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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८७

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मोसिमी बुम्बार 30- प्र० - मौलवीगिरी ४०४६ मान धर्म का प्राचार्य, जो परवी, फारसी आदि भापायो का उ०-मो सम पुटिन मौलिमनि नहिं जग, तुम सम हरि न ज्ञाता हो । ३ धर्मनिष्ठ मुसलमान । हरन कुटिलाई ।- मतवाणी०, भा॰ २, पृ० ८३ । मौलवीगिरी-गशा स्त्री॰ [अ० मौलवी+ गिरी ] मौलवी का काम । मोली'-वि० [सं० मालिन् ] जिगके सिर पर मॉलि या मुकुट हो । अध्यापन (को०] । मुकुटधारी। मौलसिरी-मज्ञा स्त्री० [सं० मौलि + श्री ] एक प्रकार का वहा मौली-सहा रसी० [सं०] ३० 'मौलि' । सदावहार पेड। - पहिरत ही गोरे गरे यो दौरी दुति मौलूद-सरा पुं० [ .] १ नवजात शिशु । जन्म प्राप्त गिणु। लाल । मनौ परसि पुलकित भई मौलसिरी की माल ।-विहारी २ मुहम्मद माहब के जन्म का उन्मव । उ०-याशी मे व्यास (शब्द०)। गद्दी मी लगाकर मौलूद की कथा फी भांनि । -प्रेमघन०, विशेप इसको लकडी अदर से लाल और चिकनी होती है भा०२, पृ० ३६५ । जिससे मेज, कुर्मी प्रादि बनाई जाती है। यह दरवाजे और यो०-मालूदग्या = मौजूद को कथा कहनेवाला । मालूद संगहे बनाने के भी काम आती है। इसके फूल मुकुट के प्राकार शरीफ = ( ) मुहम्मद साहब की जन्मकथा । (२) वह मजलिस के, तारे की भांति छोटे छोटे होते हैं और उनमे इत्र बनाया जिममे मुहम्मद माह की जन्मकथा नाही जाय । जाता है। इसके फल पकने पर खाने योग्य होते है और मौलेयक-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] एक प्रकार का रत्न या हीरा (कोटि०) । वीजो से तेल निकलता है। इसकी छाल अोपधियो मे काम मौल्य-नशा मं० [सं०] मूल्य | पाती है। इसका पेड वीजो से उत्पन्न होता है और सब देशो मे लगाया जा सकता है। पश्चिमी घाट और कनारा मोपल'-सशा पुं० [सं०] महाभारत के एक पर्व था नाम । में यह जगलो मे स्वच्छद रूप से उगता है। यह पेड मोपल'-वि० [सं०] १ मुपल नवयो । २ नूमल के प्राकार का । बहुत दिनो मे वढता है। यह बरसात मे फूलता और शग्द् मौपिकपुत्र-सा पुं० [सं०] शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक ऋतु मे फलता है। इसके फूल सफेद, कटावदार और छोटे प्राचार्य का नाम। छोटे बहुत ही कोमल और मीठी मुगधवाले होते हैं। मौष्ठा-सरा नी० [ सं० ] घूसे की मार । पूंगाघूसी। मुकामुक्की । पर्या-घकुन । केसर । सीधगध । मुकुल । मधुपुष्प । सुरभि । मौष्टिक-सशा पुं० [सं०] १. चोरी। ठगी। २ चोर | ठग । शारदिक । करक । चिरपुष्प । बटमार । धूर्त । मौला'- १- सज्ञा ' पु० [दश०] उनरी भारत मे होनेवाली एक प्रकार मौसम-सशा पुं० [अ० मासिम ] दे० 'मौसिम' । की वेल जिसकी पत्तियां एक वालिश्त तक लवी होती है। मौसर-वि० [अ० मुयम्सर (= प्राप्त) ] १ जो नुगमता से जाडे के दिनो मे इसमे पाच इच लवे फूल लगते हैं। इसके मिल सके। सुप्राप्य । तने से एक प्रकार का लाल रंग का गोद निकलता है। यह मुहा०-मौसर थाना = मिल सकना । उ०-समय को चूक हक वेल जिस वृक्ष पर चढती है, उसे बहुत हानि पहुंचाती है। मालति प्रबीनन को मौपर न पाव वन ग्रोसर जबाब का।- मूला। मल्हा वेल। बलबीर (शब्द०)। मौला- सज्ञा पुं० [अ०] १ स्वामी । मालिक । २ ईश्वर । परमेश्वर । २ उपलब्ध । प्राप्त । उ०—(क) प्रोसर के मौसर भए मत दे ३ दासता से मुक्त दाम [को०] । करतें खोइ । जोबन प्रोसर भावतो बार वार नहिं होइ।- मौलाना-सशा पुं० [अ० मोलाना ] १ अरबी भाषा का बहुत बडा रसनिधि (शब्द॰) । (ख) बार वार नहि होत है प्रोसर मौतर विद्वान् । २ वडा मौलवी । २ विद्वान् । वार । सो सिर देव को भरे जी फिर हूजे त्यार । - रसनिधि मौलि'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ किमी पदार्थ का सबसे ऊंचा भाग । (शब्द०)। चोटी। सिरा । चूडा। २ मस्तक । सिर । ३ किरीट । ४ क्रि० प्र०-याना ।-काना ।—होना । जूडा। जटाजूट । ५ अशोक का पेड। ६ मुख्य वा प्रधान मौसल-वि० [सं० ] मूसल सवची । मूमल का । व्यक्ति । सरदार। मौसली -सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मौलमिरो] ८० 'मौलमिरो' । मौलि' '- सज्ञा स्त्री० पृथिवी । भूमि । जमीन । मौसा-सरा पुं० [हिं० मौसी का पुं०] [ सी० मौसी ] माता की यौ०-मौलिपृष्ट = मुकुट । मौलिवध = मुकुट | गजमुकुट। किरीट । वहन का पति । मौसिया या मांसी का पति । मौलिमणि = मुकुट में जडा हुया रत्ल । श्रेष्ठ मणि । शिरो- मौसिम-सज्ञा पुं॰ [ प्र०] [ वि० मौसिमी ] १ उपयुक्त समय । मणि । मौलि मुकुट = मुकुट । मौलिरत्न = दे० 'मौलिमणि' । अनुकूल काल । २ ऋतु । मौलिक-वि॰ [ ] १ मूल सवधी । २ मुख्य । प्रधान । ३ जो मौसिमी-वि० [अ०] १. समयोपयोगी। काल के अनुकूल । २ किसी की छाया, या अनुवाद न हो । ४ छोटा । निम्न (को०)। ऋतु सवयी । ऋतु का । जैसे, मौसिमी फन, मासिमी मिठाई । मौलिकता-सज्ञा स्त्री॰ [ स ] मौलिक होने का भाव (को०] । मौसिमी बुखार- सक्षा पुं० [अ० मौसिमी+ फा० वुबार ] चंत या मौलिमनि-वि० [सं० मौलिमणि ] शिरोमणि । प्रधान । भादो कुपार में होनेवाला ज्वर । सव