पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२९०

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यंत्रगृह ४०४६ TO किरात, यवन, सिंहल, बर्वर, खस आदि म्लेच्छ माने गए हैं। मडल = म्लेच्छ देश । म्लेच्यमुख । म्लेच्छवाक् = म्लेच्छभाषा। पुराणो मे म्लेच्छो की उत्पत्ति में मतभेद है। विष्णुपुराण मे म्लेच्छकद- सज्ञा पुं॰ [ स० म्लेच्छकन्द ] लहसुन । लिखा है कि सगर ने हैहयवशियो को पराजित कर उन्हे म्लेच्छभोजन-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ यावक । वोरो । २ गेहूं । धर्मच्युत कर दिया था और वही लोग शक, यवन, काबोज, म्लेच्छमुख-तज्ञा पु० [सं० ] ताँवा । पारद, और पह्नव नामक म्लेच्छ जाति के हो गए । मत्स्यपुराण में राजा वेणु के शरीरमथन से म्लेच्छ जाति की उत्पत्ति म्लेच्छाक्रात-संज्ञा पुं० [ स० म्लेच्छ + प्राकान्त ] म्लेच्छो द्वारा अाक्रात । म्लेच्छा द्वारा विजित । उ०-म्लेच्छाकात देश छोड- लिखी गई है । वृहत्स हिता मे हिमालय और विध्यगिरि तथा कर राजधानी मे चला आया था।-स्कंद०, पृ० १८ । विनशन और प्रयाग के मध्य के पवित्र देश के अतिरिक्त अयन्त्र को म्लेच्छ देश लिखा है। वृहत्पाराशर मे चातुर्वर्ण और म्लेच्छाश-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] गेहूं । म्लेच्छभोजन (को॰) । अतराल वर्गों के अतिरिक्त वर्णाचारहीन को म्लेच्छ लिखा म्लेच्छित-सञ्चा पु० [ स०] १ म्लेच्छ भाषा । अनार्य मापा । २ है, और प्रायश्चित्ततत्त्व मे गोमामभक्षी, विरुद्धभाषी और अपभापा । व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध भाषा (को॰] । सर्वाचारविहीन ही म्लेच्छ कहे गए है। म्हॉो- सर्व० [सं० अस्मत्, अहम् प्रा० श्रम्हे, राज० म्हे, म्हा ] २. ताम्र । तांवा धातु (को०) । ३ अनार्य भाषा वा कथन (को०) । मुझ । दे० 'म्हा' । उ०—(क) राणी राजानू कहइ, श्रो म्हा ४ हिंगु । हीग। नातरउ कीध । --ढोला०, दू० ६ । (ख) म्हां थांके घडी म्लेच्छ-वि० १ नीच । २ जो सदा पाप कर्म करता हो। पापरत । टहलनी भवर कमलफुल बास लुभावै ।-धनानद, पृ० ३३४ । यौ०-म्लेच्छकद । म्लेच्छजाति = अनार्य या असस्कृत जाति। म्हाल-सर्व० [हिं० ] दे॰ 'मुझ' । उ०—दास तुलसी सभय वद ते म्लेच्छदेश = चातुर्वर्ण्य व्यवस्था से रहित अनार्य देश । म्लेच्छ मयनदिनी मदमति कत सुनु मत म्हा को। —तुलसी (शब्द॰) । भाषा= विदेशी भाषा । अनार्य भाषा। म्लेच्छभोजन । म्लेच्छ म्हारा1--सर्व० [हिं०] दे० 'हमारा' । य (को०) । य-हिंदी वर्णमाला का २६वां अक्षर । इसका उच्चारणस्थान तालु सहायता से सैकडो हजारो प्रादमियो का काम एक या दो है। यह स्पर्श वर्ण और ऊष्म वर्ण के बीच का वर्ण है, इसलिये आदमी कर लेते हैं। ४. बदूक । ५ बाजा। वाद्य । ६ वाजो इसे अत स्थ वर्ण कहते हैं। इसके उच्चारण मे कुछ प्राभ्यतर के द्वारा होनेवाला सगीत । वाद्यसगीत । ७ वीणा। बीन । प्रयल के अतिरिक्त सवार, नाद और घोप नामक वाह्य प्रयल ८ ताला । एक प्रकार का बरतन । १०. नियत्रण । भी होते हैं । यह अल्पप्राण है। यौ०-यत्रकरडिका । यंत्रकर्मकृत् = कलाकार । कारीगर । यत, यता--सज्ञा पु० [स० यन्तृ] १. सारथी। (हिं०) । २ महावत । यत्रकोविद = मिस्त्री। मशीन के काम मे दक्ष। यत्रगोल । हाथीवान (को०) । ३ निर्देशक । नियत्रणकर्ता। शासक यत्रतक्षा = यत्र बनानेवाला। यत्रतोरण = तारण जो यत्र वा मशीन से घूमता हो। यत्रढ = अर्गला वा ताला से बद । यति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म० यन्त] दमन । यत्रपुत्रक । यत्रप्रवाह = कृत्रिम झरना या सोता। यत्रमार्ग । यत्रमुक्त = एक शस्त्र । यप्रविधि । यत्रशर = यप्रचालित वाण। यत्र-सज्ञा पुं० [सं० यन्त्र ] १ तात्रिको के अनुसार कुछ विशिष्ट यत्रक-सञ्चा पुं० [सं० यन्त्रक ] १ सुश्रु त के अनुसार कपडे का वह प्रकार से बने हुए प्राकार या कोष्ठक आदि, जिनमे कुछ प्रक बंधन जो घाव आदि पर बांधा जाता है। पट्टी। २ वह या अक्षर आदि लिखे रहते हैं और जिनके अनेक प्रकार के फल शिल्पकार जो यत्र आदि की सहायता से चाजें तैयार करता माने जाते हैं। तांत्रिक लोग इनमे देवतायो का अधिष्ठान हो । ३ वह जो वशीकरण करता हो । वश मे कर लेनेवाला । मानते हैं। लोग इन्हे हाथ या गले मे पहनते भी हैं । जतर । यौ० यत्रचेष्टित = वाजीगरी। यत्रमत्र । यत्रमन्त्र = जादू, टोना यंत्रकरडिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० यन्त्रकरण्डिका ] वाजीगरो की पेटी जिसके द्वारा वे अनेक प्रकार के खेल करते हैं। या टोटका आदि। २. विशेष प्रकार से बना हुआ उपकरण, जो किसी विशेष कार्य के यत्रगोल-सशा पु० [सं० यन्प्रगोन १. एक प्रकार की मटर । २ लिये प्रस्तुत किया जाय । औजार । जैसे,—(क) वैद्यक मे तोप का गोला [को॰] । तेल और पासव आदि तैयार करने के अनेक प्रकार के यत्र यत्रगृह-सज्ञा पुं० [ स० यन्त्रगृह ] १ वह स्थान जहां यत्र की होते हैं । (ख) प्राचीन काल मे भी अनेक ऐसे यत्र वनते थे, सहायता से किसी प्रकार का कर्म होता हो अथवा कोई चीज जिनसे दूर से ही शत्रुप्रो पर प्रहार किया जाता था। ३ तैयार की जाती हो। २ वेधशाला। ३. यह स्थान जिसमे किसी खास काम के लिये वनाई हुई कल या अौजार । जैसे,- प्राचीन काल मे अपराधियो श्रादि को रखकर अनेक प्रकार की आजकल ससार मे सैकड़ो प्रकार के यत्र प्रचलित है, जिनकी यत्रणा दी जाती थी।