पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५९

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रथसप्तमी ४११८ रदीफ HO रथसप्तमी-सक्षा खी० [स०] माघ शुक्ला सप्तमी । रथोष्मा-सज्ञा सी० [सं० ] पुराणानुसार एक नदी का नाम । विशेप-कहते हैं, सूर्य इसी दिन रथ पर सवार होते हैं, इसी रथ्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह घोडा जो रथ मे जोता जाता हो। लिये इसका यह नाम पहा है। २ वह जो रथ चलाता हो । ३ चक्र | चाका । पहिया । रथसूत–स पुं० [स०] रथ हांकनेवाला । सारथी। रथ्या-सज्ञा स्त्री॰ [ मी० ] १ रथो का समूह । २ रथ का मार्ग राग-सञ्ज्ञा पुं० [स० रथा] १ रथ का पहिया। उ०—पारथ की या लकीर । ३ रास्ता । मडक । ४ चौक । आँगन । ५ कानि गनि भीपम भहारथ की, मानि जब विरथ रथाग घरि नाली । नावदान । उ०—कहाँ देवसरि क नुप विनानी। वह घाए हैं। -रलाकर, भाग १, पृ० । २. चक्र नामक अस्त्र । रथ्या जल अति मल रासी ।-द्विज (शब्द०)। ६ सडको का ३ चक्रवाक पक्षी। चकवा । उ०—पिक रथाग सुक सारिका एक भेद जिसको चौडाई २० या २१ हाथ होती थी। सारस हस चकोर ।--मानस, २।८३ । रद'-सज्ञा पुं० [ ] दन। दांत । उ०—प्रयर अरुन रद सुदर रथागधर-सज्ञा पुं० [स० रथाङ्गधर] १ श्रीकृष्ण । २ विष्णु । नासा |-मानस, १११४७ । रथागपाणि-सज्ञा पुं० [सं० रथाङ्गपाणि] विष्णु । रद–वि० [अ० ] १ नष्ट । खराव । रद्दी। २ तुच्छ या निरर्थक । रथागवर्ती-सञ्ज्ञा पुं० [० रथाङ्गवर्तिन्] चक्रवर्ती सम्राट् । ३ फोका । मात । उ० –मोहत धोतो सेत मे कनक वसन तन बाल । मारद वारद बीजुरी भा रद कीजत लाल ।-विहारी रथागी-सज्ञा स्त्री० [सं० रथाङ्गी] ऋद्धि नामक प्रोपधि । (शब्द०)। रथाक्ष-मज्ञा पुं॰ [स०] १ रथ का पहिया या धुरा । २. प्राचीन काल का एक परिमाण जो एक सौ चार अंगुल का होता था। रदच्छद-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अोठ। प्रोष्ठ । ३. कार्तिकेय के एक अनुचर का नाम । रछद'-सञ्ज्ञा पुं० [ रदच्छद ] अोठ । प्रोप्ठ । उ०-लोचन लोल कपोल ललित अति नासिक को मुक्ता रदछद पर | -सूर रथाग्र--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह जो बहुत बडा योद्धा हो । ( शब्द०) रथाभ्र--सज्ञा पुं॰ [स०] बेत। रदछद-सज्ञा पुं॰ [ स० रदक्षत ] रति श्रादि के समय दांतो के रथावत -सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक तीर्थ का नाम । लगने का चिह्न । उ० -पट की ढिग कत ढांपियत सोभित रथिक-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह जो रथ पर सवार हो। रथी । २. सुभग सुबेख । हद रदछद छवि देखियत सद रदछद को रेख ।- तिनिश का पेड। विहारी (शब्द०)। रथी-सञ्ज्ञा पु० [स० रथिन्] १ वह जो रथ पर चढकर चलता हो । रददान-सज्ञा पुं० [ ० रद+दान ] (रति के समय) दांतो से ऐसा २ रथ पर चढकर लडनेवाला । रथवाला योद्धा । दवाव कि चिह्न पड जाय । यौ०-महारथी । अतिरथी । विशेप-यह सात प्रकार की वाह्य रतियो मे से एक है। उ०- ३ एक हजार योद्धामो से अकेला युद्ध करनेवाला योद्धा । उ०- आलिंगन चुवन परस मर्दन नख रददान । अवरपान सो जानिए पृरण प्रवृति सात धीर हैं विख्यात रथी महारथी अतिरथी वहिरति सात सुजान । - केशव (शब्द॰) । रणसाजि के ।--रघुराज (शब्द०)। ४ क्षत्रिय जाति का रदन-सज्ञा पुं० [ सं० ] दशन । दांत । दत । मनुष्य (को०) । ५ सारथी (फो०) । रदनच्छद-सज्ञा पुं० [ ] पोष्ठ । अवर । होठ। रथी-वि० रथ पर सवार | रथ पर चढा हुना। उ०-रावन रथी रदनी-वि० [ स० रदनिन् ] दाँतवाला । उ०—चिवुक मध्य मेचक विरथ रघुवीरा । देखि बिभीपन भयउ अधीरा।-तुलसी रुचि राजत विंदु कुद रदनी ।-तुलसी (शब्द॰) । (शब्द०)। रदनी-सञ्ज्ञा पुं० हाथी । रथी- सज्ञा सी० [स० रथ] वह ढांचा जिसपर मुरदो को रखकर रदपट-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] पोष्ठ । अोठ । श्रधर । उ०-मावे लखन अत्येष्टि क्रिया के लिये ले जाते हैं । अरथी। टिकठी। ताबूत । कुटिल भई भौई। रदपट फरकत नयन रिसौहैं ।-तुलमा रथोत्सव-सज्ञा पुं० [सं०] रथयात्रा नामक उत्सव । ( शब्द०)। रथोद्धता-सझा स्त्री० [सं०] ग्यारह अक्षरो का एक वर्णवृत्त जिसका रदबदल-क्रि० वि० [फा० रद+बदल ] परिवर्तन । उलट पलट । पहला, तीसरा, सातवाँ, नवा भौर ग्यारहवां वर्ण गुरु और हेर फेर । अदल बदल । वाकी वर्ण लघु होते हैं। अर्थात् इसके प्रत्येक चरण मे र, न, रदी-सञ्ज्ञा पु० [सं० रदिन् ] हाथी। गज । र, ल, ग (sis, il, sis, Is) होता है। उ०-रानि । री रदीफ--सशा स्त्री॰ [अ० रदीफ़ ] १ वह व्यक्ति जो घोहे पर सवार लगत राम को पता। हाय ना कहहिं नाहिं धारता । धन्य जो के पीछे बैठता है। २ वह शब्द जो गजलो आदि मे प्रत्येक लहत भाग शुद्धता। धूरि हू अति शुची रथोद्धता ।-छंद - काफिए या अत्यानुप्रास के बाद वार वार आता है । जैसे,- प्रभाकर ( शब्द०)। 'मुझको गले लगा के यह उनका सवाल था। क्यो जी इसी के रथोरग-सज्ञा पुं० [सं० ] एक प्राचीन जाति का नाम जिसका वास्ते इतना मलाल था। इसमे सवाल तो काफिया है, और उल्लेख महाभारत मे है । गजल भर मे इती का अनुप्रास मिलाया जायगा, पर 'या' स०