पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३७८

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रसालिका ४१३७ रसित स० रसालिका-सञ्ज्ञा स्त्री० १ छोटा आम | अंबिया । २ सप्ला। 'रसियाउर' कहते हैं। उ-गावहिं रसियाउर सब नारी। सातला। वज मृदग वोर । तमहारी।-रघुराज (शब्द॰) । रसालिया-वि॰ [हिं० रसाल +इया] १ रसिक । रसमर्मी । रसभरा। रसियावर, रसिआवल-सज्ञा पुं० [हि० रसियाउर] दे॰ 'रसि- २ दे० 'चूतिया' (लाक्ष०)। पाउर। रसालिहा-सझा स्त्री॰ [ सं० ] पिठवन । रसिक'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० रसिका, हिं० सी० रसिकिनी] १ वह रसाली-मचा पु० [सं० रसालिन् ] १ पौढा । गन्ना । २ चना। जो रस या स्वाद लेना हो। रस लेनवाला । २ वह जिसे रस रसाली -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] पीढा । गन्ना । मवधी वातो मे विशेप मानद आता हो । काव्यमर्मज्ञ । सहृदय । रसालेतु -सज्ञा पुं० [ ] पौंडा । गन्ना। ३ क्रीडा प्रादि का प्रेमी। पानदी। रसिया । उ०--सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि तुमरी लीला को कहै गाइ ।---सूर०, रसावर, रसावल-सज्ञा स० [हिं० रसियाठर ] दे० 'रसौर'। १०।२९८ । ४ दह जो किसी विपय का अच्छा ज्ञाता हो। उ०-जीवन सुरति वटोरि प्रभु नाम रसावर । निरगत कर मर्मज्ञ । ५ प्रेमी । भक्त । भावुक । सहृदय । ६. सारस पक्षो । • द्विजराज जीदनहि एहि तनु डाबर । -तुलसी मुवाकर (शब्द॰) । ७ घोडा। ८ हाथी । ६ एक प्रकार का छद । रसाव-सज्ञा स० [हिं० रसना ] १. खेत को जोनकर और पाटे से वरावर करके कई दिनो तक यो ही छोड देना। २ रसन की रसिक-वि० १ रस लेनेवाला। सहृदय । २ प्रानदी। ३ प्रेमी। ४ मर्मज्ञ [को॰] । क्रिया या भाव। रसावला-सञ्चा पु० [हिं० ] एक मानिक छद जिसमे दो रगण होता रसिकईल ---सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० रसिक + हिं• ई (प्रत्य॰)] दे० 'रसि- कता'। उ० रसिक रसिकई जानि परी । नैननि त अव न्यार है और दम मात्राएं (sISSIS ) होती है। जैसे-(फ) रोस हूज तवही ते अति रिसनि भरी।-सूर०, १०।२५४१ । राज भरी। चित्र कोटे मुरी। हथ्ध दथ्य जुरी। जुट्टि सोहै रसिकता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ रसिक होने का भाव या धर्म । २ पुरी।-पृ० रा०, २४१७७ । (ख) रार काहे करो। धीर राध परिहास । हंसी। ठट्ठा । घरो । देवि मोहा तजी । कंज देहा मजौ।-छद०, पृ० १३४ । विशेप-इसे जोहा, विजोहा, विजोहा, विमाहा आदि भी रसिकत्व-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] रसिक होने का भाव या धर्म । रसिकई । रसिकता [को०)। कहते हैं। रसिकविहारी-सञ्ज्ञा पु० [सं०] श्रीकृष्ण का एक नाम । रसावा-सज्ञा पुं० [हिं० रस+यावा (प्रत्य॰)] ऊस का कच्चा रस रसिकसिरोमनि-सज्ञा पुं॰ [स० रसिक + शिरोमणि] रसिको मे रखने का मिट्टी का बर्तन । सिरमौर, श्रीकृष्ण। रसावेष्ट -सचा पु० [ स०] गधाविरोज।। रसिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ दही का शरबत । सिखरन । २ ईख रसाश- सभा पुं० [ ] मद्य पीने की क्रिया । शराब पीना । का रस । ३ जीभ । जबान । ४ शरीर मे की धातु । रस । रसाशी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रसाशिन् ] वह जो मद्य पीता हो । शरावी । ५ मंना पक्षो । ६ करवनी । तागडी (को०) । रसाश्वासा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] पलाशो नाम की लता । रसिका-वि० स्त्री॰ [स०] दे० 'रसिक' । रसाष्टक-राज्ञा पुं० [ स० ] पारा, ईंगुर, कातिसार लोहा, सोनामक्खो, रसिकाई - संज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'रसिकता' । रूपामकवी, वैक्रात मरिण और शस इन पाठ महारसा का रसिकाना-क्रि० अ० [सं० रसिक+धाना (प्रत्य॰)] मानद वा समूह। मस्तो से भरा होना। रसिया होना। रसीला होना । उ०- रसास्वादी-वि० [सं० रसात्वादिन् ] [ वि० सी० रसास्वादिनी ] होरी मे का वरजोरी करोगे क्यो इतने इतराए । रूप गरव १ रस चखनेवाला। स्वाद लेनेवाला। २ आनद या मजा पं अति रसिकाए । -भारतेंदु ग्र०, भा० २, पृ० ३७८ । रसास्वादी -सा पुं० भौंरा । भ्रमर । रसिकिनी-लशा स्त्री॰ [स० रसिक + हिं० इनी] रसिक का स्त्री- लिंग । रसिका । दे० 'रसिक-३' । उ०-सूरदास रास रसिक रसाह-सज्ञा ० [स०] गवाबिरोजा । विनु रास रसिकिनी बिरह विकल करि भई है मगन।-सूर रसाहा-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. सतावर । २ रास्ना। (शब्द०)। रसिपाउरा-सज्ञा पुं० [हिं० रस + चाउर (= चावल)] १ ऊख रसिकेश्वर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण का एक नाम । के रस या गुड के शर्बत मे पका हुआ चावल । २ एक प्रकार का गीत जो विवाह की एक रीति में गाया जाता है। जब नई रसित'-वि० [स०] १ ध्वनि करता हुआ । वालता हुआ। वजता वहू व्याह कर पाती है, तब वह रुख के रस या गुड के शवत मे हुआ । २ वहता हुधा । रसता हुअा। थोडा थाडा टपकता चावल पकाकर अपने पति तथा ससुराल के लोगो को परोसकर हुआ। ३ रसयुक्त । ४ जिसके ऊपर मुलम्मा चढा हो । खिलाती है। उस समय खियां जा गोत गाती हैं, उसे भी रसित-सज्ञा पुं० १, ध्वनि । शब्द । उ०-लपि नव नील पयोद 80 फागुन मदमाते ताहू लेनवाला।