पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५४

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रीतिक ४११३ रतियाना - रसाल के पौन लगि डोलत डारन मोर । जनु वसत रतिकत (ख) काहे दुरावति है सजनी रतिनायक सायक एही कहे हैं।- पर झुकि झुकि ढारत चौर -स० सप्तक, पृ० ३६५ । मन्नालाल (शब्द०)। रतिकgf-क्रि० वि० [हिं० रची + क (प्रत्य॰)] रत्ती भर । बहुत रतिनाहरा ~सज्ञा पुं० [स० रतिनाथ] कामदेव । थोडा । जरा सा । उ०-नेरे चलि प्राय छलि मेरे मुख पकज रतिपति-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । को परस निसक नहिं सक कर रतिको ।-दीनदयाल (शब्द०)। रतिपद-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे रतिकर'-मञ्ज्ञा पुं० [म०] १. कामी । २ एक प्रकार की समावि । दो नगण और एक सगण (l, in, us ) होता है । जैसे,- रतिफर-० १ जिससे मानद को वृद्धि हो। २ जिससे प्रेम की न निसि घर तजि घरी । कबहुं जग कुल नारी। धरति पद पर वृद्ध हो। घरा । सुमतियुत सतिवरा। रतिकर्म-सञ्चा पु० [सं० रतिकर्मन् ] सभोग । मथुन [को०] । रतिपाश-सशा पुं० [सं०] दे० रतिपाशक' । रतिपाशक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का रतिकलह-सज्ञा पु० [स०] १ मैथुन । सभोग विलास । २ रति- रतिवव जिसे रतिनाग भी कहते हैं। कालीन मान मनौवन । रतिप्रिय -~-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । रतिकात-सञ्ज्ञा पुं० [स० रविकान्त] कामदेव । रतिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] ऋषभ स्वर की तीन श्रुतियो मे से अतिम रतिप्रिय-वि० जिसे मैथुन बहुत प्रिय हो । रतिप्रिया-वि० [सं०] (स्त्री) जिसे मैथुन बहुत प्रिय हो । श्रुति । (संगीत)। रतिप्रिया २- सञ्चा मी० १ तात्रिको के अनुसार शक्ति की एक मूर्ति का रतिकहर-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] योनि । भग । नाम । २ दाक्षायिणी का एक नाम । रतिकेलि-सज्ञा स्त्री॰ [स०] भोगविलास । सभोग । रतिक्रीडा । रतिप्रीता-मज्ञा स्त्री॰ [सं०] वह नायिका जिसका रति मे प्रेम हो। रतिक्रिया-सचा त्री० [स०] मैथुन । सभोग । मथुन से प्रसन्न होनेवाली स्त्री । कामिनी। रतिक्रीड़ा-मशा स्त्री० [सं० रतिक्रीडा] दे० 'रतिकेलि'। रतिफल-वि० [सं० ] जिससे रति मे पानद मिले। जिससे रति रतिखेद -सक्षा पुं० [स०] सभोगजनित अवसाद या क्लाति (को॰] । की जा सके । कामोत्तेजक । ( प्रोपधि आदि)। रतिगरी-क्रि० वि० [हिं० रात+गर ?] प्रात काल । वडे तडके । रतिबव-सञ्ज्ञा पु० [ स० रतिबन्ध | मैथुन या सभोग करने का ढग या प्रकार, जिसे प्रासन भी कहते है । रतिगृह-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ योनि । भग। २ वेश्यालय । चकला- रतिबाहर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रात्रि+वाह] रात की लडाई रात्रियुद्ध । साना (को०) । ३ रातेभवन । केलिगृह (को०) । उ०—बर वीरह रघुवस राम रतिबाह उचारिय।-पृ० रा०, रतिज्ञ-संज्ञा पुं० [स०] १. वह जो रतिक्रिया मे चतुर हो । २ वह ६६१४८३1 जो विसी स्त्री के मन मे अपने प्रति प्रेम उत्पन्न करन म रतिबधु-सञ्ज्ञा पु० [ स० रतिवन्धु ] १ प्रमो। २ पात (को०] । निपुण हो। रतिभवन-सचा पु० [सं०] १ योनि । भग। २ वह स्थान जहाँ रतितस्कर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह जो स्त्रियो को अपने साथ व्यभिचार प्रेमी और प्रामका मिलकर रतिक्रीडा करते हा । ३. करने मे प्रवृत्त करता हो। वेश्यागार (को०)। रतिताल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सगीत मे ताल के साठ मुख्य भेदो मे से रतिभाव - सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ नायक नायिका का परस्पर एक भेद । प्रेम । दापत्य भाव। ( यह शृगार रस का स्थायी भाव रविदान-सचा पु० [स०] सभोग। मैथुन । उ०-रघुनाथ ऐसो भेस है ) । २ प्रीति । प्रेम । मुहब्बत । स्नेह । घरे प्रानप्यारो प्रायो प्रात कहु वसि राति दीन्हे रतिदान रातभौन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० रातभवन ] १ रतिक्रीडा करने का स्थान । उ०—सपनेहू न लख्या निास मे रातभौन ते गौन का।-रघुनाथ (शब्द०)। कहूं निज पी को।-१माकर (शब्द०)। २ दे० 'रातभवन' । रतिदेव -सशा पुं० [स०] १ विष्णु । २. एक चद्रवशीय राजा का रतिमदिर-सशा पुं० [सं० रातमन्दिर । १ योनि । भग। २ मैथुन नाम जो साकृति के पुत्र थे। ३ कुता । श्वान । गृह । वेश्यालय (को०) । ३ दे० 'रातभवन' । उ०-रातमादर रतिधन-सशा पुं० [0] वह अब जिससे दूसरे अस्त्रो का नाश क मान पु जान में प्रतिाववान प्रापन हेरो करै ।-मन्नालाल होता हो। (शब्द०)। रतिनाग-सञ्ज्ञा पुं० [स०] कामशास्त्र के अनुसार सोलह प्रकार के रतिमदा-सञ्चा खा [ H० अप्सरा। रतिबधा मे से एक प्रकार का रतिवध । रातामत्र-सज्ञा पुं० [स०] कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार रतिनाथ-सा पुं० [सं०] कामदेव । का रावध या ग्रासन । रविनायक - उषा पु० [सं०] कामदस । उ०—(क) न डगें न भगे जिय रतियाना-क्रि० अ० [हिं० रति (= प्रीत)+थाना (प्रत्य॰)] जानि सिलीमुख पच घरे रातनायक है। तुलसी (यन्द०)। प्रोति करना। रत होना । प्रेम करना। अनुरक्त होना । सवेरे। 1 .