पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५

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म० 3 0 ३७६२ मम मन्मथ मन्मथ-सज्ञा पुं० १ कामदेव । २ कपित्थ। कय । मन्यका--मझा मी० [ मं० ] गले पर की एक शिरा या नस जो कामचिता। ४ साठ सवत्सरो मे से उनतीसवें सवत्सर पोछे की अोर होती है । माया। का नाम। मन्या-सशा मी० [सं०] १ गर्न की एक गिग या नस । मन्यका । यौ०-मन्मथमन्मथ = कामदेव के मन को मथनेवाला, अन्यत • ज्ञान । ममझ (को०)। आकर्षक वा सौदर्यशील । मन्याका-नशा सी० [ '] २० 'मन्यना' (को०] । मन्मयकर-सज्ञा पुं॰ [ स० ] कुमार के एक अनुचर का नाम । मन्यास्तभ-मग पुं० [ स० मन्यास्तम्म ) एक रोग का नाम जिगमे मन्मथकर-वि० कामोद्दीपक । कामचिंतावर्धक [को०] । गले पर की मन्या गिरा कढी हो जाती है और गरदन इघर मन्मयजल-सज्ञा पुं॰ [ म० मन्मय +मल ] स्त्रीशुक्र । रज । उधर नहीं घूम गकनी। उ०—पातुर लोभी अधिक ढिठाई । मन्मथजल विरगिध मन्यु-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ स्तोत्र । २. कर्म । ३ शोक । ४ याग । वसाई। -चित्रा०, पृ० २१४ । ५ कोप। क्रोध । उ०—कोप ग्राव ग्रामर्ष रठ रोप मन्यु मन्मथप्रिया-सशा मी० [ म० ] कामदेव की प्रिया । रति [को०) । तम मोद।-अनेकार्य, पृ० २५ । ६ दीनता । ७ मत्कार । मन्मयवधु-सज्ञा पु० [ म० मन्मथवन्यु ] चद्रमा (को॰) । ८ शिव । ६ प्रग्नि । १० भागवत के अनुसार वितथ राजा के पुत्र का नाम । ११ माग । उत्माह (को०)। मन्मथयुद्व-सज्ञा पु० [ स० ] कामवासना की तुष्टि । स्त्रीमभोग । मथुन [को॰] । मन्युदेव-मज्ञा पु० [ म०] १ क्रोध का अधिमानी देवता । २. मन्मथलेख-सज्ञा पुं० सं० ] प्रेमपत्र । एक पि का नाम । मन्मथसख-सज्ञा पुं॰ [ स० ] कामदेव का मित्र, वसत [को०] । मन्युपर्णी -मश पी | म० J भेकपर्गो । महकपर्णी । मन्मथा-सशा स्त्री॰ [ 10 ] दुर्गा । दाक्षायणी (को॰) । मन्युमान'-वि० [ M० मन्युमत jणोप, क्रोध, दीनता या प्रहार मे मन्मथानद-सजा पुं० [ स० मन्मथानन्द ] १ एक प्रकार का प्राम युक्त। जिसे महाराज धूत भी कहते हैं । २ विपयानद । विपयजन्य मन्युमान'-मज्ञा पुं० अग्नि [को० । सुख या मानद । मन्युसूक्त-नज्ञा पुं० [ म० ] अग्वेद के दशम मडल का एक मूक्त जो मन्मथानल-सज्ञा पु० [ स०] कामाग्नि [को०] । मन्युदेव के प्रात है किो०)। मन्मथालय-सञ्ज्ञा पुं० [ [ १ ग्राम का पेड । २ कामियो के मन्चतर-मज्ञा पुं० [सं० मन्वन्तर ] १ कहत्तर चतुर्युगो का मनोरथ पूर्ण होने की जगह । प्रेमी और प्रेमिका के मिलने काल । ब्रह्मा के एक दिन का चादवां भाग । विगेप- का स्थान । विहारस्थल । २ योनि । भग (को०) । दे० 'मनु' । उ०----ममीचीन धर्म की प्रवृत्ति । मो रहिए मन्चतर वृत्ति । -नद० ग्र०, पृ० २१७ । मन्मथाविष्ट-वि० [ स० ] कामोद्दीप्त [को॰] । २ दुभिक्ष। अकाल । कहत । मन्मथी-वि० [स० मन्मथिन् ] कामी । कामुक । मन्वतरा--सा स्पी० [सं० मन्वन्तरा] प्राचीन काल का एक प्रकार मन्मथोद्दीपन -सज्ञा पुं० [ म० ] कामोत्तेजन होना। का उन्मव जो पापाढ शुक्न दणमी, श्रावण पण अष्टमी और मन्मथोद्दीपन-वि० कामोत्तेजक (को०] । भाद्र शुक्ल तृतीया का होता था। मन्मन-सञ्ज्ञा पुं० [ म०] १ दपति की गोपनीय एव मदस्वर मे मन्वाद्य-सञ्ज्ञा पु० [ ] धान्य। की जानेवाली बातचीत । २ गोपनीय कानाफूसो । ३. मदन। मन्होला-सा पुं० [ देश० ] तमाल । कामदेव [को०] । मप्पना-क्रि० स० [म. मापन या देशी मप्प (= माप) ] दे० मन्मनत्व-सज्ञा पुं॰ [ स०] बोलने मे जीभ का हकलाना जो एक 'मापना' । उ०—बचि उचारि सुमत तिाहे मरमय मप्पिय बांह । दोप है [को०] । -पृ० रा०, २४ । ३७६ । मन्मय-वि० [सं०] [ वि० स्त्री० मम्मयी ] तन्मय का विलोम । मफर-शा पुं० [अ० सफर J१ भागकर छिपने का स्थान । २. मुझमें लीन । मुझमे अनुरक्त। उ०—अकस्मात नि शब्द पाए जयी, मनोवृत्ति थी नाथ की मन्मयी।-साकेत, पृ० ३०५ । रक्षा । बचाय । ३ उपाय । तरीका [को०] । मफरूर- वि० [अ० मकर ] १ झगोडा । भागा हुआ । २ फरार । मन्य'-वि० [ म० ] अपने को समझनेवाला। अपने को अमुक जैसा उ०—वह दूसरे मामले मे मफरूर था।-फूलो०, पृ० ६४ । माननेवाला (समासात मे प्रयुक्त) जैसे पहितमन्य (को०] । मवादा-अव्य० [फा० ] ऐसा न हो । उo-छुपा राख तूं प्राज ते मन्य-सझा पुं० [ सं० मान या प्रा० मण्णण ] मान । इज्जत । राज यो। मबादा मुन कोई आवाज यो।-दक्खिनी०, उ०-धन रगा तोर त्तिय धध्य । जिन रस्यो जीवत नृप पृ० ८६। मन्या-पृ० रा०, ७११८२ । मम-मर्व० [ मे श्रह <अस्मद् शब्द का पप्ठो एकवचन रूप ] मेरा HO HO