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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८९

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राछ ४१४ राजकर्ण सकल जग राच्यो । बिनु देखे बिनु ही सुने ठगत न कोक भार देना । किसी को कही का शासक बनाना। राज सिंहासन बाच्यो ।-मूर (शब्द०)। ४ प्रसन्न होना। उ०—(क) पर बैठाना । राज्य का अधिकार देना। उ०-दीन्हे मारि जय जय तिहुं पुर जयनाल गम उर बरपै सुमन सुर रूरे रूप असुर हरि ने तव देवन दीन्हो राज । एकन को फगुमा इद्रासन राचही ।-तुलमो (शब्द०)। (ख) प्रमान मान नाचही । इक पताल को साज |--सूर (शब्द०)। राज पर वैठना = राज अमान मान राचही। समान मान पावही। विमान मान सिंहासन पर बैठना। राज्याधिकार पाना। उ.---जव से बैठ धावही । केशव (शब्द०)। ५ शामा देना। भला जान राज, राजा दशरथ भूमि मे। सुख सोयो सुरराज, ता दिन त पडना। उ०--प्रोच न चद्रकला विच राचत सांच न चारिन सुरलोक मे । केशव (शब्द०)। राज गूंजना = राज्य का भोग के चरसा मे । मतिराम (गन्द०)। ६ प्रभावान्वित होना । करना । शासन करना। बहुत मुख भोगना । उ०---राजु कि सोच मे या चिता मे पटना । उ०-शात उण सुख दुख भूजब भग्त पुर नृप कि जिइहिं विनु राम । —मानस, २।४६ नहिं मान हानि भए कचु मोच न राचं । जाइ समाइ मूर राज रजना = (१) राज्य करना । (२) राजाम्रो का सा सुख वा निवि म बहुरि न उलाट जगत मे नाचे । —सूर (शब्द॰) । भोगना । बहुत सुख मे रहना । राज रजाना = बहुत सुख देना । राछ-सञ्ज्ञा पु० [सं० रक्ष ] १. कारीगरो का मोजार । उ० यौ० • = राजपाट = (१) राजसिंहासन । (२) शासन । उ० --सिर क्या गुरु कोई घर का राछ है कि भला मिलो चाहे बुरा, पर वरि न चलोगे काऊ सनक जतन करि माया जोरी। राज- परतु प्राणी को अवश्य बना ही छाडना चाहिए ।-श्रद्धाराम पाट सिंहासन बैठे नील पदम है सो कह थोरी ।-(शब्द०)। (शब्द०)। २ लकडी के प्रदर का पक्का प्रश। हीर । ३. २ उतना भूभिमान जितना एक राजा द्वारा शासित हाता हा । जुलाहो क करवे मे एक औजार जिससे ताने का तागा ऊपर एक राजा द्वारा शासित देश । जनपद । राज्य । उ०-पि नीचे उठता पार गिरता है । कघो। राज तज्यो धन धान्य तज्यो सव । नारि तज्यो सुत सोच तज्यो विशेष—यह दो नरसलो का होता है जिसके बीच मे ऊपर तव । -केशव (शब्द०)। ३ पूरा अधिकार। खूब चलती । नीचे तागे बंध होते है और जिनके बीच ते ताने के तागे जैसे,-पाजकल वाजर भर मे श्रापका राज है। ४ अधिकार एक एक करके निकाल जाते है । काल । समय । जैसे,—पिताजी के राज में सारा सुस भोग ४ वरात । जलूस । लिया । ५ देश । जनपद । उ०-एक राज मह प्रगट जहं क्रि० प्र०-निकालना ।-फिराना । हूँ प्रभु केशवदास । तहाँ वमत है रैनि दिन मूरतिवत विनाश ।- केशव (शब्द०)। मुहा०-राछ धुनाना % विवाह मे वर को पालकी पर चढ़ाकर किसी जलाशय या कुएं की परिक्रमा कराना । राज-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० राज् वा राज ] १. गजा । २ कोई श्रेष्ठ वस्तु । किसी वर्ग की सर्वश्रेष्ठ वस्तु । ३ वह कारीगर जो ईंटा से ५ चक्की के बीच का खूब जिसके चारो ओर ऊपर का पाट दीवार प्रादि चुनता और मकान बनाता है। थवई । राजगीर । फिरता है । ६ लाहार का डा हथौडा । राज-वि० श्रेष्ठ । सर्वाच्च । जैसे, मणिराज, ग्रहराज आदि । राछछा-सज्ञा पु० [ २० राक्षस, हिं० राछस ] दे॰ राक्षस' । राज-सज्ञा पुं० [फा० राज] रहस्य । भेद । गुप्त बात । राछवधिया-सज्ञा पु० [हिं० रा+बावना ] वह जुलाहा या यादमी जो राछ बाँधने का काम करता हो । राजक'-वि० [स०] दीप्तिकारक । चमकनवाला । राजक-सज्ञा पु० १ राजा । २. काला अगर । राछस-सच्चा पु० [सं० राक्षस दे० 'राक्षस'। राजकथा-संज्ञा स्त्री॰ [स०] इतिहास । तवारीख । राज-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राज्य] १ देश का अधिकार या प्रवध । प्रजा- पालन की व्यवस्था । हुकूमत । राज्य । शासन । उ०—(क) राजकदव-सज्ञा पुं० [सं० राजकदम्ब] एक प्रकार का कदव जिमके फल बडे और स्वादिष्ट होते है। सुख सोवें जो राज याके सब । दुख पैर्ह सो सफल प्रजा अब । —सूर (शब्द०)। (ख) खान बलि अली अकबर अद्भुत राजकन्या-ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ राजा की पुनी । २. केवड़े का फूल । राज, रावरी है अचल मुयश भीजियतु है। -गुमान (शब्द०)। राजकर-सञ्ज्ञा पु० [सं०] वह कर जो प्रजा मे राजा लेता है । राजा को मिलनेवाला महसूल । खिराज । मुहा०-राज फरना - हुकूमत करना। प्रजापालन की व्यवस्था करना । उ०—मोहि चलो वन सग लिएं। पुन तुम्हे हम देखि राजकरण-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १. न्यायालय । अदालत । २ राजनीति । जिएं। अयवपुरी मह गाज पर। के अब राज भरत्थ कर ।- जैसे,—राजकरण की बहुत सी महत्वपूर्ण वातें परदे के प्रदर केशव (शब्द०) । राज काज = राज्य का प्रवध । राज्य का हुआ करती है, और जब तक वे कार्य मे परिणत नही होती, काम । उ०—(क) राज काज कुपथ कुमाज भोग रोग को है तब तक वे वडे यल से दबा रखी जाती है। -श्रीकृष्ण सदेश वेद बुधि विद्या वाय विवस वलकही ।—तुलसी (शब्द॰) । (शब्द०)। (ख) राज काज कछु मन नहिं घरै । चक्र सुदर्शन रक्षा करै ।- राजकर्कटी-सञ्चा स्त्री० [सं०] एक प्रकार को ककडो । सूर (शब्द॰) । रान देना = किसी को किसी देश के शासन का राजकर्ण-सशा पुं० [सं०] हाथी की सूड ।