सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म० भक्त। यज्ञोपवीत ४०५६ यत्किंचित् यज्ञोपवीत-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] १ जनेऊ । यज्ञसूत्र । २ हिंदुणे मे यति-सजा स्त्री० [सं०] १ छदो के चरणो मे वह स्थान जहाँ ब्राह्मणो, क्षत्रियो और वैश्यो का एक सस्कार । व्रतवय । पढते ममय, उनकी लय ठीक रखने के लिये, थोडा सा वियाम उपनयन | जनेऊ। होता है । विरति । विश्राम । राविम । २ दे० 'यती'। विशेष—यह सस्कार प्राचीन काल में उस समय होता था, जब यतिचाद्रायण-सज्ञा पुं० [ स० यतिचान्द्रायण ] एक प्रकार का वालक को विद्या पढाने के लिये गुरु के पास ले जाते थे। इस चाद्रायण व्रत जिनका वधान यतियो के लिये है। सस्कार के उपरात वालक का स्नाता होने तक ब्रह्मचर्यपूर्वक यतित-वि० [सं०] जिसके लिये चेष्टा की गई हो। चेप्टिन (को०] । रहना पडता था और भिक्षावृत्ति से अपना तथा अपने गुरु का निर्वाह करना पडता था । अन्यान्य सस्कारो की भांति यह गतिधर्म-सगा पुं० [स०] सन्याम । यतित्व-सज्ञा पुं० [सं०] यनि का धर्म, भाव या कर्म । सस्कार भी अाजकल नाममात्र के लिये रह गया है। इसम कुछ विशिष्ट धार्मिक कृत्य करके बालक के गले मे जनेऊ पहना यतिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म०] १ सन्यासिनी । २ विधवा । दिया जाता है। ब्राह्मण बालक के लिये पाठवें वर्प, क्षत्रिय यतिपात्र-सन्ता पुं० [सं०] भिक्षापात्र । खप्पर । वालक के लिये ग्यारहवें वर्ष और वैश्य वालफ के लिये वारवे यतिभग-सज्ञा पुं० [सं० यतिभङ्ग ] काव्य का वह दोप जिसमें वर्प यह सस्कार करने का विधान है। यति अपने उचित स्थान पर न पडकर कुछ प्रागे या पीये यज्य-वि० [ ] यजन करने योग्य । पडती है पर जिसके कारण पढन मे छद की लय विगड जाती है। यज्य-सञ्ज्ञा पुं० [स०] [ सज्ञा स्त्री० यज्या ] १ स्तुति | पारावन । आर्चन । २ यज्ञ [को०। यतिभ्रष्ट-सज्ञा पु० [सं०] वह छद जिसमे यति अपने उपयुक्त स्थान यज्यु-सशा पु० [स०] १ यजुर्वेदी ब्राह्मण । २ यजमान । श्रद्धालु पर न पडकर कुछ आगे या पीछे पटी हो। यतिभग दोप से युक्त छद। यज्वा-सज्ञा पुं० स० यज्वन् ] यज्ञ करनेवाला । यतिमैथुन- [-मा पु० [ स०] १ माधु सन्यासी का सा गुप्त मैथुन । यौ०-यज्वापति = (१) विष्णु । (२) चद्रमा । २ राजनरति (को०] | यडर-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पक्षी। यतिसातपन-सज्ञा पुं० [सं० यतिसान्तपन एक व्रत जिसमे तीन यत-क्रि० वि० [सं० यतस् ] इसलिये कि । चूंकि । क्योकि (को०] । दिन केवल पचगव्य और कुशजल पीकर रहना पड़ता है । यत-वि० [सं०] १ नियत्रित । नियमित । पाबंद । २ दमन किया विशेप-शखस्मृति के मत से तो यह व्रत तीन दिन का है, हुआ । शासित । ३ प्रतिवद्ध । रोका हुआ। परतु जावाल के मत मे सात दिन का है। गोमूत्र, गोवर, यतन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [वि० यतनीय] उद्योग वा उपाय करना। यल दूध, दही, घृत, कुश का जल इनमे से एक एक का प्रति दिन करना । कोशिश करना। एक बार पीकर रात दिन उपवास करना पड़ता है। इसी यतनीय-वि० [सं०] यत्न करने के योग्य । कोशिश करने लायक । का नाम सातपनकृच्छ या यतिसातपन है। यतमान-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ यत्ल करता हुआ। कोशिश में लगा यती'-सज्ञा स्री० [#०] १ रोक । रुकावट । २ छंदो मे विराम का हुआ। २ अनुचित विषयो का त्याग और उचित विपयो मे स्थान । यति । ३. मनोराग। मनोविकार । ४ विधवा स्त्री। मद प्रवृत्ति के निमित्त यल करनेवाला। ५ शालक राग का एक भेद । ६ मृदग का एक प्रवध सधि। यतव्रत-सज्ञा पुं० [ सं० ] वह जो बहुत सयम से रहता हो। यती-सज्ञा पुं॰ [ सं० यतिन् ] [ सी० यतिनी] १ यति । सन्यासी यतात्मा-वि० [ सं० यतात्मन् ] आत्मनिग्रही । सयमी [को॰] । २ जितेंद्रिय । ३ जनमतानुसार श्वेतावर जैन साधु । यताहार-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] [ वि० यताहारी ] सगत पाहार । यतीम-सशा पु० [अ०] १ मातृ-पितृ विहीन । जिसके माता पिता न अल्पाहार। हो । अनाथ । २ कोई अनुपम और अद्वितीय रल । ३ वह यताहारी-वि० [स० यताहारिन्] नियत एव सयत आहार करनेवाला। वडा मोती, जिसके विपय मे प्रसिद्ध है कि यह सीप में एक अल्पाहारी। ही निकलता है। यति-सज्ञा पुं० [स० ] १ वह जिसने इद्रियों पर विजय प्राप्त यतीमखाना-सचा पुं० [अ० यतीम + फा० खामह ] वह स्थान कर ली हो और जो ससार से विरक्त होकर मोक्ष प्राप्त जहां माता-पिता-हीन बालक रखे जाते है । अनाथालय । करने का उद्योग करता हो। सन्यासी । त्यागी। योगी। २. भागवत के अनुसार ब्रह्मा के एक पुत्र का नाम । ३ महाभारत यतुका, यतूका-सशा स्त्री॰ [सं०] चकवंड का पौधा । चक्रमर्द । के अनुसार नहुष के एक पुत्र का नाम । ४. ब्रह्मचारी । ५ यतेंद्रिय-वि० [ स० यतेन्द्रिय ] इद्रियनिग्रही। सयतात्मा । इद्रियो विष्णु (को०)। ६ विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम (को॰) । का नियमन करनेवाला । सयमी (को०] । छप्पय के ६६वें भेद का नाम जिसमे ५ गुरु और १४२ लघु यत्-सर्व [सं०] जो । मानाएं अथवा किसी किसी के मत से ५ गुरु और १३६ लघु यत्किंचित्-क्रि० वि० [ सं० यत्किञ्चित् ] थोड़ा सा । स्वल्प । जरा मात्राएं होती हैं। सा। बहुत कम । कुछ। ७