पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३४०

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रक्तांग ४०४६ CE स स० रक्ताग-सछा पुं० [ स० रक्ताड ग] १ मंगल ग्रह । २ कमीला । रक्ताभ्र--सं। पुं० [40 लाल पना। ३ मूंगा । ४ खटमल | ५ केमर । ६ लाल चदन । रक्ताम्नान-1 पुं० [ 10 ] एका पौधा जिममे जाल रक्तागी-मुश सी० [ स० रक्ताड गो ] १ मजीठ । २ जीती। ग के पन नगने है। ३ फुटकी । विशेष-वैद्यक में से कटु, उण पोर यान, कर, न, जान रक्ताइ-या पुं० [सं० रक्ताण्ड ] घोटो के अडकोप मे होननाना तमालामचादि का न माना। एक प्रकार का रोग। रक्तारि-पु[सं०] मही नगग Tr) रक्तावर-राधा सं० [स० रक्ताम्बर ] १ सन्यासी, जो गेम्या वस्त्र रक्ताबुद- पुं० [सं०] १ मा प्रकार का रोग नितीमार पहनता है । २ लाल रंग का कपडा, विशेषत रेशमी काला। गे परने और वहगती गां निकल पाती है। हमारे शरीर रक्ता-सगा पी० [सं०] १ मगीत मे पचम म्बर की चार श्रुतिया का रग पीता पर जाता है। २ शुदोष के कारण उत्पन्न मे से दूसरो श्रुति का नाम । २ गुजा । धुंधची । ३ लाव । होनेवाला एक रोग जिनमें लिंग पर पार फारे पोर उसे 8 मजीठा। ५. कटकटरा। ६. एक प्रकार को सेन । ७ पाय लाल फुलियो निगल यानी । लक्षणा नामक कद । ८. वच । ६ एक प्रकार को मकटी। रक्तार्म ससा पुं० [सं० रनार्मन् ] एक प्रारा रोग निगमे १०. कान के पास को एक शिरा या नग का नाम । ११ याय को काटी पर माशटा होगर ताज के रस जैनो के अनुसार ऐरावत सड को एक नदी का नाम । १२, "का कोमल मंठन पा जाता। अग्नि को मात जिह्वानो मे से एक का नाम (को०)। १३ रक्तार्श-सा ५० [सं० रक्ताम् ] बयामा रोग या मेर वह घी जो किसी पर अनुरक्त हो । अनुरक्ता स्त्री। जिममें उनके भगों में में पून नी निकालता है। नी वार । रक्ताकार-सज्ञा पु० [ स० ] मूंगा। विशेष 'वार'। रक्तात'-सग पु० [ म० ] लाल चदन । रक्तालता- पी० [सं०] मनीठ। रक्ताक्त-वि०१ रक्त लगा हुआ । २. लाल रग मे रगा हुप्रा । रक्तालु-संज्ञा पुं० [ ] रतालू नामा कद। रक्ताक्ष-सा पुं० [ ] १. चकोर । २, सारस । ३. कबूतर | रक्तावरोधक-वि० [सं० } यहत पून को रोकनवाला । ४. भैमा। ५. साठ मवत्सरो मे से अट्टावनवें रावत्सर का रक्तावसेचन-रास पुं० [ 10 ] सगर या नून नियागा । फर। नाम । रक्ताशय-सग पु० [ } शरीर ५ गान प्राशया में माया, रक्तान-वि० १ लाल आँखोवाला। २. उरावना । भयानक फो०] । जिगमे रक्त का रहना माना जाना है। पाठ गिनम रक्त रहता है । जैन, फेफ., हृदय, यात प्रादि । रक्तातिसार-सा पुं० [ ] एक प्रकार का अतिसार जिसमे रक्ताशोक-सज्ञा पुं० [ ] लाल अगाक दान लहू के दस्त पाते हैं। विशप-इसमे रोगी को प्यास, दाह और मूर्छा होती है और रक्ताश्वारि--11 पु० [सं०] लाल पानर । गुदा पकी हुई जान पडती है । रक्ति-सभा सा ] १. नुराग । प्रेम । २ एफपा मारण जा श्राठ मरमा बराबर होता है। रक्ताधरा-सश सी० [ ] किन्नरी। रक्तिका-Tani[१०] १. घुघची। रनो। २ पाठ 7 मोक रकाघारसा पुं० [सं० ] चमडा । त्वा । वावर पारमाण । रत्ता । रक्ताधिमय-सा मुं० [ स० रक्ताधिमन्य ] एक कार का अधिमथ रक्तिम-वि० [ 10 ] लला. सिर । सुर्मा मायल । रोग जो रक्तविवार से होता है । रक्तिमा-Nani [ H०.] तलाई । गाली । गुनीं। रक्तापह-सजा पुं० [सं० ] पोल नामक गवद्रव्य । रक्तक्ष - [ 40] नाल रग का कर। रक्ताभ-K० [सं० ] बीरबहूटो । रक्तोत्पल- [भ] १. लाल रमल । २ भागात मल। रक्ताम --वि० [ स० ] नाल प्राभावाला। लाल रंग का ! लानिमा- रक्तोदर-31 . [ म० ] . माना। २ त में पगार युक्त। उ०-हो गया मान्य नभ का रताभ दिगंत फना। एक प्रकार या वन जगता किन्न। -अपरा, पृ०६५। रकोपदश-TIY [ ] ला पिर उतर या रसामा-गर सो० [१०] लाल जा। प्रातसा पास रक्ताभिष्यदन पु० [सं० रक्ताभियन्द ] गावप्रकाश के भनुमार रकोपल-Hश पुं० [.१०] १. ने नाम नान मिः। २ बार भाना का एक रोग। नामक रत। विशेष-इस रोग मे घार परत मपिक लान हो जाती है, रक्ष'-1 [म. २४ ] १. २८ मारा। 3.-iri उनम से लाल रंग का पानी निकलता है भोर प्रांगों के मागे फून रक्ष रह गह-पन () । २. रक्षाकार। लाल रेसाए दिखाई देती है। रवाना। ३. साग । लाह। ८६प मायदा म० 89 0 RO 20