पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२९३

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O यक्षु ४०५२ यजुवेद यक्षु-सञ्ज्ञा पु० [ मं० ] १. वह जो यज्ञ करता हो। २ एक प्राचीन यजति-मज्ञा पुं० [ ] दे० 'यज्ञ'। जनपद का वैदिक नाम, जो वक्षु भी कहलाता था और इसी यजत्र-सञ्चा पुं० [सं०] १ अग्निहोत्री । २ वह जो यज्ञ करता हो। नाम की नदी के पास पास था। आक्सस नदी के पास पास का प्रदेश । बदखशां। ३ इस जनपद का निवासी। यजन-सचा पुं० [सं०] १. वेदविधि के अनुसार होता मौर ऋत्विक् आदि के द्वारा काम्य और नैमित्तिक कर्मों का विधि यक्षेद्र -सञ्ज्ञा पुं० [सं० यक्षेन्द्र ] यक्षो के स्वामी, कुवेर । पूर्वक अनुष्ठान करना । यज्ञ करना (यह ब्राह्मणा के पट्कर्मो में यक्षेश्वर-सहा पुं० [सं०] यक्षो के स्वामी, कुवेर । एक माना गया है ) । २ वह स्थान जहाँ यज्ञ होता हो। यक्ष्म-सञ्ज्ञा पुं० [०] दे॰ 'यक्ष्मा' । यजनकर्ता -मचा पुं० [ स० यजनकर्तृ ] यज्ञ या हवन करनेवाला। यमग्रह-सज्ञा पुं० [सं०] क्षय या यक्ष्मा नामक रोग । यजमान-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ वह जो यज्ञ करता हो। दक्षिणा यक्ष्मघ्नी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दाख । अगर । आदि देकर ब्राह्मणा से यज्ञ, पूजन आदि धार्मिक कृत्य करान- यक्ष्मा-सञ्ज्ञा पुं० [स० यक्ष्मन् ] क्षयी नामक रोग। तपेदिक । वाला व्रती । यष्टा । २ वह जो ब्राह्मणो को दान देता हो। विशेष दे० 'क्षयी'। ३ महादेव की आठ प्रकार की मूर्तियो मे से एक प्रकार को यक्ष्मी-सज्ञा पु० [सं० यक्ष्मिन् ] वह जिसे यक्ष्मा रोग हुमा हो मूर्ति । ४. परिवार का प्रधान व्यक्ति वा जाति का यक्ष्मा रोग का रोगी। तपेदिक का बीमार । मुखिया (को०)। यखनी-मशा स्त्री॰ [फा० यख्नी ] १ तरकारी आदि का रसा। यजमानक-सज्ञा पुं० [ स० ] दे० यजमान'। शोरवा । झोल । २ उबले हुए मास का रसा। ३ वह मास यजमानता-सशा स्त्री० [सं० ] यजमान का भाव या धर्म । जो केवल लहसुन, प्याज, धनिया और नमक डालकर यजमानलोक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] वह लोक जिसमे यज्ञ करके मरने- उवाल लिया जाय। वालो का निवास माना जाता है। यगण-सज्ञा पु० [सं०] छद शास्त्र मे पाठ गणो मे से एफ। यह एक यजमानी-सज्ञा स्त्री० [ स० यजमान + ई (प्रत्य॰)] १. यजमान का लघु और दो गुरु मात्रामो का होता है (Iss)। इसका सक्षिप्त भाव या धर्म । २ यजमान के प्रति पुराहत की वृत्ति । ३. रूप 'य' है । जैसे, कमाना, चलाना। वह स्थान जहाँ किसी विशेष पुरोहित के यजमान रहते हो। विशेप-इसका देवता जल माना गया है और यह सुखदायक कहा यजाक-वि० [स०] १ उदार । दानी । २. पूजा करनेवाला । अर्चक । गया है। पूजक [को०] । यगाना-वि० [ फा० यगान ] १ जो वेगाना न हो । एक वश का । यजि-सज्ञा पुं० [सं०] १ यज्ञकर्ता। यज्ञ करनेवाला । २ यज्ञ । अपना । पात्भीय । नातेदार । उ०-वेगान हैं सारे यगान ३ यज्ञ करने की क्रिया वा भाव [को०] | पार कहाँ है।-कबीर म०, पृ० ३२३ । २ अकेला। फर्द । यजी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० योजन ] १ वह जो यज्ञ करता हो। यज्ञ ३ अनुपम । अद्वितीय । एकता । करनेवाला । २ अचन पूजन करनेवाला । यगाना-मज्ञा पु० १ भाई वद । २ परम मित्र । यजु-सञ्ज्ञा पु० [सं० यजुस् ] दे० 'यजुर्वेद' । यगूर-सज्ञा पुं० [ दश० ] एक प्रकार का वहुत ऊंचा वृक्ष जिसकी यजुरा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० यजुस ] दे० 'यजुर्वेद' । उ०—रिग, यजुर, लकडी का रग अदर से काला निकलता है। साम, अथर्वनिक वेद ध्वनि स्तोत्र पौराण, इतिहास मिलि विशेप -यह सिलहट की पूर्वी और दक्षिण पूर्वी पहाडियो मे वहृत उच्चरत ।-भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ६०५ । होता है । इसकी लकड़ी से कई तरह की सजावट की और यजुर्विद्-सज्ञा पुं॰ [ ] वह जो यजुर्वेद का ज्ञाता हो। यजुर्वेद बहुमूल्य वस्तुएं बनाई जाती हैं। इसे भाग मे जलाने से बहुत जाननेवाला। उत्तम गध निकलती है। इसे सेसी भी कहते है । यजुर्वेद-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] भारतीय पार्यों के चार प्रसिद्ध वेदो में से यग्य-सज्ञा पुं० [ स० यज्ञ ] दे० 'यज्ञ' । एक वेद । यच्छ-सज्ञा पुं० [ स० यक्ष ] दे० 'यक्ष'। विशेष—इसमे विशेषत यज्ञकर्म का विस्तृत विवरण है और इसी यच्छिनी -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० यक्षिणी ] दे॰ 'यक्षिणी' । लिये यह वेदत्रयी में भित्तिस्वरूप माना जाता है। यज्ञो में यजत-सज्ञा पुं॰ [ स० यनन्त ] यज्ञ करनेवाला । यज्ञकर्ता । अध्वर्यु जिन गद्य मत्रो का पाठ करता था, वे 'यजु' कहलाते यज-सज्ञा पुं॰ [ स० ] १ यज्ञ । याग । २ अग्नि [को॰] । थे। इस वेद मे उन्ही मत्रो का सग्रह है, इसलिये इसे यजुर्वेद कहते हैं। इसके दो मुख्य भेद हैं-कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजत'-सशा पुं० [सं०] १ ऋत्विक् । २. शिव (को०) । ३ चंद्रमा यजुर्वेद या वाजसनेयी । कृष्ण यजुर्वेद मे यज्ञो का जितना पूर्ण (को०) । ४ एक वैदिक ऋषि का नाम जो ऋग्वेद के एक मत्र और विस्तृत वर्णन है, उतना और सहितानो में नहीं है । इन थे दोनो की भी बहुत सी शाखाएं हैं, जिनमे थोडा बहुत पाठभेद यजत'-वि० १. पवित्र । २. पूज्य । पूजनीय [को॰] । है। अव तक यजुर्वेद की जो सहिताएं मिली हैं, उनके नाम इस के द्रष्टा