पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८१

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रसौली ४१४० रहा रसौली-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का रोग जिसमे अाँख के ऊपर रहॅचटा-सज्ञा पुं० [हि० रस + चाट वा रँहचटा] प्रीति की चाह । भंवों के पास बडी गिलटी निकत आती है। मनोरथसिद्धि की अभिलाषा । चसका । लिप्सा । दे० 'रंहचटा'। रसौहाँ@-वि० [रस +ौहाँ (प्रत्य॰)] रसीला । रसयुक्त । रसपूर्ण । उ०—बनक मढे कोठे चढे छैल छबीले स्याम । खरी चौहटे में उ०-भौहे करि मूधी विहसहिं के कपोल नैंक सौहै करि लोचन अरी चढी रहँचटे वाम । -रामसहाय (शब्द०)। रसौहे नदताल माँ।-मति. ग्र०, पृ० ३५२ । रहॅट-सज्ञा पुं॰ [सं० अरघट्ट, प्रा० अरहट्ट] कूएं से पानी निकालने रस्तगार-वि० [फा०] बधनमुक्त। रिहा । उ०-यानो अगर जमी पे का एक प्रकार का यत्र । उ०—विरह विपम विप वेलि वढी यहां भी वही वहार । दुख सुख मे वद सारे नही कोई रस्त उर तेइ सुख मकल सुभाय दहे री। सोइ सीचिवे लगि मनसिज गार ।—कबीर म०, पृ० २२३ । के रहंट नैन नित रहत नहे री ।—तुलसी (शब्द०)। रस्तगारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा०] मुक्ति। छुटकारा। रिहाई। उ० विशेष—इसमे कुएं के ऊपर एक ढाँचा रहता है। जिसमे वीचो रस्तगारी की राह न पाया था । कबीर म०, पृ० ३७४ । वीच पहिए के आकार का एक गोल चरखा लगा होता है, जो रस्ता-वक्षा पु० [फा० रास्त ] दे० 'रास्ता' । कुएं के ठीक बीच मे रहता है। इस चरखे पर घडो श्रादि की रस्तोगी-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] वैश्यो की एक जाति । एक बहुत लवी माला, जिसे 'माल' कहते है, टंगी रहती है। रस्न-सञ्ज्ञा पुं० [स] १ अश्व । २ द्रव्य । वस्तु । पदार्थ (को॰] । यह माला नीचे कूएं के पानी तक लटकती रहती है और इसमे बहुत सी हाडियों या वाल्टियां बंधी रहती हैं। जव बैलो के रस्ना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अ०, या सं० रसना,] जिह्वा । जीम [को०] । चक्कर देने से चरखा घूमता है, तब जल से भरी हुई हांडियां रस्म-सज्ञा स्त्री० [अ०] १ मेलजाल । बरताव । या बाल्टियां ऊपर आकर उलटती हैं, जिससे उनका पानी एक यौ० 10-राह रस्म = मेलजोल । व्यवहार । घनिष्ठता। नाली के द्वारा खेतो मे चला जाता है, और खाली हाँडियां या २ रिवाज । पारपाटी। चाल । प्रथा । ३ सस्कार (को०) । वाल्टिया नीचे कूएँ के पानी में चली जाती और फिर भरकर रस्मि-संज्ञा स्त्री० [सं० रश्मि] दे० 'रश्मि' । ऊपर प्राती हैं। इस प्रकार थोडे परिश्रम से अधिक पानी रस्मी-वि० [अ० रस्म+ई] रस्म रिवाज सवधी। रीति वा चलन के निकलता है। पश्चिम मे इसकी बहुत चाल है। रहॅटा-सज्ञा पुं० [हिं० रहँठ] सूत कातन का चर्खा । उ०—कहै कबीर अनुसार। रस्य'-सज्ञा पुं० [स०] १. रक्त । खून । लहू । २ शरीर में का सूत भल काता। रहंटा न होय, मुक्ति को दाता |--कबीर मास । ३ एक प्रकार का नमकीन खाद्य (को॰) । (शब्द०)। रस्य-वि० रसपूर्ण । सुस्वादु । मधुर । रहॅटी-सज्ञा सी० [हिं० रहँटा] १ कपास प्रोटने को चरखी। २ २ रुपया उधार देने का एक ढग, जिसमे प्रति मास कुछ रुपया रस्या-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ राना । २ पाठा । पाढी । रस्सा-सज्ञा पु० [सं० रश्मि प्रा० रस्सी, हि० रस्सी से पुं० रूप वसूल किया जाता है। इसे सयुक्त प्रात (उत्तर प्रदेश) मे हुडी रस्सा] [को०, अल्पा० रन्सी] १ बहुत मोटी रस्सी जो कई रहट्ट-सज्ञा पुं० [स० भरघट्ट, प्रा० अरष्ट] दे० 'रहंट'। उ०—लागी कहते है। मोटे तागो को एक में बटकर बनाई जातो है। विशेप-श्राजकल प्राय जहाजो आदि के लिये तथा और बडे बडे घरी रहट्ट की सोचहि अमृत वेलि । -(शब्द०)। कामों के लिये लोहे के तारो के भी रस्से बनने लगे हैं । रह' सञ्चा स्त्री॰ [फा० राह] मार्ग। रास्ता। राह। राह का लघु २. जमीन की एक नाप जो ७५ हाथ लबी और ७५ हाथ चौडी रूप । जैसे,—रहजनी, रहनुमा श्रादि । होती है । इसो को वीघा कहते हैं । ३. घोडो के पैर की एक रह@-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० स्थ, प्रा० रह ] दे० 'रथ' । बीमारी। रहकला-सज्ञा पु० [हिं० रहँकला ] दे० 'रहकला'। उ०- रस्सी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० रस्सा] १ १ई सन या इसी प्रकार के और गुरज सपीलन तोप धार और रहकला वान । सहर कोट के रक्ष रेशो के सूता या डोरा का एक मे वटकर बनाया हुआ लबा खड कह, लघु सुत कीन्ह पयान । -प० रासो, पृ० १३७ । जिसका व्यवहार चीजो को वांवने, कुएं से पानी खीचने आदि रहचटा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रहचटा] दे० 'रहचटा'। मे होता है । होरी । गुण । रज्जु । २ एक प्रकार को सज्जी। रहचह-संज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] चिडियो का वोलना। चहचहाहट । रस्सीवाट-सज्ञा पुं० [हिं० स्सो + वटना] रस्सी वटनेवाला। डोरी 'उ०-सारी सुमा सो रहचह करही । कुरहि परेवा भी करवर- बनानेवाला । ही।-जायसी (शब्द०)। रहॅकला-सज्ञा पुं० [हिं० रथ+कल] १. एक प्रकार की हलको गाडी । २. तोप लादने को गाही। उ०-वान रहकला तोप रहजन-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० रहजन 1 डाकू । वटमार [फो०] । जंजाल। सहसनि सुतरनाल हथनाले ।-लाल (शब्द०)। रहजनी-सझा स्रो० [फा० रहजनी ) डाकू का कार्य। डक्ती । बटमारी (को०] ३. रहकले पर लदी हुई छोटी तोप । तिमि धरनाल और करनाल तुतुरनाल जजाले । गुरगुराब रहकले भले तह लागे रहठा-सचा पुं० [हिं० रहर+काठ ] अरहर के पौधे के सूखे डठल । विपुल वयाले ।-रघु राज (शब्द॰) । कडिया। ।