पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२९

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रंगरली ४०५८ रच शानद मगल। । वरावर वरावर पत्ते वांट दिए जाने हैं और तव खेल होता रंगामरणमा पुं० [सं० रजामरण] तातो माठ गेदो मेने है। इसमे जिस रग का जो पत्ता चला जाता है, उमी रग एक भेद। के उससे बड़े पत्ते से वह जीता जाता है। यह ताण का रंगार गg-० [फा० ] चित्र विचित्र । रग विरगा । तर तरह सबसे सीधा खेल है। का । 30-यह रगारग विभाग भांनि भाति के पापों से भग रगरली- सन्चा सी० [हिं० रग+रलगा] दे० 'रंगरली' । हुश्रा है।--गुदर० गं० (४०), भा० १, पृ० ७७ । र गरस-सञ्ज्ञा पु० [हिं० रंग+रस] प्रामोद प्रमोद । रगार-गा पुं० [१०] १ वैश्यों की एक जाति का नाम । २ गजपूनी की एक जाति । इम जाति के लोग मेवाहार गालवे र गरसिया-सचा पु० [हिं० रग+रलिया ] भोगविलाम करने मे रहने हैं। ३ मध्य तथा दक्षिण भारत में रहोगनी एक वाला व्यक्ति । विलासी पुरुष । जाति । इस जाति के लोग अपने आपको गलगा के प्रतर्गत बतलाते पीर वेतीवारी करते है। रगराज-सज्ञा पुं० [सं० रङ गराज ] सगीत दामोदर के अनुसार ताल के साठ मुख्य भेदो मे से एक भेद । रंगारि-शा पु० [सं० रनारि ] करपीर । कनेर । र गालय-सक्षा पु० [ मं० रक्षालय ] यह ध्यान जहाँ पर नाटन्त, रंगरेली-सज्ञा सी० [हिं० ] दे० 'रंगरली'। गुश्ती या इसी प्रकार का प्री- कोई न तगागा हो । र गलता-सञ्ज्ञा सी॰ [स० रङ्गलता] श्रावर्तकी लता। मरोटफली। -भूमि । रगलासिनी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० र गलासिनी ] शेफालिका । र गावट-सा पी० [हिं० रग+ प्रावट (पत्य॰)] रंगाई। र गवल्लिका-~-सज्ञा स्त्री॰ [ रङ्गवल्लिका ] रगवल्ली । नागवल्ली। रगावतरण-मा पुं० [ म० रगावतरण ] रगमन पर पाना । रगविद्या-सज्ञा स्त्री॰ [सं० रङ्गावधा] नृत्य और अभिनय आदि रग २ नट की उक्ति या वचन (को०] । मच सवधी कला वा हुनर (फो०] । र गावतारक-सगा पुं० [ स० रजावतारक ] १ रेगरेन । २ अभिनय रगविद्याधर-सज्ञा पुं० [सं० रङ्गविद्यावर ] १. ताल के साठ मुख्य करनेवाला । नट। भेदो मे से एक भेद । इसमे दो खाली और दो प्लुत मात्राएं रगावतारी-सश पुं० [स० रनावतारिन् ] अभिनय करनेवाला । होती हैं । २ वह जो अभिनय करता हो । रगविद्या में फुशल । नट । नट । ३ वह जो नाचने मे कुशल हो। रगिणी-सरा लो. [ सं० रङ्गिणी ] ३० 'रगी। रगवीज-सज्ञा पुं॰ [ स० रङ्गवीज ] चांदी। रगी-सशा स्त्री० [२० रदिगणी ] १ शतमूली। २ कंपतिका र गशाला-सचा सी० [सं० रगशाला ] नाटक खेलने का स्थान । नाम की लता । विशेप दे० 'फवतिका' । नाट्यशाला । रगस्थल । रंगी-वि० [सं० रझिन् ] [वि० सी० रङ्गिणी] १ भानदी । मौजी। र गसगर-सज्ञा पुं० [सं० रङ्गसङ्गर ] रगमच पर होनेवाली प्रति विनोदशील । २ रगवाला । रगयुक्त । जैने, बहरगी (को०)। द्वद्विता । अभिनय, नृत्य आदि की प्रतिस्पर्धा (को०] । ३ रंगनेवाला (को०)। ४ अभिनेता। रगमच पर अभिनय रगसाज-सज्ञा पुं० [फा० रगसाज़ (सं० रङ्ग + फा० साल) ] १. करनेवाला (को०)। मेज, कुरसी, किवाड, दीवार इत्यादि पर रग चढानेवाला । वह रंगीन - वि० [फा०] १ जिसपर कोई रग चढा हो । रंगा हुआ। जो चीजो पर रग चढाता हो। २ उपकारणो से रग तयार रंगदार । २ विलासप्रिय । पामोदप्रिय । जैसे, रगीन तबीयत, करनेवाला । रग बनानेवाला। रंगीन पादमी। ३ जिसमे कुछ अनोखापन हो। चमत्कार- रंगसाजी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० रगसाज़ी ] रगमाज का काम । रंगने पूर्ण । मजेदार । जैसे, रगोन इबारत, रगोन बातचीत । का काम। रगीनी-सरा सी० [फा०] १ रगीन होने का भाव । २ सजावट । र गागण-सचा पुं० [ स० रङ्गाङ्गण ] रगस्थल । नाट्यशाला । बनाव सिंगार | ३ बांकापन । ४ रमिता । रंगोलापन । रंगीरेटा-तश पुं० [ देश० ] एक प्रकार का जगली वृक्ष जो र गागा-सा सी० [ स० रङ्गाङ्गा ] फिटकिरी। दारजिलिंग में अधिकता से होता है। रंगाई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रग+आई (प्रत्य॰)] दे॰ 'रंगाई' । विशेप-इसकी लकडी बहुत मजबूत होती है और इमारत र गाचगा--वि० [हिं० रगा+प्रा० चगा ] वना ठना । वनान के काम मे पाती है। इससे मेज, कुरसी आदि भी वजा। उ०—केचित् दीसै रगा चगा। पाट पटबर वोढहिं बनाई जाती है। अगा।-सुदर० प्र०, भा० १, पृ० ६३ । र गोपजीवी-सज्ञा पुं० [सं० रङ्गोपजीविन् ] वह जो रगशाला में र गाजीव--सज्ञा पुं० [सं० रङ्गानीविन् ] वह जिसकी जीविका रंगाई अभिनय करके अपनी जीविका का निर्वाह करता हो । नट । से चलती हो । रगसाज या रंगरेज । र च-वि० [म० न्यञ्च, प्र० णच ] थोडा। अल्प । तनिक । र गाना-क्रि० स० [हिं० रंगना का प्रेर० रूप ] दे० 'रंगाना' । उ०-(क) बचन मेरो कियो मजनी यह रच न प्यारे दया सजा