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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२०

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'योग'। योगवाही' goue योगारूड योगवाही -सशा सी० [ स०] १ पारा। २ मधु । शहद (को०) । अग जो इस प्रकार हैं-यम, नियम, थामन, प्राणायाम, प्रत्या- ३ सज्जीखार। हार, धारणा, ध्यान और समाधि। इन्ही के पूर्ण सावन से योगविक्रिय-सज्ञा पुं० [स०] धोखे या वेईमानी के साथ बिक्री । मनुष्य योगी होता है। घालमेल का सौदा। योगाजन-सज्ञा पुं० [स० योगाजन] १ आँखो का एक प्रकार का योगविद्-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ योगशास्त्र का ज्ञाता । २ महादेव । अजन या प्रलेप जिसके लगाने से आँखो का रोग दूर होता है। ३ पोषधियो को मिलाकर औषध बनानेवाला । ४ वाजीगर । २ वह भजन जिसे लगाने में पृथ्वी के अंदर को छिपी हुई योगविभाग-सचा पु० [सं० ] व्याकरण मे एक दूसरे से सयुक्त शब्दो वस्तुएँ भी दिखाई पडें । मिद्धाजन । का पृथक्करण (विशेषत सूत्रो के शब्दो का)। योगात-सज्ञा पु० स० योगान्त ] मंगल ग्रह को कक्षा के सातवें योगवृत्ति 1-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] चित्त की वह शुभ वृत्ति जो योग के भाग का एक अश । (ज्योतिष)। द्वारा प्राप्त होती है। योगातराय-सशा पुं० [ स० योगान्तराय ] योग मे विघ्न डालनेवाली योगशक्ति-सज्ञा स्त्री॰ [स० ] योग के द्वारा प्राप्त होनेवाली शक्ति । पालस्य आदि दस बातें। तपोबल। योगाता तशा स्त्री० [स० योगान्ता ] मूल, पूर्वापाढा और उत्तरापाढा योगशब्द-सज्ञा पुं॰ [ स० ] वह यौगिक शब्द जो योगरूढ़ि न हो, नक्षत्रो से होती हुई बुध की गति जो आठ दिन तक रहती है। वल्कि घातु के अर्थ (मामान्य अर्थ ) का बोधक हो। योगावर - सज्ञा पुं॰ [सं० योगाम्वर ] बौद्धो के एक देवता का नाम । योगशरीरी-सञ्ज्ञा पु० [सं० योगशरीरिन् ] योगी। योगा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] सीता की एक सखो का नाम । योगशास्त्र-सज्ञा पुं० [सं०] पतजलि ऋषि का वनाया हुआ योग- योगाकर्षण-सज्ञा पुं० [स० ] वह आकर्षण शक्ति जिसके कारण साधन पर एक वडा अथ जिसमे चित्तवृत्ति को रोकने के उपाय परमाणु मिले रहते हैं और अलग नहीं होते । बतलाए गए हैं। यह छह दर्शनो मे से एक दर्शन है। दे० योगागम-सज्ञा पुं० [ स० ] योगशास्त्र । योगाचार-सज्ञा पुं० [ स०] १ योग का पाचरण। २ बौद्धो का योगशास्त्री-सचा पुं० [सं० योगशास्त्रिन्] योगशास्त्र का ज्ञाता। एक संप्रदाय। योगशिक्षा-सशा श्री० [सं०] एक उपनिषद का नाम जिसे योगशिखा विशेष-इस सप्रदाय का मत है कि पदार्थ ( बाह्य ) जो दिखाई भी कहते हैं। पडते है, वे शून्य हैं। वे केवल अंदर ज्ञान मे भासते हैं, बाहर योगसत्य-सज्ञा पुं० [स०] किसी का वह नाम जो उसे किसी प्रकार कुछ नही हैं । जैसे, 'घट' का ज्ञान भीतर प्रात्मा मे है, तभी बाहर के योग के कारण प्राप्त हो। जैसे,-दड के योग से प्राप्त भासता है, और लोग कहते हैं कि यह घट है। यदि यह ज्ञान होनेवाला नाम 'दंडी'। अदर न हो, तो वाहर किसी वस्तु का बोध न हो। प्रत. मव योगसमाधि-सज्ञा स्त्री० [म.] १ आत्मा का सुक्ष्म तत्व (ब्रह्मतत्व) पदार्थ अदर ज्ञान मे भासते हैं और वाह्य शून्य है। इनका यह मे विलयन। २ योग का चरमफल । विशेष दे० 'समाधि' । भी मन है कि जो कुछ है, वह सब दुख स्वरूप है, क्योकि योगसार-सज्ञा पुं० [स०] वह उपाय या माधन जिमसे मनुष्य प्राप्ति मे सतोप नही होता, इच्छा बनी रहती है। सदा के लिये रोग से मुक्त हो जाय । योगात्मा-सज्ञा पुं० [ स० योगात्मन् ] योगी। योगसोधन-सज्ञा पु० [सं०] यौगिक क्रियाप्रो की साधना । सूक्ष्म का योगानुशासन-सा पुं० [सं० ] योगशास्त्र । ध्यान। योगापत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] वह संस्कार जो प्रचलित प्रयायो विशेप-वैद्यक मे ऋतुचर्या के अतर्गत ऐसे उपायो का वर्णन है अथवा प्राचारव्यवहार आदि के कारण उत्पन्न हो। भिन्न भिन्न ऋतुनो मे भिन्न भिन्न निपिद्ध पदार्थों का त्याग योगाभ्यास-सञ्ज्ञा पुं० [ ग्रौर सयम अादि इसके अतर्गत हैं। स० ] योगशास्त्र के अनुमार योग के आठ अगो का अनुष्ठान । योग का साधन । उ०-बदरिकाश्रम रहे योगसिद्ध '--सच्चा पु० सं०] वह जिसने योग की सिद्धि प्राप्त कर ली हो । योगी। पुनि जाई। योग अभ्यास ( योगान्यास ) समाधि लगाई।- योगसिद्वि-सशास्त्री० [सं०] योग मे सफलता। सूर (शब्द०)। योगसूत्र--सज्ञा पुं० [सं०] महर्षि पतजलि के बनाए हुए योग सवधी योगाभ्यासी-सञ्ज्ञा पु० [ स० योगाभ्यासिन् ] योग की साधना करनेवाला, योगी। सूत्रो का सग्रह । विशेष दे० 'योग'। योगसेवा-राशा पुं० [ स० ] शून्य की उपासना । सूक्ष्म का ध्यान । योगारग-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० योगारङ्ग ] नारगी। योग की साधना (को०] । योगाराधन-सञ्ज्ञा [ म०] योग का अभ्यास करना। योगस्थ-क्रि० [सं०] योग मे स्थित । योगयुक्त । योगसाधन। योगाग-सचा पुं० [सं० योगाङ्ग ] पतजलि के अनुसार योग के आठ योगारूढ-सज्ञा पुं॰ [ म० योगारूढ ] वह योगी जिसने इद्रि सुख ८-३६ पु०