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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३४

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मनोवेग ३७६१ मन्ना तण मण म० सुदर । कोठरी का मशिनष्टता मे व्यक्तित्व की स्थापना है । प्राचार्य०, मनोहर्ता-मज्ञा पु० [ म० मनाहत ] ३० 'मनोहारी किो०] । पृ० २१६ । मनोहारिता-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० । दे० 'मनोहारित्व' । मनोवेग-मज्ञा पु० [ ] मन का विकार । मनोविकार । मनोहारित्व-मज्ञा पु० । ] मनोहरता। मुदरता। उ-ऐसे यौ०--मनोवेगमूल क = मनोवेग मे सबधित । जिसके मूल मे वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होने अपनी कृतियो को माहित्यिक को मनोवेग हो। उ०—कोई कविता का स्वरूप उमका अानद मनोहारि व प्रदान किया है। पा. सा०सि०, पृ० ८ । दायक होना, कोई मनोवेगमूलक होना मानते है।- बी० श० मनोहारी-वि० [सं० मनोहारिन् । [वि० स्त्री० मनोहारिणी ] १ महा०, पृ०८। मनोहर । चिनीकर्पक । मुदर । २ हृदय चुरानेवाला। मनोवैज्ञानिक'-सज्ञा पु० । मनोविज्ञान का जाता। मनोह्लाद-मज्ञा पु० [ म० ] मन की प्रसन्नता [को०] | मनोवैज्ञानिक-वि. मनोविज्ञान मवधी । मनोविज्ञान का । मनोह्लादो वि० [ स० मनोह्लादिन् । [वि० मी० मनोह्लादिनी ] ? मनोव्यथा-संज्ञा पु० | स० ) मनस्ताप । मानसिक पीडा [को०) । मन को प्रसन्न करनेवाला । दिल खुश करनेवाला । २ मनोहर । मनोव्याधि--सशा स्त्री० [म० मानसिक रोग या वेदना (को० । मनोव्यापार मज्ञा पु० [ म० मन की क्रिया। मन का व्यापार । मनोहा-सञ्ज्ञा स्त्री स० ] मन गिला । मैनसिल । मकप विकल्प । विचार । मनी पु+-प्रव्य० हिं०द्र० 'मानो' । उ०-कनक दड जुग जघ मनोसर-मना पु० म० मन ? ] मन की वृत्ति । मनोविकार । तुव लखियत ग्राभा ऐन । वर जोबन खरसान पर मनो खरादे उ.-सर्व मनोमर जाय मरि जो देखें तम चार । पहले सो मैन ।-स० सप्तक, पृ० ३४७ । दु ख वरनि के बरनो बक मिगार ।-(गन्द०)। मनोजाणु-मज्ञा पुं० [ स० मनोज ] द० 'मनोज'। उ०-ताकि मनोहत-वि०॥ म० ) निराश । हताण [को॰] । ताकि चोट करत उद्भट मुभट मनोज ।-वजग्र०, पृ० २० । मनोहर' '-वि० [सं०] [ मझा मनोहरता । १ मन हरनेवाला । मनौती-सशा पी० [हिं० मानना + श्रौती (प्रत्य०) ] १ चित्त को प्राकर्पित करनेवाला। २ सुदर। मनोज । उ०- अमतुष्ट को सतुष्ट करना। मनाना। मनुहार । उ०—कभी गालियाँ देता था कभी धमकाता था, कभी इनाम का लालच इस प्रकार मे घूमते छोट काम सब और । देखो नृप ने निज प्रिया एक मनोहर ठौर ।-शकु०, पृ० ११ । दिखलाता था, कभी मनौती करता था, दरवाजा किसी ने न खोला। शिवप्रसाद (शब्द०)। २. मनोहर'-सज्ञा पुं० १ छप्पय छद के एक भेद का नाम, जिसमे किमी देवता की विशेष रूप से पूजा करने की प्रतिज्ञा या १३ गुरु, १२६ लघु, १४६ वर्ण और १५२ मात्राएं अथवा सकल्प । मानता । मन्नत । १३ गुरु, १२२ लघ, १३५ वर्ण और १४८ मात्राएं होती हैं। क्रि० प्र०-ठतारना ।—करना ।-चढ़ाना ।—मानना । २ एक मकर राग का नाम जो गौरी, मावा और विवरण मनौरथ-सज्ञा पु० [ म० मनोरथ ] 70 'मनोरथ' । उ०-जौन के मिलने से बना है। ३ कुद पुष्प । ४ मुवर्ण । मोना । मनौरथ रथ तह होई । क्यो पहुंचे पिय पं तिय सोई।-नद० मनोहरता-सज्ञा स्त्री ] मनोहर होने का भाव । मुदरता । ग्र०, पृ० १५७ उ०-राजकुअर तेहि अवसर पाए। मनहु मनोहरता तन मन्न'-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मन ] १ मन । चालीस सेर वजन का एक छाए।-मानम, श२४० । परिमाण । उ०—दस लक्ख कोटि दस सहस मन्न | ह. मनोहरताई - संज्ञा स्त्री॰ [ म० मनोहरता ] सुदरता । मनोहरता। रासो, पृ० ६० । उ०—(क) मगल सगुन मनोहरताई। रिवि सिधि मुख सपदा मन्न'-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मनस् ] मन । चित्त । मुहाई ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) किलकनि नटनि चलनि मन्नत-सञ्ज्ञा स्त्री० | हिं० मानना ] किसी देवता की पूजा करने की चितवनि भजि मिलनि मनोहरतया। मनि खभनि प्रतिबिंब वह प्रतिज्ञा जो किसी कामनाविशेष की पूर्ति के लिये की जाती झलक छवि छलकिहै भरि अंगनैया ।—तुलसी (शब्द॰) । है। मानता । मनौती । उ०—(बाबर ने) मन्नत मानी कि अगर मनोहरपन-सञ्ज्ञा पुं॰ [म० मनोहर + हिं० पन (प्रत्य॰)] मनोहरता । साँगा पर फतह पाऊं, फिर कभी शराब न पीऊँ और दाढी मुदरता। उ० - ऐसे कवियो के बनाए नाटक कि जो मनोहर- बढने दूं।--शिवप्रसाद (णब्द०)। पन मे पूर्ण हैं ।—प्रमघन॰, भा॰ २, पृ० २६ । मुहा०—मन्नत उतारना या बढ़ाना= पूजा की प्रतिज्ञा पूरी मनोहरा-सज्ञा स्त्री० [ म० । १ जाती पुष्प । २ स्वर्णजुही। करना । मन्नत मानना = यह प्रतिज्ञा करना कि अमुक कार्य के सोनजुही। ३ त्रिशिर का माता का नाम । ४ एक अप्सरा हो जाने पर अमुक पूजा की जाएगी। का नाम । मन्ना-सञ्ज्ञा पु० [ दश० ] शहद की तरह का एक प्रकार का मीठा मनोहरी-सञ्ज्ञा पु० [हिं० मनोहर + ई (प्रत्य॰)] कान मे पह्नने की निर्याम जो वाँस प्रादि कुछ विशेप वृक्षो मे मे निकलता है और एक प्रकार की छोटो वाली । जिसका व्यवहार ओपधि के रूप मे होता है। 5-३

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