पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९१

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राजजीरक ४१५० राजधानी HO गजनपद-मानी o विशेष-इसकी छाल पीलापन लिए भूरे रंग की गौर खुरदुरी राजदूत-स] पं० [सं० ] र पुर जो एक गज्यली पोर होती है । यह गरमी मे फूलता और बरसात मे फलता है। यिागी अन्य राज्य मावा मित्र नयची असा अन्य इसवी पत्तियो का व्यवहार प्रौषध मे होता है और गाल पाए तिक पार्य गमारा किराया मी प्रकार का जाते हैं। इसकी तकटी इमारत के सामान और रोती के जीनार दिगा मरना जाता बनाने के काम मे पाती है। विशेष-गाण | मा।। मेधावी, पाव रद्ध धौर, पर- राजजीरक-सज्ञा पुं॰ [ मं० ] एक प्रकार का जीरा । TUT177 IT HIT पुसला गजदत नियत राजत'-वि० [स० रजत का बना हुआ । चांदी का । गरना चाहिए। प्राना मात्र में प्रापश्यना पड़ने पर राजत-सज्ञा पुं० रजत । चाँदी । ही राजदार राम ने दूर्ग गज जाओ थे, पर पश्चिमी ५शाम कर पा गया में राजापों के राजतरगिणी -- सच्चा सी० [ मै० राजारजिणी ] कल्ला त काश्मीर का एक प्रसिद्ध इतिहास का गथ जो मरत मे है और जिगमे राजदूत परम्मर र ! रा परने और उन्ही के नाग गारा या गावा। दो राध्या के बीच पीछे कई पडितो ने वृत्तात बढाए । इशाने रचना गर तक होती जाती है। युद्ध दिने पर दाना र मनन असन राजदूत मान। राजतरु-सज्ञा पुं० [ स० ] वणिकार का वृक्ष। गनियारी। २. पारग्वध । अमलतास । राजदूर्वा -सा • [30] " पर जिसनो पनियो, पारमादि स्पून प्रार। राजतरुणी-सा सी[ ] एक प्रकार का गुब्जय या सफेद गुलाव ।जसका पूल सेवती से वहा होता है । वटा से पनी । [म] जोता । नमी। विशेप-इसकी लता टट्टियो पर चढ़ाई जाती है। फूना को गध राजदेशोय 7 [ ] जागे गु" हो । राजा के तुय । मद और मीठो होती है। वैद्यक मे इस काफरक, हृद्य और राजद्रुम-17 पुं० [म.] प्रारमय । गगतान । चाक्षुष्य माना है और इसका स्वाद वगेला लिसा गया है । राजदाह-स] ५० [ 10 ] राजा या राम प्रति किला हुना पर्या०-महासा । वर्णपुप्प । श्रम्हाग । अम्लातक। मुवर्ण द्राह। यह यत्व जिगमगजाया राज्य के नारया अनिष्ट यो पुष्प । नंभावना हो। नगावत 11,-प्रजा या मना को राजा या राजता-सचा सी० [सं०] १ राजा होने का भाव । २ राजा राज्य मलदने लिये जाना। का पद । गजद्रोही-नि० [ स० गतद्रागिन् । गजद्रोह करनेवाला । बागी। राजताल-सशा पुं० [ स० ] सुपारी का पेड । राजहार- पुं० [सं०] १ राणाद्वार। राजाची माटी। राजतिमिश-सा पुं० [ स० ] तरबूज । २ विचागल। याचारय । राजतिलक-मशा पुं० [हिं० राग + तिलक ] १, राजसिंहासन राजद्वारिक - ० [40] गजा का हारपान । प्रतिहार । ०] ! पर किसी नए राजा के बैठने की रीति । गज्याभिषेक । उ०- नृपति युधिष्ठिर राजतिलक दै मारि दुष्ट को भीर । द्रोण वर्ण राजधरम-मया पुं० [सं० गधा ] राजा का कर्तव्य या धर्म । अरु शल्य मुक्त करि मेटी जग को पीर ।-मूर (शब्द०)। गजधर्म । उ.-"जबरम नया एत्नोई। जिमि मन माह मनोरथ गोई।-मानस, २०३१५ । २ नए राजा के गद्दी पर बैठने का उत्सव । राजतेमिप-सज्ञा पुं० [सं०] राजतिमिश । तरबूज । राजधतूरक-सा पुं० [सं०] १ एक पार का ग जिनके फूल ई प्रावण के होते है। २ नर धतूग। राजत्व-सज्ञा पुं० [सं०] १ राजा का भाव वा कर्म । २ गजा राजधम-राक्षा पु० [ ]१ राजा या कर्तव्य या धर्म । जैसे,- का पद। प्रजा का पालन, शत्रु से देश की रक्षा, लूटपाट या उपद्रव राजदड-10 पुं० [सं० राजदण्ड ] १ राजशासन । २ वह दउ धादि का निवारण । २ महाभारत पातिपर्व के एक अण का जिसका विधान राजा के शासन के अनुसार हो । वह दर जो नाम जिसमे राजा के कर्तव्या या वणन है। राजा की आज्ञा के अनुसार दिया जाय । राजधर्मा-सा पुं० [ मे० राजधम्मन् ] महाभारत के अनुसार राजदत-नशा पुं० [सं० राजदन्त ] दांतो को पक्ति के बीच का काश्यप के एक पुत्र का नाम जो सारमो का राजा था । वह दांत जो और दांतो से बडा और चौसा होता है । चौता। राजधानो-सा सी० [सं०] वह प्रधान नगर जहां किसी देश का विशेष—ऐसे दांत ऊपर और नीचे की पक्तियो के बीच मे होते राजा या शासक रहता हो। किगी प्रदेश का वह नगर जहाँ हैं। कोई कोई ऊपर की पक्ति मे सामने के दो बडे दांतो उस देश के गासन का केंद्र हो । जैस-भारत की राजधानी को भी राजदन मानते है, पर अन्य लोग दोनो पक्तियो मे दिल्ली, रूस की राजधानी मास्फो, इगलंड की राजधानी लंदन । बीच के दो दो दांतो को राजदत कहते है । पर्या -राजधान । राजधानफ । राजधानिका, आदि। 1 स०