पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८२

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रहठानि ४१४१ रहनि 1 रहठानि-सा पु० [ देश० या हिं० रह (= रहन, रहना)+म० स्थान, प्रा० ठाण ] रहने का स्वान । उ०—होनि सो मढ्यौ पं अनहोनि जाके बीच भरी, जामे चलि जाइवे बनाई रहठानि है।-धनानद, पृ० १२७ । रहन-सशा जी० [हिं० रहना ] १ रहने की क्रिया या भाव । 10-रहन गहन = ६० 'रहन सहन' । उ०—रहन गह्न उनहूँ नहि पाई। श्ररथ सुनै सब जग 'प्ररुझाई । —कबीर म०, पृ० ४७० । रहन सहन - चाल ढाल । तौर तरीका। २ रहने का ढग । व्यवहार । प्राचार । उ०—जाकी रहनि कहनि अनमिल, सखि, कहत समुझि अति थोरे ।—सूर (शब्द॰) । रहन सहन ~ सभा सी० [हिं० रहना + सहना ] जीवन निर्वाह का ढग । गुजर बसर का तरीका । तीर । चाल ढाल । रहना-क्रि० अ० [सं० राज (= विराजना, सुशोभित होना ), पुं० हिं० राजना] १. स्थित होना । प्रवस्थान रना। ठहरना । जैसे,—अगर कोई यहां रहे, तो मैं वहाँ से हो आऊ । २ स्थान न छोडना । प्रस्थान न करना। न जाना । रुकना। थमना । मुहा०-रह चक्षना या जाना = प्रस्थान करने का विचार छोड देना । रुक जाना । ठहर जाना । उ०-रहि चलिए सु दर रघुनायक । जो सुत तात बचन पालन रत जननिउ तात मानिवे लायक । —तुलसी (शब्द०)। ३ विना किसी परिवर्तन या गति के एक ही स्थिति मे अवस्थान करना । उ०-नीके है छीके छुए ऐसे ही रह नारि ।- विहारी (शब्द०)। मुहा०-रहने देना = (१) जिस अवस्था मे हो, उसी मे छोड देना । हस्तक्षेप न करना ।। (२) जान, देना । कुछ ध्यान न देना । रहा जाना = शाति या स्थिरतापूर्वक अवस्थान करने मे समर्थ होना । सतुष्ट होना। उ०—(क) वृपम उदर व्रत रहा न जाई। -रघुराज (शब्द॰) । (ख) अव तो चपला से न रहा गया, वह केतकी का झोटा पकडने को दौडी।-देवकी- नदन (शब्द॰) । (ग) पिता को आते देख राजकुमार से न रहा गया। वे तुरत प्रागे वढे और निकट पहुंचकर सादर प्रणाम किया।-देवकीनदन (शब्द०)। विशेष -इस अर्थ मे अधिकतर प्रयोग 'नहीं' के साथ होता है। ४ निवास करना । बसना । जैसे,-श्राप कई पीढियो मे फलकत्ते मे रहते है। ५ कुछ दिनो के लिये ठहरना या टिकना । अस्थायी रूप से निवास करना । उ०-एहि नैहर रहना दिन चारी।जायसी (शब्द०)। ६ किसी काम मे ठहरना। कोई काम करना बद करना । थमना । उ०-रहो रहो, मेरे लिये क्यो परिश्रम करनी हो । लक्ष्मण (शब्द०)। ७ चलना वद करना । एकना। उ०-हाँ, डर ही से तो सिमट समट चलता है रह रहकर ।-प्रतापनारायण (शब्द॰) । विद्य- मान होना । उपस्थित होना। जैसे,—हमारे रहते फोई ऐसा नही कर सकता। मुहा०-किमी के रहते- किसी की विद्यमानना मे । मौजूदगी मे। ६ चुपचाप समय बिताना। कुछ न करना । उ०—(क) स्याही वारन तें गई मन ते भई न दूर । समुझि चतुर चित बात यह रहत विनूर बिसर । रननिधि (जन्द०)। (ब) घरम विनारि समुझि कुल रहई। तो निकिष्ट तिय स्रुति यस पाई।- तुलसी (शब्द०)। मुहा०—रह जाना = (१) कुछ कार्रवाई न करना । जैसे,—तुम्हारे ख्याल मे हम रह गए, नही तो एक चपत देते । (२) मफल न होना। लाभ न उठा सकना। जैसे,- सब पा गए, तुम रह गए। १० नौकरी करना। काम काज करना। उ०-उसने जवाब दिया-4 मालिन हूँ, यह नहीं कह सक्ती कि जिसके यहां रहती है और ये फूत के गहने किराके वास्ते लिए जाती हैं। देवकीनदन (शब्द०)। ११ स्थित होना। स्थापित होना । जैसे,—दूसरे ही महीने उसे पेट रहा । १२ समागम करना। मैथुन करना। १३ जीवित रहना । जीना। उ०-हते कौन अधार दुसह दुर्ग पिय विरह भी। कर न राखते त्यार व्यान जखीरा नैन जौ।-रसनिधि (शब्द०)। १४. रखेली के रूप मे रहना। किगी को रखेली होकर दिन विताना। १५. बचना । छूट जाना । अवशिष्ट होना। उ०—(क) कीन्हेसि जियन सदा सब चहा। कीन्हेनि मीचु न कोई रहा।—जायसी (शब्द०)। (ख) और जो बात भगमानी से कहने को रह गई थी, उनको भी उसी भाँति धीरे धीरे उसने उसने कहा । -अयोध्या (शब्द०)। यौ०-रहा सहा = वचा बचाया। अवशिष्ट । थोडा जो बाकी था। जैसे,—तुम्हारे चले जाने से उनका रहा सहा उत्साह भी जाता रहा। मुहा०—( अंग प्रादि का ) रह जाना-धक जाना । शिथिल हो जाना । जमे,—(क) लिखते लिसते हाथ रह गया। (ख) चलते चलते पैर रह गए । रह जाना = (१) पीछे छूट जाना । जैसे,—मेरी छडी वही रह गई है। (२) अवशिष्ट होना । पच या व्यवहार ने पचना । जैसे- मेरे पास यही पुस्तक रह गई है। विशेप-अवस्थानसूचक इस क्रिया का प्रयोग बहुत व्यापक है। प्रधान क्रिया के अतिरिक्त यह और नियात्रा के साथ सयुक्त होकर भी प्राती है। जैसे,-या रहा है, जाहते हैं। रहना-सरा पु० गेर, वाघ आदि के रहने का स्यान । वन का यह विभाग जहाँ दोर, चीते यादि के रहने को मार्दै हो। इन 'रमना' भी कहते है। रहनि-तश सी० [हिं० रहना ] ? प्राचरण। चाल जात। रहन । उ०-सोइ विवेश नोइ पनि प्रनु हहिं 7पा करि देहु । - तुननी (गन्द०)। २. प्रेम । प्राति । लगन । उ०- जौदै रहनि रात मॉ नाही। तो नर पर पर गूपर मम जाय जियत जग माही।-तुगी (सन्द०)।