पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३१९

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DO स० योगधारणा ४०७८ योगवाही योगधारणा-पज्ञा स्त्री० [ ] योगसावन मे निष्ठता [को०] । योगमाया-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ भगवती, जो विष्णु को माया योगधारा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी का नाम । है। २ वह कन्या जो यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी और योगनद-सा पु० [स० ] मगध के राजा नौ नदो मे से एक नद जिसे कंस ने मार डाला था। कहते हैं, यह स्वय भगवती का नाम । विशेप २० 'नद' । थी। विशेष दे० 'कृष्ण' । उ०-देखी परी योगमाया योगनाथ-सशा पुं० [सं० ] १ शिव । २ दत्तात्रेय (को॰) । वसुदेव गोद करि लीन्ही हो।—सूर (शब्द०)। योगनाविक-सज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार की मछली । योगमूतिधर-सशा पुं० [सं०] १ शिव । २ एक प्रकार के पितृ । योगनाविका-सशा स्त्री० [स०] दे० 'योगनाविक' । योगयात्रा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ योग के लिये की जानेवाली यात्रा। वह यात्रा जिसमे परमात्मा से मिलन हो [को०] । योगनिद्रा-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ जागने और सोने के बीच की २ फलित ज्योतिप के अनुसार वह योग जो यात्रा के लिये स्थिति (को०) । २ युग के अत में होनेवाली विष्णु की निद्रा जो, दुर्गा मानी जाती है। ३ प्रलय और उत्पत्ति के बीच उपयुक्त हो । ब्रह्मा की चिरनिद्रा। ४ रणभूमि मे वीरो की मृत्यु । ५ योगयुक्त-वि० [ ] योग मे स्थित । योगस्य । योग की समाधि । ६ दुर्गा का एक नाम (को०) । योगयुक्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० योग+ युक्ति ] १ योग मे अनुराग । योगनिद्रालु-मज्ञा पुं० सं० ] विष्णु, जो प्रलय के समय योगनिद्रा समाधिस्थ होना (को०)। २ योग करने की विधि । उ०- लेते हैं। कबीर साहब ने सब योगयुक्ति सिखलाया ।-कबीर म०, पृ०७५ । योगनिलय-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] १ महादेव । २ विष्णु । योगयोगी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० योगमोगिन् ] वह योगी जो योगासन योगपट्ट -सज्ञा पुं० [सं० ] प्राचीन काल का एक पहनावा जो पीठ पर बैठा हो। पर से जाकर कमर मे वाया जाता था और जिससे घुटनो योगरंग-सज्ञा पुं० [सं० योगरङ्ग ] नारगी। तक का अग ढका रहता था । साघुग्रो का अंचला। योगरथ-सज्ञा पुं० [ स० ] वह साधन जिससे योग की प्राप्ति हो। विशेष-शास्त्रो का विधान है कि जिसके बडे भाई और पिता जीवित हो उसे ऐसा वस्त्र नहीं पहनना चाहिए । योगराजगुग्गुल-सशा पुं० [सं०] कई द्रव्यो के योग मे बनी हुई एक प्रसिद्ध पौषध जिसमे गुग्गुल ( गूगल ) प्रधान है। यह योगपति-सक्षा पुं० [सं०] १ विष्णु । २ शिव । औषध गठिया, वात रोग और लकवे के लिये अत्यत योगपत्नि-सज्ञा स्त्री॰ [ स० .] योगमाता । पीवरी। उपकारी है। योगपथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] योग में प्रवृत्ति करानेवाला मार्ग [को॰] । योगरूढि-मझा स्त्री० [सं० योगरुढि ] दो शब्दो के योग से वना योगपदक-सज्ञा पुं० [सं० ] पूजन आदि के समय पहनने का चार हुआ वह शब्द जो अपना सामान्य अर्थ छोडकर कोई विशेष अगुल चौडा एक प्रकार का उत्तरीय वस्त्र । अर्थ वतावे । जैसे, त्रिशूलपाणि, चद्रभाल, पचशर इत्यादि । विशेप-यह वाघ के चमडे, हिरन के चमहे अथवा सूत का वना योगरोचना-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] इद्रजाल करनेवालो का एक प्रकार हुआ होता था और यज्ञसूत्र की भांति पहना जाता था। का लेप। योगपाद-सज्ञा पुं० [सं०] जैनियो के अनुसार वह कृत्य जिससे विशेप-कहते हैं, शरीर मे यह लेप लगा लेने से आदमी अभिमत की प्राप्ति हो। अदृश्य हो जाता है। योगपारग-सज्ञा पुं॰ [सं० योगपाग्ड ग] १. शिव । २ पूर्ण योगी। योगवाणी - सज्ञा पुं० [सं० ] हिमालय के एक तीर्थ का नाम । योगपीठ-सज्ञा पु० [ स०] देवतानो का योगासन । योगवान्-सज्ञा पुं० [सं० योगवत् ] [ स्त्री० योगवती ] योगी। योगसपन्न । योगयुक्त । योगपुरुप-सज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य अर्थशास्त्रानुसार वह साधा हुआ व्यक्ति जिससे मतलव सिद्ध किया जा सके। मतलव निकालने योगवाशिष्ठ-सज्ञा पुं० [ ] वेदातशास्त्र का एक प्रसिद्ध ग्रंथ जो वशिष्ठ जी का बनाया कहा जाता है। के लिये साग हुअा अादमी। विशेप-इसमे वशिष्ठ जी ने रामचद्र को वेदात का उपदेश किया योगफल-सा पुं० [सं० ] दो या अधिक सख्यानो को जोडने से है। इसमे वैराग्य, मुमुक्षु व्यवहार, उत्पत्ति, स्थिति, उपशय प्राप्त मख्या। और निर्वाण ये छह प्रकरण हैं। इसे लोग वाल्मीकि रामायण योगवल-सा पुं० [सं० ] वह शक्ति जो योग की साधना से का उत्तरखड मानते हैं और वशिष्ठ रामायण भी कहते हैं। प्राप्त हो । तपोबल। योगभ्रष्ट-वि० [सं०] जिसकी योग की साधना चित्तविक्षेप प्रादि योगवाह-सशा पुं० [सं०] व्याकरण मे अनुस्वार, विसर्ग, जिह्वा- के कारण पूरी न हुई हो। जो योगमार्ग से च्युत हो गया हो। मूलीय और उपभानीय । योगमय-मा पु० [ स० ] विष्णु । योगवाही-सञ्ज्ञा पुं० [सं० योगवाहिन् ] भिन्न गुणो की दो या कई प्रोपधियो को एक मे मिलाने योग्य करनेवाली ओपधि योगमावा-सा स्री० [सं० योगमातृ ] १. दुर्गा । २ पीवरी । या द्रव्य । योग का माध्यम। to