पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३

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मनोराग ३७६० मनोवृत्यात्मक यौ०-मनोरा मृमक = एक प्रकार का गीत जिसे स्त्रियां फागुन मनोवाछित' -सचा पु०० मनोवाछा'। में गाती हैं और जिमक अत मे यह पद ( मनोग झूमक) मनोविकार-सज्ञा पुं० [सं० ) मन की यह अदम्था जिगमे किसी प्राता है। उ०—(क) कहूं मनोग झूमक होई। कर प्रौ प्रकार का मुसद या दुखद भाव, विचार या विकार उत्पन्न फूल लिए सब कोई। जायसी (गन्द०) । (ख) गोकुल सकल होता है। जमे, राग, द्वप, क्रोध, दया आदि चित्तवृत्तियाँ । ग्वालिनी हो घर खेले फाग, मनोरा झूमक रे ।- सूर चित्त का विकार। (शब्द०)। विशेष-मनोविकार किमी प्रकार के भाव या विचार के कारण मनोराग - सज्ञा पुं॰ [ म० ] मन का राग । अनुराग । प्रेम । उ०- हाता है और उसके माय मन का लक्ष्य किमी पदार्थ या बात तीन मनोराग उत्पन्न करने की शक्ति कामायनी मे ही है। की ओर होता है। जैसे, किसी को दुवी देखकर दया अथवा - बी० श० महा०, पृ० ३१५ । अत्याचारी का अत्याचार देखकर क्राव का उत्पन्न होना। मनोराज - सज्ञा पुं० [ म० मनोराज्य ] मानमिक कल्पना । मन की जिम समय कोई मनोविकार उत्पन्न होता है, उस ममय कुछ कल्पना । उ०-राग को न गाज न विराग जोग जाग जिय, शारीरिक विक्रियाए भी होती है, रोमाच, म्वेद, कप आदि । काया नहिं छोडे देत ठाठिबो कुठाट को। मनोगज करत पर ये वित्रियाए साधारणत इतनी सुक्ष्म होती है कि टूमरो अकाज भयो प्राजु लागि, चाहै चारु चीर पै लहै न टूक टाट का दिग्नाई नही देतीं। हां, यदि मनोविकार बहुत तीव्र रूप को।—तुलसी (शब्द०)। मे हा, तो उमके कारण होनेवाली शारीरिय वित्रियाएं अवश्य ही वहुत स्पष्ट हाती हैं और वहुधा मनुष्य की प्राकृति मे ही मनराज्य-सज्ञा पु० [ मै० ] कल्पनालोक। हवाई किला। ख्याली उसा मनोविकारो का स्वरूप प्रक्ट हो पाता है। पुलाव किो०] । क्रि० प्र०-ठटना।—होना । मनोरिया मज्ञा स्त्री० [हिं० मनोहर या देश०] एक प्रकार की सिकही की जजीर जिमकी कडयो पर चिकनी चपटी दाल जडी रहती मनोविकृति-सञ्चा मी० [ म० ] द० मनोविकार' [को०] । है और जिसमे घुघुरुषो के गुच्छे लगातार बदनवार को तरह मनोविज्ञान-सशा पु० [म. ) १ वह शास्त्र जिसमे चित्त की लटकते है। वृत्तियो का विवेचन होता है। वह विज्ञान जिसके द्वारा यह विशेप-यह जजीर स्त्रियो को साडी या भोढनी के किनारे पर जाना जाता है कि मनुष्य के चित्त मे कौन सी वृत्ति कब, उस जगह टाकी जाती जो प्रोढते समय ठीक सिर पर क्यो और किस प्रकार उत्पन्न होती है। चित्त की वृत्तियों को पडता है । घू घट काढने पर यह जजीर मुंह और मिर के चारो मीमासा करनेवाला शास्त्र । मोर पा जाती है। यौ-मनोविज्ञानवेत्ता= दे० 'मनोवैज्ञानिक' । मनोरुक-मज्ञा पुं० [स० मनोरज्] हृदय की पीडा । मनोव्यथा [को०] । मनोविज्ञानी-मशा पु० [सं० मनोविज्ञान +ई (प्रत्य॰)] दे० मनोर्थ पु-नशा पु० [ म० मनोरथ ] , 'मनोरथ' । उ०—सवको 'मनोवैज्ञानिक'। उ० - इनमे मे ( भावो मे मे ) हास, मनोर्थ पूर्ण कियौ।-ह० रासो, पृ० ३३ । उत्साह और निर्वेद को छोड गेप सब भाव वे ही है जिन्हे मनोलय-सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] चेतना का लय या समाप्ति होना । चेतना आधुनिक मनोविज्ञानियो ने मूल भाव कहा है ।-रस०, शून्यता [को०] । पृ० १७३। मनोलौल्य-सज्ञा पु० [स० । मन का लोलुपता । चित्त की चचलता। मनोविनोद - मशा पुं॰ [ मं० ] आनद । मनोर जन [को०] । सनक [को०) । मनोविश्लेपण-तशा पुं० [ म० मन विश्लेषण | १ मन मे उठने- मनोल्लास-सज्ञा पु० [सं० मनम् + उल्जास ] मन को खुशी । वाले विचारो का विश्लेपण । मन को समझना । २ मनोविज्ञान प्रमन्नता। उ०-सारा मनोल्लास प्रामुमो के प्रवाह मे वह के अनुसार मन मे प्रवह्मान विचारो का सूक्ष्म निरीक्षण और गया, विलीन हो गया ।--मान०, भा० १, पृ० ३६ । उनसे उत्पन्न कारणो को समझना जो मानमिक रोगो को मने वतो--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ) १ पुराणानुसार मेरु पर्वत पर के एक जन्म देते है। यह मनोविज्ञान को एक विशेप धारा है। नगर का नाम । २ चित्रागद विधाधर की कन्या का नाम । मनोविश्लेपणवादी-वि० [ स० मनोविश्लेषण + वादिन् ] मनो- मनोवर्गण-सशा नी० [ स० जनो के अनुसार वे सूक्ष्म तत्व जिनसे विज्ञान की मनोविश्लेपण धारा का अनुयायी। मनोविश्लेपण मन की रचना हुई है। को माननवाला । उ०—उन्होने जहाँ इस यथार्थवाद की महिमा स्वीकार की वहां मनोविश्लेपणवादी लेखको की भर्त्सना की। मनोवल्लभा-संज्ञा स्त्री॰ [ म० ] प्रेयसी । प्रियतमा [को०] । -इति०, पृ० १२२। मनोवाचा-सज्ञा स्त्री० [ स० मनावाञ्छा ] इच्छा। अभिलापा । मनोवृत्ति-सचा स्त्री० [स०] चित्त की वृत्ति । मनोविकार । विशेप- श्राकाक्षा । ख्वाहिश । दे० 'मनोविकार'। मनोवाछित'-वि० [मं० मनोवाञ्छित ] इच्छित । मनमांगा। मनोवृत्यात्मक-वि० [ स० मनोवृत्ति + प्रात्मक ] मनोवृत्ति से यथेच्छ, । जैसे,—इससे आपको मनोवाछित फल मिलेगा। सवधित । प्रवृत्तिविषयक । ३०-छायावाद की मनोवृत्यात्मक TO