पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८८

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मौसिया ४०४७ म्युनिसिपैल्टी मौसिया--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मौसा+इया ] दे० 'मोसा' । मुहा०—क्याँ म्याद करना = भयभीत होकर धीमी श्रावाज मे मौसिया--वि० सवव में मौसी या मौसा के स्थान का । मौसी के वोलना । डर के मारे बोल बद हो जाना। द्वारा सबध रखनेवाला । जैसे, मौसिया सास, मौसिया समुर । म्यान-सज्ञा पुं० [ फा० मियान ] १ कोष जिसमे तलवार, कटार दे० 'मौसेरा' । जैसे, चोर चोर मौसिया भाई । (कहावत)। आदि के फल रखे जाते है। तलवार, कटार आदि का फल मौसियाउत-वि० [हिं० मौसी +पाउत (प्रत्य॰)] मौमेरा । रखने का स्थान । उ०-चाखा चाहै प्रेम रम राखा चाहै मौसियायत-वि० [हिं० मौसी ] दे० 'मौसियाउत' । मान । दोय सग इक म्यान मे देखा सुना न कान 1-कबीर मौसी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मातृष्वसा, प्रा० माउस्सिमा] [वि० मौसेरा, (शब्द॰) । (ख) जव माल इकट्ठा करते थे, व तन का अपने ढेर करो। गढ टूटा लश्कर भाग चुका अव ग्यान मे तुम मौसियाठत ] माता को बहिन । मासी । उ०-मातु मौसी शमसेर करो।-नजीर (शब्द॰) । २ अनमय कोश । शरीर । वहिन हूं तें सासु ते अधिकाइ । करहि तापस तीय तनया सीय हित चित लाइ । —तुलसी (शब्द०)। उ०—(क) कविग सूता क्या कर, उठि न भज भगवान । जम धरि जब ले जायंगे पडा रहंगा म्यान ।—कबीर (शब्द॰) । मौसूफ--वि० [अ० मौसूफ ] [ स्त्री० मौसूफा ] १ जिसको प्रशसा (ख) चचल मनुवां चेत रे सोवै कहा अजान । जम घर जव की जाय । प्रशसित । २ पूर्वोक्त । जिसका जिक्र चल रहा हो । ले जायगा पडा रहेगा म्यान । -कवीर (शब्द॰) । ३. जिम शब्द के साथ कोई विशेषण हो । विशेष्य |को०] । म्याना-क्रि० स० [हिं० म्यान ] म्यान मे डालना। म्यान मे मौसूम-वि० [अ० ] [ वि० मौमूमह ] नाम रखा हुअा। हुआ । रखना। उ०—(क) अस कहि अपनी काढि कृपानी। म्यान्यो नामवारी। ताहि विशेपि बखानी। - रघुराज (शब्द०)। (ख) तानु तेजु मौसूल-वि० [अ०] [ वि० स्त्री० मौसू लहू ] प्राप्त । लव्य । हासिल । सहि सक्यो न राना । खड्ग तुरत म्यान महँ म्याना । मौसेरा-वि० [हिं० मौसी + एरा (प्रत्य॰) ] मौसी के द्वारा सवद्ध । -रघुराज (शब्द)। मौसी के संबंध का । जैसे, मौसेरा भाई, मौसेरी बहन, मौसेरा म्याना'-सज्ञा पुं० [फा० मियानह ] दे० 'मियाना' । ससुर, मौसेरी सास, इत्यादि । उ०--जव देवसरूप बैठ गए, उनके मोमेरे ससुर नदकुमार अपनी ठौर से उठे और देखकर म्याना-वि० मध्य का । बीच का । मझोला । कहने लगे ।-अधखिला फूल (शब्द॰) । म्यानी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० मियानी] पाजामे को काट मे एक टुकडे मौहरा -सज्ञा पुं० [सं० मधुफर, प्रा० महुअर ] दे० 'महुअर' । का नाम जो दोनो पल्लो को जोडते समय रानो के बीच मे जोडा जाता है। उ०-जलतरग मुरली किंकिन मौहर उपग मडल स्वर तितिन । -कबीर मा०, पृ० २४६ । म्युजियम-- 1--सज्ञा पु० [अ० स्युज़ियम ] वह रधान जहाँ देश तथा सौहा-सञ्ज्ञा पुं० [स० मुकुट ] मुकुट । मौर। उ०-रघवर की विदेश के अनेक प्रकार के अद्भुत और विलक्षण पदार्थ मगृहीत निकरीसी कीनी मौहरु राँम पं बंधवांमे ।-पोद्दार अभि० हो । अदभुत पदार्थो का संग्रहालय । अजायबघर । ग्र०, पृ०६३६ । म्युनिसिपल--वि० [अ० ] नगरपालिका या म्युनिसिपल्टी सवधी । मौहूर्त --सशा पु० [ स० ] मुहूर्त बतलानेवाला । ज्योतिषी । उ०--२५० रुपये सालाना श्राय पर म्युनिसिपल टक्म देनेवाले व्यक्ति।-भारतीय०, पृ० २० । मौहूर्तिक'-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ मूहूर्त बतलानेवाला। ज्योतिपी। २ दक्ष की मुहूर्ता नामक कन्या से उत्पन्न एक देवगण । म्युनिसिपैलिटी--नज्ञा सी० [अ० ] दे॰ 'म्युनिसिपैरटी' उ०- म्युनिसिपलिटी के कार्य निर्वाह का वोझ एक आदमी के सिर मौहृतिक'-वि० मुहूर्त से उत्पन्न । मुहूर्तोद्भव । नही है उस्मैं बहुत से मेवर होते है ।--धीनिवास ग्र०, मनात - वि० [सं०] जिसे दो बार किया गया हो। १ दुहराया हुअा। पृ० २२० २ पढा हुआ । सीखा हुआ [को०] । म्यत-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मित्र ] दे० 'मीत'। उ०—कान सहाणों म्युनिसिपैल्टी-सज्ञा स्त्री० [अ० ] किसी नगर के नागरिको की वह प्रतिनिधि सभा जिसे उस नगर के स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा यौं खडा, जागि पियारे म्यत । राम सनेही बाहिरा तू क्यू अन्यान्य प्रातरिक प्रवधो का स्वतत्र रूप से नियमानुसार सोवै नच्यत ।-कबीर ग्र०, पृ० ७२ । अधिकार हो। म्याउँ-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] दे० 'म्याँव' । विशेष-प्राय सभी बड़े नगरों मे वहाँ की सफाई, रोशना, मुहा०-म्याऊँ म्याऊं करना = 'म्यावं म्यावं करना'। उ०- सडको और मकानो आदि की व्यवस्था तथा इमी प्रकार के विल्ली अपना, हिस्मा या तो म्याउं म्याउँ करके मांगती है और अनेक कार्यों के लिये म्युनिसिपलिटी का मघटन होता या चोरी से ले जाती है। -रस०, पृ० ११२ । है। इसके सदस्यो का चुनाव प्राय प्रति तीसरे वर्प कुछ म्याँव-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] बिल्ली की बोली। विशिष्ट योग्यतावाते नागरिको के द्वारा हुया करता है। ५-३५