पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८८

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रागभजन ४१४७ राचना 30 प्रमा। २ म० रागभजन-सा पु० [ ] एक विद्याधर का नाम । नियों के अतिरिक्त शोर भी गंय डोगगिनियां है, जो प्राय गई गंगयुज-सज्ञा पुं० [स० ] मानिक । माणिज्य [को०] । रागो यौर रागिरिया के मेन बनती है पार जिन्हें मकर रागिनी पहन है। रागरज्जु-सा पुं० । सं० ] कामदव । रागी-गरा पुं० [ म० रागनी ] [१० गगन् १ अनुरागी । रांगलता-मज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] कागदेव की स्त्री, रति । मनाया मकन नामक दिन। ३.छह मात्रा- रोगलेसा-मशा स्त्री० [ ] लाल रेग्या । रग की लकीर । दाने घश का नाम।४ प्रगक वृक्ष। रागविवाद-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] गाली गलौज । रागी - वि० १, रंगा हुा । २ साल। मु। उ०-गुमाई रागपाडव-TII गुं० [ स० रागपाच ] १,प्राचीन काल का एक जहाँ दासा वक्र गगी।-गर (२०) । ३ विषय वाला प्रकार का खाद्य पदार्थ जो अनार पार दाख से बनता था। मे फेमा प्रा। विपनामत । विरागा का उलटा । 30- २ श्राम का मुरब्धा । पयपायान वन भूमि मारो नेल, नुापन पीठि । रागिहिं गाठि रागसारा-सशा सी० [ स० | मनमिल । बिसेप नु, विषय विर गहि माठि।-तुर्ग। (शद०)। ४ रंजन करनवाना गिनवाना। रागागा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० रागाझी] गजाठ । रागा-सशा सी० [सं० । मडुया या मकरा नाम का कदन्न [को०) । Tuft@t '-सा गी० [सं० •it ] गजा को पली। रानी । उ०-तो लगभग विभीषण का वर गज गढ़ है पट रागात्मक-वि० [सं० | प्रेम उत्पन्न करने या वढानेवाला (को०) । रागी ।-गम (गन्द०)। रागान्वित-वि० [सं०] १ रागयुक्त । जिसे राग या प्रेम हो। २ जिम क्राप हो। राघव-सज्ञा पुं० [सं०] १ रघु के 47 मे उत्पर व्यक्ति । २ रागारु-सं० [ स०] जो किमी का कुछ देने की प्राणा बंधाकर था रामचद्र । ३. दशरथ । ४ अज। ५ रामुद्र में रहनेवाली भी न दे। एक प्रकार की बहुत बड़ी मदनी । रागानि-सञ्ज्ञा पु० [ 10 ] वृद्धदेव । राचना'-क्रि० म० [हिं० रचना ] रचना । बनाना। उ०- रागिनी-सशा सी० [सं०] १. विदग्या लो। २ मैना की बडी (क) बे चून जग राचिया माई नूर मिनार । तर प्रासिर के कन्या का नाम । ३ जयश्री नाम की लक्ष्मी। ४. सगोत म बखत मे किसका क- दिदार ।-वचौर (गन्द०)। (ग) किसी राग की पत्नी या स्त्री। दे० 'राग'। कोटि इद्र लिन ही मे राचं दिन में फर चिनाग। सूर रच्यो उनही को मुरपति में भूना तेहि ग्राम ।-पूर (गन्द०)। विशेप-हनुमत और भरत के गत से प्रत्येक राग की पांच पांच (ग) धनि धनि मूरदास को स्वामी अदभुत राच्या राम । रागिनियाँ और मोमेश्वर मादि के मत से छह छह रागिनियाँ -मूर (शब्द०)। (घ) विशद विगन की वाणो राग हैं । परतु नाधारणत लोक मे यह रागो की छत्तीम रागिनियाँ राती सी नाचती तरग एन वानंद वधाईगी ।-पाकर ही मानी जाती है । इस अतिम मत के अनुसार प्रत्येक राग को रागिनियां इस प्रकार है। (शब्द०)। श्रीराग की माएं या रागिनियां--मालश्री, विपणी, गौरी, राचनाल-क्रि० प्र० रना जाना । बनना । केदारी, मधुगावती और पहाटी । वमत राग की रागिनियां- राचना-फ्रि० प्र० [ 1० रवन ] १. रंगा जाना । ग पकाना। देशी, देवगिरि, वराटी, टौरिका, ललिता और हिंडाल । पचम रजित होना । उ-प्रेम मानि का मुधि न रही अंग रहे श्याम राग की रागिनियो-विभास, भूपाली, कणाटी, पठहमिला, रंग राची । --पूर (२०)। (ग) ता रा राधा मान यम, मालवी, और पटमजरी। भैरव राग की रागिनियां-भैरवी, कहा सुटल मनि गर । जाम नियोग क्या लग, दाग नागि बंगाली, संघवी, रामकेता, गुर्जरी और गुणफली । मेघ राग खजूर ।-विहारी (शद०)। (ग) गया भूमि हरित हरित तृण की रागिनिया-गत्लारी, मौरटी, मानेरी, पौशिकी, गाधारी जानन नो पिच जात त्या नमोस । दव न्यामी.- और हर गार । नटनारायण राग की रागिनिया-वामादो, (२०)। २. अनुक्तता। प्रेम फरना। 3०-(८) पाल्यारणी, प्रागीरी, नाटिया, नारगा पोर हम्मोरी। अन्य मत पर नारी में रानन उपा नर जाय। यातामा पानी से रागो की रागनिया इस प्रकार हैं। भैरव-म यमादि कोटिन गार उपआ71-र (भद०)। (ग) विरचि मन (मध पायी), भरवी, बाली, वरारी और सपा । नालयास वार राच्या प्राद। दाउरा जन्मान कार तक ष टोटी, स्वायती, गौरी, गुणवारी बार जमा ढिाल नहिं जार। -गुर (०२०)। () प. या पानी पर विलावती, रामसली, देसात, पदमजरी और तालत । दीपक- रायत गति मूल। दिन म नपुर दन गर्टन गुरुहर केदारी, करणाटो, देसी टोरी, कामारो मोर नट । श्रा-यसत, फूल 1-विहारी (म-२०) । ३. नोन | मार हाना । मालवी, मालश्री, अनावरी भोर धनाभी । मेघ-गोट मन्नारी, दूरना । उ०-(क)जा जादा मे या भर पुन की देसकार, भूपाली, गुर्जरी मोर औरत । युध लोगा के मत से ताज। सन पी गुन दिन.ना र न राम नाज। रागिनियो के उक्त नामो मे मार भी है। इन पत्तोर गि- -बीर (नर०)। (म) पर धन नया रूप