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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५५

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HO से एक। रतिरमण ४११४ उ०-राम नाम अनुराग ही जो रतियातो। स्वारथ परमारथ रतिसाधन-सज्ञा पुं० [ ] पुरुप की मूत्रद्रिय । लिंग । शिश्न । पथी तोहिं मब पतियातो।- तुलसी (शब्द॰) । रतिसु दर-सज्ञा पुं० [ सं० रतिमुन्दर ] कामशास्त्र के अनुसार एक रतिरमण-संज्ञा पुं० [सं०] १ कामदेव । २ मधुन । उ० - कर प्रकार का रतिवव । और ना रतिरमण इक धन ही के हेत। गणिका ताहि रतो-तज्ञा सी० [ स० रवि १ कामदेव की पत्नी । रति । बखानि रहिं जे कवि मुमात निकेत ।-पद्माकर (शब्द॰) । उ०-बात की वानी माह भाव सो भवानी माह केशोदास रतिरस-सशः पु० [सं० ] सभोगजन्य प्रानद। मंथुन का पानद रति मे रती की ज्योति जानबी ।केशव (शन्द०)। २ विपय उद । [को०] । सौंदर्य । शोभा। उ०--कहै पदमाकर पताका प्रेम पूरण रतिराई@-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रतिराज, प्रा० रति + राइ ] कामदेव । की प्रगट पतिव्रत की सौगुनी रती भई ।- पद्माकर (शब्द॰) । रतिराज-सज्ञा पु० [सं०] कामदेव । ३ मैथुन । सभोग । उ०—दर्भ परे तनया कर साथ विदम रतिलपट-वि० स० रविलम्पट ] कामुक । कामी (को०] । पती। प्रर्पन तू करिहै जवही तव होय रती । गापाल । रतिलक्ष-ज्ञा पुं० [सं० ] मैथुन । प्रमग (को॰] । ४ दे० 'रति'। ५ तेज । काति । उ०—वेद लोक सव रतिलील-सचा पु० [स० ] सगीत मे ताल के साठ मुख्य भेदो मे साखी काहू की रती न राखो रावन को वादे लागे अमर मरन । -तुलसी (शब्द०)। तिलोल-सज्ञा पु० [स० ] एक राक्षम का नाम । रती@-ज्ञा सी० [हिं० रत्ती ] १ घुघची। गुजा । २ ढाई रतिवत--वि० [ स० रति + हिं० वत ( प्रत्य०) । सुदर । जो या आठ चावल का भान । वि० द० रत्ती। खूबसूरत । उ०-कोदडग्राही सुभट को, फो कुमार रतिवत । रतो'-वि० याडा । कम । अल्प । को कहिए शशि ते दुखी कोमल मन को सत ।- केशव रतो'–क्रि० वि० जरा मा । रत्ती भर । किंचित् । उ०-नाम प्रताप (शब्द०)। हम पर छाज। हहिं भार रती नहिं लागे ।-कवीर रतिवर-सा पुं० [सं०] १ कामदेव । २. वह भेंट जो किसी (शब्द०)। स्त्री को उससे रति करने के अभिप्राय से दी जाय । रतीक-क्रि० वि० [हिं० रतिय] जरा सा भी। रत्ती भर भी। रतिवर्द्धन-सज्ञा पु० [ स०] १ वह जिससे कामशक्ति बढती तिल भर भी। हो। २ वैद्यक मे एक प्रकार का मोदक जो गोखरू, असगव, रतीश शतमूली, तालमूली और जेठो मधु आदि के योग से बनता 1- मचा पुं० [स०] रति के देवता । कामदेव (को०] । है और पुष्टिकारक माना जाता है। रतुआ-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार की घास जो बरसात के दिनो या ठढो जगहो मे अविकता से होती है । रतिवल्ली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] प्रेम । प्रीति । मुहब्बत । रतिवाहन-सा पु० [ स० रात्रि, हिं० रात+वाह ] रात्रियुद्ध । रतू'–सशा स्त्री॰ [म०] १ धुलोक की नदी। दिव्य नदी । २ सत्य रात की लडाई। रात्रिसग्राम । उ०—म्हे गामी गुज्जर गल्हियाँ कथन । तथ्यपूर्ण उक्ति [को०] । हमाई हसाइयां। रतिवाह देहु सुरतान दल रखि राजन रतू'–वि० [स०] सत्यवक्ता । ऋतवक्ता [को०] । लगि पाइया ।—पृ० रा०, ६६६४८७। रतूनां-सञ्ज्ञा पु० [दश०] की ईख या गन्ना, जो एक बार काट रति वाही-रज्ञा पु० [ स० रतिवाहिन् ] एक प्रकार का राग जिसका लेने पर फिर उसी जड से निकलता है । गान समय रात को १६ दंड से २० दह तक है। यह सपूर्ण रतोपल@+—सशा पुं० [स० रक्तोत्पल] लाल कमल । उ०—कहि जाति का राग है और इसमे सव शुद्ध स्वर लगते हैं। ककरण नेक भए दृग शीतल सपत देख रतोपल को। हृदयराम रतिशक्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] कामशक्ति । सभोग की क्षमता [को०] । शब्द०)। रतिशास्त्र-सज्ञा पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमे रति की क्रियाओ रतोपल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रक्तोपत] १. लाल सुरमा। २. लाल का विवेचन हो। कोकशास्त्र । कामशास्त्र । खडिया | ३ गेरू । गरिक । रतिशूर -सज्ञा पुं० [ ] मभोगक्षम व्यक्ति । सभोग मे अत्यधिक रतौंधी -सज्ञा स्त्री॰ [म० राध्यन्धता ? वा हिं. रात+श्रौंधी समर्थ व्यक्ति [को०] । (= अधता)] एक प्रकार का रोग जिसमे रोगी को सध्या होने रतिस योग-सज्ञा पुं॰ [ स० ] सभोग । प्रसग [को०] । के उपरात, अर्थात् रात के समय, बिलकुल दिखाई नहीं देता। रतिस हित-वि० [सं०] प्रणययुक्त । प्रीति युक्त । प्रणय की अधिकता उ०-पौरिए रतीवो पावै सखो सर्व सोय रही जागत न से युक्त (को०] । फोऊ परदेस मेरो वर है।-प्रतापनारायण (शब्द॰) । रतिसत्वरा-सज्ञा स्त्री॰ [ ] स्पृक्का । असवरग। रतौहॉल-वि० [हिं० रत+पाहाँ (प्रत्य॰)] रक्तिम । लालिमायुक्त । रतिसमर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] सभोग । मथुन । रागयुक्त । जैसे, रतीहे नैन । रतिसवस्व-संज्ञा पुं० [सं०] रतिजन्य उत्कृष्टतम आनद । रच-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रक्त, प्रा० रत्त] दे० 'रक्त' । HO TO