पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२

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स० स० मनोमालिन्य ३७८६ मनोरा मे में तीसरा कोश । मन, अहकार और कर्मेद्रियाँ इस कोश के मनोरथ हादशी-मज्ञा सी० [सं० ] एक व्रत का नाम जो चत्र शुक्ल अतर्गत मानी जाती हैं। इसे बौद्ध दर्शन मे 'सज्ञा स्कघ' कहते पक्ष की द्वादशी के दिन पडता है। कहते हैं। उल-मनोमय कोश पच कर्म इद्रिय प्रसिघि पच मनोरथसिद्धि-सज्ञा सी० [ ] इच्छा पूरी होना । इच्छा को पूर्ति ज्ञान इद्रिय विज्ञान कोश जानिए।-सु दर० ग्र०, भा० २, होना [को०] । पृ० ५९८॥ मनोरन -सज्ञा स्त्री० [शि०, एक प्रकार की कपास । मनोमालिन्य-सज्ञा पु० [म० ] मन मे मैल उत्पन्न होना । मनमुटाव । मनोरम'-वि० [म० ] [ वि० सी० मनोरमा ] मनोज । मनोहर । उ०-केदार बाबू तो बहुत सच्चरित जान पडते हैं फिर स्त्री सुदर। पुरुा मे इतना मनोमालिन्य क्यो हो गया ?--मान०, भा० १, मनोरम -~-सज्ञा पु० मखी छद के एक भेद का नाम । इसके प्रत्येक पृ०६८) चरण मे चौदह मात्राएं होती हैं और ५, ४ और ५ पर मनोमुखी-वि० [स० ममस + मुख+ ई (प्रत्य॰)] अतर्मुखी। विराम होता है। इसका मात्राक्रम २+३+२+२+३ आभ्यतर जगत् मे विचरण करनेवाला। उ०--मनोमुखी है +२ है और तीसरी तथा दूसरी मात्रा मदा लघु होती है। काया । शुभे । आज शुभ दिन ही पाया । —कुणाल०, जैमे,-जानकी नाथ, भजो रे । और सब धधा तजो रे । सार पृ० ४६ । है जग मे जू येही। को प्रभ सो जन सनेही। मनोमोहिना-वि० [ मं० मनस + मोहिनी ] मन को मोहित करने- मनोरमण-वि० [ स० मनस् + रमण ] जिसमे मन रमण करे। जो वाली । उ०-तुम शुद्ध मच्चिदानद ब्रह्म, मैं मनोमोहिनी माया। मन मे रमे। उ०-देखा है, प्रात किरण फूटी है मनोरमण । -अपरा, पृ०७१। -अर्चना, पृ०६। मनोयायी-वि० [ स० मनोयायिन् ] १ अपनी इच्छा या मौज से मनोरमा-सज्ञा स्त्री० [ म० ] १ गोरोचन । २ सात सरस्वतियो जानेवाला । २ मन की तरह तेज [को॰] । मे से चौथी का नाम । ३ वौद्ध धर्मानुमार बुद्ध को एक शक्ति का नाम । ४ छदोमजरी के अनुसार एक छद जिसके प्रत्येक मनोयोग-मञ्चा पुं० [ ] मन को एकाग्र करके किसी एक पदार्थ चरण मे दस वर्ण होते हैं जिनमे पहला, दूसरा, तीसरा, पर लगाना । चित्त की वृत्ति का निरोध करके एकाग्र करना सातवाँ और नवाँ वर्ण लघु और शेप गुरु होते हैं। ५ और उसे एक पदार्थ पर लगाना। उल-विजय की सामग्री महाकवि चद्रशेखर के अनुसार आर्या के ५७ भेदो मे एक वडे मनोयोग से हंडवेग मे सजा रही थी। ककाल, पृ०६२। जिसमे १२ गुरु और ३३ लघु वर्ण होते हैं। ६ दस अक्षर मनोयोनि-मज्ञा पु० [ स०] कामदेव । के एक वणिक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे नगण, मनोरजक-वि० [ स० मनोरञ्जक ] मन को प्रसन्न या याह्लादित ग्गण और प्रत मे गुरु होता है। जैसे,—लहत मुक्ति पाप हो करनेवाला (को०)। क्षमा। ७ केशव के मतानुमार चौदह अक्षरो का एक वणिक मनोरजन'-राशा पु० [म० मनोरञ्जन] [वि॰ मनोरजक, मनोरजनीय] वृत्त जिसके प्रत्येक पाद मे ४ सगण और अंत मे दो लघु १ मन को प्रसम्न करने की क्रिया या भाव । मन का सप्रसादन । होते हैं। जैसे,—यह शासन पठए नृप कानन । ८ केशव के मनोविनोद | दिल बलाव । उ.-मनोरजन वह शक्ति है मतानुसार दोधक छद का एक नाम जिसके प्रत्येक चरण मे जिससे कविता अपना प्रभाव जमाने के लिये मनुष्य की ४ भगण और दो गुरु होते हैं। ६ मूदन के मतानुसार दस चित्तवृत्ति को स्थिर किए रहती है, उसे इधर उधर जाने अक्षरो के एक वणिक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे नहीं देती।-रस०, पृ० २६ । २ एक बगला मिठाई का तीन तगण और एक गुरु होता है। जैसे,—बीते कुछ घास ही मे जहाँ । १० मार्कंडेय पुराणानुसार इदीवर नामक एक माम। गर्व की कन्या का नाम । मनोरजन ---वि० [ वि० स्त्री० मोरजिनी ] ६० 'मनोरजक' । उ.- तुम मृदु मानस के भाव और मैं मनोरजिनी भापा ।-अपरा मनोरवा-सज्ञा पु० [म. मनोरम ] १ मनोरम । सुदर । मधुर । २ दे० 'मनोरा'। उ०-ऊठत नाम मनोरवा हो पृ०७० । हो सतन के यह ज्ञान । याहि सुफल जिन्ह जान्यो वाजत अभय मनोरथ-सज्ञा पु० [ स० ] अभिलापा । वाछा । इच्छा । उ०---(क) निमान । -गुलाल०, पृ० २८ । करत मनोरथ जस जिय जाके। जाहिं सनेह सुरा सब छाके । मनोरा-सज्ञा पुं० [ स० मनोहर या मनोरमा ] दीवार पर गोबर से -मानम, २१ २२५ । (ख) वस मनोरथ पिय मिले घट भया बनाए हुए चित्र जो कार्तिक के महीने में दीवालो के पीछे बनाए उजारा।-कवीर ०, भा० १, पृ. ७२ । जाते हैं। स्त्रियाँ और लडकिया इन्हे रग विरग के फूल पत्तो से मनोरथतृतीया-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] एक प्रत का नाम जो चं सजाती है. प्रतिदिन सायकाल को पूजती हैं और दीपक शुक्ल तृतीया को होता है। जलाकर गीत गाती जाती है। झिझिया। लोढिया। उ०- मनोरथदायक'-वि० [सं०] इच्छा पूरी करनेवाला [को०] । जेहि घर पिय सो मनोरा पूजा। मोकह विरह, सवति दुख मनोरथदायक -सज्ञा पुं० कल्पतरु का नाम । दूजा ।-जायसी (शब्द०)। -