता है-'दाव, मैं दात्रय हूँ, मैं प्याज कम खाऊ ।' 'मुरा' शब्द मे ‘ण्य' प्रत्यय लगाने से मौर्य' शब्द बहुत खीच खाँच से बनता है, पर पालि भाषा मे 'मोरिया' शब्द पाया है, जिसकी सिद्धि पालि व्याकरण के अनुसार 'मोर' शब्द से, जो 'मयूर' का पालि रूप है, की गई है। यह समझकर जैनियो ने चद्रगुप्त की माता का नद के मयूर- पालको के सरदार की कन्या लिखा है । वृद्धघोष के विनयपिटक की आत्मकथा का टीका और महावश का टीका में चद्रगुप्त को मोरिय नगर के राजा का रानी का पुत्र लिखा है । यह मोरिम नगर हिंदूकुश और चित्राल के मध्य उजानक (स० उद्यान) देश मे था। महापरिनिर्वाण सूत्र में लिखा है कि जिस समय महात्मा मौतम बुद्ध का कुशीनगर में निर्वाण हुआ था पौर मल्लराज ने उनकी पत्येष्टि के अनतर उनके भस्म और मस्थि को फुसीनगर में चैत्य बनाकर प्रतिष्टित करना चाहा था, उस समय कपिलवस्तु, राजगृह आदि के राजापो ने महात्मा बुद्धदेव के भातु को बांटकर अपने अपने भाग को अपने अपने देश में पत्य बनाकर रखने के उद्देश्य से कुशीनगर पर चढ़ाई की थी, जिससे महान् उपद्रव की सभावना देख महात्मा द्रोण ने महात्मा बुद्धदेव के धातु को विभक्त कर प्रत्येक को कुछ कुछ भाग देकर भगा पति किया था । उन राजाप्रो मे, जिन्हें महारमा पुददेव की चिता के भस्म का भाग दिया गया था, पिप्पसोकानम के मोरिया राजा का भी उल्लेख महापरिनिर्वाण सूत्र में है। इससे विदित होता है कि महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण काल में पिप्पलीकानन में मोरिय क्षत्रियों का निवास था। इससे मोरिय राजवश की सत्ता का पता चदगुप्त से बहुत पहले तक चलता है। ये मोरिय लोग शाक्य, लिच्छवि, मल्ल मादिवश के क्षत्रियो के सबधो थे। जान पड़ता है, ये लोग काबुल के प्रदेशो के रहनेवाले क्षत्रिय थे; और जब पारसी पार्यो मे भारतीय पार्यों पर भाक्रमण करना प्रारंभ किया, तब ये लोग भागकर नेपाल की तराई मे चले पाए मोर वहां के लोगों को अपने अधिकार में करके इन्होने छोटे छोटे भनेक राज्य स्थापित किए। इनके प्राचार भादि पर पारसी मार्यों और मध्य एशिया की अन्य जातियों का प्रभाव पड़ा था, इसलिये मनु जी ने उन्हे वात्य क्षत्रिय लिखा है।- झल्लोमल्लएच राजन्याद् प्रात्याल्लिच्छिविरेवच । नटश्चकरणश्चव खसोद्रविड एव च। सभव है, वौद्ध हो जाने के कारण ही सस्का रच्युत होने पर इन जातियो को प्रात्यज लिखा गया हो, और इसीलिये पुराणो मे चंद्रगुप्त मौर्य के वश के लिये भी 'वृपल' या वर्णसकर लिखा गया हो। महावश के टीकाकार और दिव्यावदान के टीकाकारो का कथन है कि चद्रगुप्त मोरिय नगर के राजा का पुत्र था। जव मोरिय के राजा का ध्वस हुआ, तब उसकी गर्भवती रानी अपने भाई के साथ बडी कठिनता से भागकर पुष्पपुर चली आई और वही चद्रगुप्त का जन्म हुआ। यह चद्रगुप्त गौए चराया करता था। इसे होनहार देख चाणक्य- जी अपने आश्रम पर लाए और उपनयन कर अपने साथ तक्षशिला ले गए। जब सिकदर ने पजाव पर आक्रमण किया, तब तक्षशिला के ध्वस होने पर चद्रगुप्त प्राचार्य चाणक्य के साथ सिकदर के शिविर मे था। बील साहब का कथन है कि मोरिय नगर उज्जानक प्रदेश मे था, जो हिंदूकुश और चित्राल के मध्य में था। इन सब बातों को देसते हुए जान पडता है, जिस प्रकार निस्विश से लिच्छवि, शक से शाक्य आदि राजवशो के नाम पड़े, उसी प्रकार मोरिय नगर के प्रथम अधिवासी होने के कारण मौर्य राजवश का भी नाम रखा गया, और प्राचार व्यवहार की विभिन्नता से पुराणो मे उसे 'वृपल' आदि लिखा गया। पारस की सीमा पर रहने के कारण उनके प्राचार न्यवहार पोर रहन सहन पर पारसियो का प्रभाव पड़ा था, पोर चद्रगुप्त तथा प्रशोक के समय के गृहो और राजप्रासादो का भी निर्माण पारस के भवनो के ढग पर ही किया गया था। चद्रगुप्त के धनंतर अशोक मौर्य वश का सबसे प्रसिद्ध सम्राट् हुआ। मौर्य साम्राज्य का ध्वस शु गो ने किया। पर विक्रम को पाठवीं शताब्दी तक इधर उधर मौर्यों के छोटे छोटे राज्यो का पता लगता है। ऐसा प्रसिद्ध है, और जैन ग्रथो मे भी लिखा है कि चित्तौड का गढ़ मौर्य या मोरी राजा चित्राग ने बनवाया था। मौ:-सबा स्रो० [सं०] १ धनुप की प्रत्यचा। कमान की डोरी। ज्या । २ मूर्वा घास की बनी मेखला जिसे क्षत्रियो को धारण करने का विधान है [को०] । मौल'--वि० [सं०] १ मूल से सबध रखनेवाला । २ पैतृक । ३ परपरागत । परपराप्राप्त (को॰) । मौल-सका पुं० [सं०] १ प्राचीन काल के एक प्रकार के मत्री। २ बड़ा जमीदार । तालुकेदार | भूस्वामी। विशेष मनु ने लिखा है कि ग्राम के सीमा सवधी विवाद को सामत पौर यदि सामत न हो तो मौल निपटावे । मौलवल-सा पुं० [ सं०] बडे जमीदारो की अथवा उनके द्वारा एकत्र की हुई सेना। मौलवी-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १. अरवी भाषा का पडित । २. मुसल- मौरूसी।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८६
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