। रत्यंग ४११७ रथशिक्षा रत्यग-सज्ञा पुं॰ [सं० रत्यङ्ग ] योनि । भग [को०) । रथचर्यासंचार-सज्ञा पु० [सं० रथचर्यासञ्चार] रथो के चलने की रथकर-सज्ञा पु० [स० रथह कर ] १ एक कल्प का नाम । २. पक्की सडक । एक प्रकार का माम । ३ एक प्रकार को अग्नि । विशेय-यह खजूर की लकडी या पत्थर की बनाई जाती थी । रथ-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्राचीन काल की एक प्रकार की सवारी चद्रगुप्त के समय मे इसका विशेष रूप से प्रचार था। जिसमे चार या दो पहिए हुया करते थे और जिमका व्यवहार रथचित्रा-सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्राचीन नदी का नाम । युद्ध, यात्रा, विहार आदि के लिये हुआ करता था। शताग । रथज्वर-सशा पुं० [स०] कौया । काक (को॰] । स्यदन । गाडी । बहल । २ शरीर, जो आत्मा की सवारी रथद्रु-सज्ञा पुं० [सं०] १. तिनिश का पेड । २ बेंत । माना जाता है। ३. चरण । पैर | ४ तिनिस का पेड। ५. रथनीड़-सञ्ज्ञा पु० [स० स्थनीड] रथ के भीतर बैठने की जगह [को०] । विहार करने का स्थान । क्रीडास्थल । ६. शतरज का वह रथपति-सज्ञा पुं० [सं०] रथ का नायक । रथी । मोहरा जिसे आजकल ऊंट कहते है। उ०-राजा वील देइ शह रथपर्याय-सा पुं० [सं०] १. तिनिश का पेड । २. वेत । मांगा। शह देइ चाह भरे रथ खाँगा ।—जायसी (शब्द॰) । रथपाद-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'रथचरण' । विशेष-जब चतुरग का पुराना खेल भारत से फारस और रथपुंगव-सशा पु० [सं० रथपङ्गव] उत्कृष्ट योद्धा [को०] । अरव गया, तब वहां रथ के स्थान पर ऊंट हो गया। रथप्सा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्राचीन नदी का नाम । ७ वेत । वेतस् (को०)। ८ प्रानद (को०) । ६ हिस्सा । भाग। अग (को०) । १० वीर । रथी (को०) । रथबध-सशा पु० [म० रथबन्ध] १ रथ के उपकरण । घोडे का साज सामान । २ वीरो का मघटन [को॰] । रथकट्या, रथ व ड्या- सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] रथो का जमादार (को०] । रथकल्पक-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ प्राचीन काल का वह अधिकारी रथमहोत्सव-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] रथयात्रा नामक उत्सव । विशेष दे. 'रथयात्रा। जिसकी अधीनता मे राजापो के रथ आदि रहते थे। २ प्राचीन काल के धनवानो का वह प्रधान अधिकारी जो उनके रथमुख-सञ्ज्ञा पुं० [स०] रथ का अग्रभाग वा अगला हिस्सा [को०] । घर आदि सजाता है और उनके पहनने के वस्त्र प्रादि रथयात्रा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] हिंदुओं का एक पर्व या उत्सव जो प्राषाढ रखता है। शुक्ल द्वितीया को होता है। रथकार, रयकारक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] रथ बनानेवाला । खाती। विशेप-इसमे लोग प्राय जगन्नाथ, बलराम और सुभद्राजी की वढई। २ एक जाति जिसकी उत्पत्ति माहिप्य ( क्षत्री से मूर्तियां रथ पर चढाकर निकालते हैं । यह उत्सव बहुत प्राचीन वैश्या से उत्पन्न ) पिता और करिणी (वैश्य से शूद्रा मे काल से होता है, और पुरी मे बहुत धूमधाम से होता है। उत्पन्न ) माता से मानी गई है। इसमे जनक आदि सस्कार बौद्ध और जैन लोगो मे भी रथयात्रा का उत्सव होता है, जिसमे जिन या बुद्ध की सवारी निकाली जाती है। रथकुटु व -- सज्ञा पुं० [ स० रथकुटुम्ब ] दे॰ 'रथकुटु बिक' । रथयुद्ध-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] रथ पर सवार होकर किया जानेवाला रथकुटु विक-सज्ञा पुं० [स० रथकुटुम्बिक ] वह जो रथ चलाता सग्राम। हो । रथवान । सारथी। रथयोजक-सञ्चा पुं० [सं०] रथ जोतने या मज्जित करनेवाला व्यक्ति । सारथि [को॰] । रथकुटु बी-सचा पुं० [० रथकुटुम्बि न् ] दे॰ 'रथकुटु विक' । रथवर्म -सज्ञा पुं० [सं० रथवर्मन] राजपथ । मुख्य सडक । राजमार्ग रथकात-सज्ञा पुं॰ [ सं० रथक्रान्त ] सगीत मे एक प्रकार का ताल | (को०] । रथकाता--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० रथक्रान्ता] एक प्राचीन जनपद का नाम । रथगर्भक-सशा पुं० [ स० ] रथ के प्राकार की वह सवारी जिसे रथवान्-सज्ञा पुं० [सं०] रथ हाँकनेवाला । सारथी। मनुष्य कये पर उठाकर ले चलते हो। जैस, पालकी, नालकी रथवाह- सञ्चा पुं० [सं० रथवाह] १. रथ चलानेवाला। सारथी। २. घोडा । उ०-राज तुरगम वरनी काहा। आने छोरि इद्र रथगुप्ति-सञ्चा सी० [स० ] रथ के किनारे लगा हुआ लकडी या रथवाहा । —जायसी (शब्द०)। लोहे का वह ढाँचा जो शस्त्र आदि से रक्षा के लिये होता रथवाहन-सञ्चा पुं० [म०] रथ मे का वह चौकोर ऊपरी ढांचा जो पहियो के ऊपर जहा होता है रथचरण-मज्ञा पुं० [सं०] १ चक्रवाक । चकवा । २ रथ का रथवीथि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'रयवर्म' । चवका (को०) । ३ विष्णु का चक्र । सुदर्शन चक्र (को॰) । रथशाला-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] वह स्थान जहाँ रथ रखे जाते हो। ४ लाल कलहस को०)। ६ रथ द्वारा यात्रा करना। गाडीखाना । अस्तवल रथचर्या-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] रथ से यात्रा करना। रथ से यात्रा करने रथशास्त्र-सज्ञा पुं० [सं०] रथ हाँकने की कला को०] । का अभ्यास करना पो०] । रथशिक्षा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'रथशास्त्र' । होते हैं। आदि। था।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५८
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